ओणम का अर्थ श्रावण होता हैं. इस त्यौहार को श्रावण माह में केरल राज्य में चाय, अदरक, इलायची, कालीमिर्च, धान जैसी फसलों के तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस त्यौहार में ख़ासतौर पर श्रावण के देवता तथा फूलों की देवी की पूजा होती है
। ओणम केरल का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे सितम्बर में मनाया जाता है। ओणम का त्यौहार लगातार दस दिनों तक मनाया जाता हैं। इस दौरान केरल की सांस्कृतिक धरोहर देखते ही बनती है. ओणम के अवसर पर समूचा केरल नावस्पर्धा, नृत्य, संगीत, महाभोज आदि कार्यक्रमों से जीवंत हो उठता है. यह त्योहार केरलवासियों के जीवन के सौंन्दर्य को सहर्ष अंगीकार करने का प्रतीक है.
● क्यों मनाया जाता है ओणम ●
ऐसी मान्यता है कि इस दिन राजा महाबली ने भगवान विष्णु से अपनी प्रजा से वर्ष में केवल एक बार मिलने की अनुमति मांगी थी। उनकी अनुमति पाकर राजा आशीर्वाद देने धरती लोक आते हैं। इसे राजा महाबली के याद में मनाया जाता है, इस दिन उनका भूलोक में भव्य स्वागत होता है। इस दिन सुन्दर पुष्पों से घरों को सजाया जाता है, एवं इन दिनों घरों में फूलों की रंगोली बनाई जाती है। महिलायें और किशोरियाँ इस दिन नाचने गाने में मस्त रहती हैं और पुरूष तैरने और नौका-दौड़ में सम्मिलित होते हैं।
★ एक और प्राचीन कथा ★
जब परशुरामजी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी. तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने सह्याद्री पर्वत की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता वरुण की तपस्या की. वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फेंको. जहां तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी. वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा. परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को ‘केरल या मलयालम’ कहते हैं. परशुराम जी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहां पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था. वही मन्दिर अब भी ‘तिरूक्ककर अप्पण’ के नाम से प्रसिद्ध है. जिस दिन परशुराम जी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी. इसलिए उस दिन ‘ओणम’ का त्योहार मनाया जाता है.
★ क्या होता है इस दिन ★
मलयालम में इस रंगोली को “ओणमपुक्कलम” कहा जाता है, महिलाऐं इस रंगोली को गोलाकार में बनाकर इसके बीच में एक दिया जलाकर रख देती हैं। ओणम पर्व के नौवें दिन सभी घरों में विष्णु जी की मूर्ति की स्थापना की जाती हैं तथा उनकी पूजा – अर्चना की जाती है। विष्णु भगवान की पूजा करने के बाद घर की औरतें एकत्रित होकर गोलधारा बनाकर सामूहिक नृत्य करती हैं तथा गीत गाती हैं। गोलाई में नृत्य करने की यह परम्परा “थप्पतकली” कहलाती है। ओणम के नौवें दिन ही शाम को घर में गणेश जी की मूर्ती और श्रावण देवता की मूर्ति स्थापित की जाती है। मूर्तियों को स्थापित करने के बाद इनके समक्ष शुद्ध घी के दीपक जलाएं जाते हैं तथा एक विशेष प्रकार का भोग जिसे “पूवड” कहा जाता उसका भोग लगाया जाता है। थिरुओनम या तिरुओणम ओणम त्यौहार का आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन केरल राज्य के सभी घरों में पारम्परिक पकवान बनायें जाते है। चावल के आटे में विभिन्न प्रकार की सब्जियों को मिलाकर अवियल बनाया जाता है, केले का हलवा, नारियल की चटनी बनाई जाती है। इसी प्रकार पूरे 64 प्रकार के पकवान बनाएं जाते है। जिन्हें ओनसद्या कहा जाता है। इन सभी पकवानों को बनाने के बाद इन्हें केले के पत्तों पर परोसा जाता हैं.
इस पर्व की लोकप्रियता काफी ज्यादा है. यही कारण है कि केरल सरकार ओणम को एक पर्यटक त्योहार के रुप में मनाती है. यह त्योहार भारत के सबसे रंगा-रंग त्योहारों में से एक है.