2019 का इकोनॉमिक्स का नोबेल भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और माइकल क्रेमर को दिया गया है. इससे पहले 1998 में अमर्त्य सेन को इकोनॉमिक्स का नोबेल दिया गया था. अभिजीत, एस्थर और माइकल को वैश्विक गरीबी कम करने की दिशा में किए गए प्रयासों के लिए यह पुरस्कार दिया गया है.
आइये जानते है अभिजीत के बारे मे :
● अभिजीत बनर्जी के बारे मे : अभिजीत का जन्म वर्ष 21 फरवरी 1961 में कोलकाता भारत में हुआ था। अभिजीत का पूरा परिवार अर्थशास्त्र से जुड़ा हुआ है । अभिजीत के पिता का नाम दीपक बनर्जी था । इनके पिता प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता मे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और विभाग के प्रमुख थे। इनकी माता का नाम निर्मला बनर्जी था। इनकी माता जी सेंटर फ़ॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज, कलकत्ता में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर थी।
● अभिजीत की पढ़ाई लिखाई : अभिजीत की शुरुआती पढ़ाई साउथ प्वाइंट हाई स्कूल में की। स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ उन्होंने बी.एससी किया। 1981 में अर्थशास्त्र में डिग्री। बाद में, उन्होंने 1983 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में अर्थशास्त्र में एम.ए. किया। 1988 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनके डॉक्टरेट की थीसिस का विषय “सूचना अर्थशास्त्र में निबंध” था।
★ अभिजीत का निजी जीवन : अभिजीत बनर्जी का विवाह MIT में साहित्य की प्रोफेसर डॉ० अरुंधति तुली बनर्जी से हुआ था। अभिजीत और अरुंधति का एक साथ एक बेटा था, बेटा होने के बाद उनका तलाक़ हो गया । इसके बाद, वर्ष 2015 में अभिजीत ने अर्थशास्त्री एस्तेर डुफ्लो से शादी की। अभिजीत और डुफ्लो कि भी एक संतान है।
● अभिजीत के काम करने की जगह : उन्होंने 1988 में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया. 1992 में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया. इसके बाद 1993 में उन्होंने एमआईटी में पढ़ाना और शोध कार्य शुरू किया जहां पर वह अभी तक अध्यापन और रिसर्च का काम कर रहे हैं.
वह अर्थशास्त्री सेंथिल मुलैनाथन और एस्तेर डुफ्लो के साथ 2003 में उन्होंने एमआईटी में अब्दुल लतीफ़ जमील पोवर्टी एक्शन लैब की शुरुआत की और वह इसके डायरेक्टर बने. यह लैब एक वैश्विक शोध केंद्र है जो ग़रीबी कम करने की नीतियों पर काम करती है. यह लैब एक नेटवर्क का काम भी करती है जिससे दुनिया के विश्वविद्यालयों के 181 प्रोफ़ेसर जुड़े हुए हैं. 2003 में ही बनर्जी को अर्थशास्त्र का फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन इंटरनेशनल प्रोफ़ेसर बनाया गया। अभिजीत बनर्जी की अर्थशास्त्र के कई क्षेत्रों में रुचि है जिसमें से चार अहम हैं.
● पहला आर्थिक विकास
● दूसरा सूचना सिद्धांत
● तीसरा आय वितरण का सिद्धांत
● चौथा मैक्रो इकोनॉमिक्स है.
★ बेनर्जी की लिखी किताबें : बनर्जी अब तक पाँच किताबें लिख चुके हैं और छठी किताब आने वाली है जिसका नाम ‘व्हाट द इकोनॉमिक्स नीड नाउ’ है. इसके अलावा उनकी एक किताब गोल्डमैन सेष बिज़नेस बुक ऑफ़ द ईयर का ख़िताब जीत चुकी है. किताब और लेख लिखने के अलावा अभिजीत बनर्जी ने दो डॉक्युमेंट्री फ़िल्मों का निर्देशन भी किया है.
★ किताबें और लेख जिसने दुनिया को दिखाई राह : अभिजीत ने दुनिया को राह दिखाने के लिए इकोनॉमिक्स पर कई किताबें लिखी हैं. इनकी पहली किताब 2005 में वोलाटिलिटी एंड ग्रोथ लिखी थी. तब से लेकर आज तक अभिजीत बनर्जी ने कुल सात किताबें लिखी हैं. लेकिन इन्हें प्रसिद्धि मिली 2011 में आई इनकी किताब पूअर इकोनॉमिक्सः ए रेडिकल रीथीकिंग ऑफ द वे टू फाइट ग्लोबल पॉवर्टी.
★ मोदी सरकार की आलोचना : अभिजीत बनर्जी समय समय पर मोदी सरकार की नीतियों की ख़ूब आलोचना कर चुके हैं. इसके साथ ही वे विपक्षी कांग्रेस पार्टी की मुख्य चुनावी अभियान न्याय योजना का खाका भी तैयार कर चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन्होंने पुरस्कार जीतने की बधाई दी है. मोदी सरकार के सबसे बड़े आर्थिक फैसले नोटबंदी के ठीक पचास दिन बाद फोर्ड फाउंडेशन-एमआईटी में इंटरनेशनल प्रोफेसर ऑफ़ इकॉनामिक्स बनर्जी ने कहा था, “मैं इस फ़ैसले के पीछे के लॉजिक को नहीं समझ पाया हूं. जैसे कि 2000 रुपये के नोट क्यों जारी किए गए हैं. मेरे ख्याल से इस फ़ैसले के चलते जितना संकट बताया जा रहा है उससे यह संकट कहीं ज्यादा बड़ा है.” इतना ही नहीं वे उन 108 अर्थशास्त्रियों के पैनल में शामिल रहे जिन्होंने मोदी सरकार पर देश के जीडीपी के वास्तविक आंकड़ों में हेरफेर करने का आरोप लगाया था. इसमें ज्यां द्रेज, जयति घोष, ऋतिका खेड़ा जैसे अर्थशास्त्री शामिल थे. जब अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई तो कई अर्थशास्त्रियों ने उनके योगदान को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के हार्ड वर्क से जोड़कर बताना शुरू किया है. यह एक तरह के प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान के चलते ही किया गया जिसमें उन्होंने कहा था- “हार्ड वर्क हार्वर्ड से कहीं ज़्यादा ताक़तवर होता है.”
★ बान की मून ने चुना था मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स बनाने वाली टीम में : अभिजीत अभी MIT में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं. इसके पहले वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में भी शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने अपनी पत्नी एस्थर डुफ्लो, माइकल क्रेमर, जॉन ए. लिस्ट और सेंधिल मुलईनाथन के साथ मिलकर कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया. इन्हें 2004 अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज का फेलो बनाया गया. 2013 में संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल बान की मून ने अभिजीत बनर्जी को मिलेनियम डेवलपमेंट गोल बनाने वाली टीम में शामिल किया था.
★ प्राइज़ मनी में क्या मिलेगा : इस साल इकॉनमी के नोबेल पुरस्कार विजेताओं को 9.18 लाख अमरीकी डॉलर का पुरस्कार मिला है. ये पुरस्कार विजेताओं को आपस में बांटने होते हैं. यानी माइकल क्रेमर का हिस्सा रहने दें तो अभिजीत बनर्जी -इ्श्तर डूफ़ेलो को 6.12 लाख अमरीकी डॉलर मिलेंगे. अनुमान के हिसाब से देखें तो यही कोई चार करोड़ रुपये की रकम इन दोनों को मिलेगी.