भारत के संविधान में सभी व्यक्तियों को समता की गारंटी एवं सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित किये जाने के बाद भी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव और अत्याचार होना जारी है. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में लाने और उनके विभिन्न अधिकारों की रक्षा के मकसद से सरकार ने एक विधेयक पेश किया। इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए एक प्रक्रिया बनाने का प्रावधान किया गया है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किन्नरों (ट्रांसजेंडर्स) की सुरक्षा के लिए ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा)’ विधेयक को मंजूरी दी है.इस कानून को लाने के पीछे सरकार का मानना है कि इससे किनारे पर खड़े इस वर्ग के विरूद्ध लांछन, भेदभाव और गलत व्यवहार कम होने के साथ इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने से अनेक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लाभ पहुंचेगा। इससे समग्रता को बढ़ावा मिलेगा और ट्रांसजेंडर व्यक्ति समाज के उपयोगी सदस्य बन जायेंगे।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर एक ऐसा समुदाय है जो न तो पुरुष है न ही स्त्री है। ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक बहिष्कार से लेकर भेदभाव, शिक्षा सुविधाओं की कमी, बेरोजगारी, चिकित्सा सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
★ बिल को लेकर कब क्या हुआ :—-
● 5 अगस्त, 2019 को लोक सभा द्वारा ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 पारित किया गया।
● 19 जुलाई, 2019 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने यह विधेयक लोकसभा में पेश किया था।
● विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका लिंग जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाता है।
● विधेयक में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया।
● एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए संबंधित जिले के जिलाधिकारी के पास आवेदन कर सकता है।
● विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से बलात या बंधुआ श्रम, सार्वजनिक स्थलों के उपयोग को रोकने आदि के लिए 6 माह से 2 वर्ष के कारावास और अर्थदंड का प्रावधान किया गया है।
● विधेयक में ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों हेतु राष्ट्रीय परिषद (NCT) के गठन का प्रावधान है जिसके अध्यक्ष केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री होंगे।
● परिषद केंद्र सरकार को सलाह देगी व साथ ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में नीतियों कानूनों व परियोजनाओं के प्रभावी निगरानी भी करेगी।
★ लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय पूरी तरह खुश नहीं :–
ट्रांसजेंडर विधेयक के मुताबिक लैंगिक आधार पर ट्रांस को परिभाषित किया गया है. अगर किसी व्यक्ति का जेंडर उसके जन्म के जेंडर से मेल नहीं खाता है तो वो ट्रांसजेंडर कहलाएगा. जबकि विधेयक के अनुसार कोई व्यक्ति ट्रांसजेंडर तभी माना जाएगा जब जिला स्तर पर बनी एक कमेटी यह प्रमाणित करेगी. इस कमेटी में एक मेडिकल ऑफिसर, सॉयक्लॉजिस्ट, सरकारी अफसर और एक ट्रांसजेंडर शामिल होगा.
ट्रांसजेंडर समुदाय इसे अपनी निजता का उल्लंघन मानता है. ट्रांस रिजवान ने कहा, ‘यह मेरा निजी विचार होना चाहिए कि मुझे किस जेंडर के तौर पर पहचाना जाना चाहिए. अपनी शारीरिक पहचान का प्रमाण किसी और से लेना हमारे लिए अपमान होने जैसा है.’
ट्रांस की परिभाषा के अलावा यह समुदाय विधेयक में दिए सजा के प्रावधान से भी खुश नहीं है. ट्रांसमैन बिट्टू बताते हैं, ‘अगर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति पर कोई यौन हिंसा या शारीरिक हिंसा करता है तो उसे केवल दो साल की सजा दी जाती है, जबकि वही हिंसा अगर किसी गैर-ट्रांस व्यक्ति के साथ की गई हो तो उसमें सजा का प्रावधान अधिक है.’
बता दें, ट्रांसजेंडर विधेयक को लेकर सरकार द्वारा जारी ज्ञापन में कहा गया है कि ये लोग सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का शिकार होते हैं. इनकी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और नौकरियों तक पहुंच नहीं है. यह विधेयक बड़ी संख्या में ट्रांसजेंडरों के लिए मददगार साबित होगा और इन्हें मुख्यधारा में लाने में मदद करेगा.
● आइडेंटिटी के लिए सर्टिफिकेट :—-
इस बिल के मुताबिक, हर ट्रांसजेंडर के पास खुद को आदमी, औरत या थर्ड जेंडर (ट्रांसजेंडर) के तौर पर पेश करने का अधिकार होगा. हालांकि, खुद को ट्रांसजेंडर की पहचान दिलाने के लिए, ट्रांस-पर्सन को सर्टिफिकेट बनवाना होगा. इसके लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास अप्लाई करना होगा. एक रिवाइज्ड सर्टिफिकेट भी मिल सकता है. ये केवल तब होगा, जब एक व्यक्ति जेंडर कन्फर्म करने के लिए सर्जरी करवाता है. उसके बाद सर्टिफिकेट में संशोधन होगा.
इस बिल में ट्रांसजेंडर्स के लिए एक काउंसिल बनाने की बात भी कही गई है. इस काउंसिल का नाम होगा नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन.
● क्या काम होगा काउंसिल का :—–
ये काउंसिल केंद्र सरकार को सलाह देगी. और ये बताएगी कि पॉलिसीज़ का, नियम-कानून का और प्रोजेक्ट्स का ट्रांसजेंडर्स पर क्या असर होगा. ये काउंसिल ट्रांसजेंडर्स की दिक्कतों को कम करने का काम करेगी.
● कैसे बना ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल :—
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था. जिसमें कोर्ट ने सरकार से कहा कि ट्रांसजेंडर को ‘थर्ड जेंडर’ माना जाए. साथ ही ट्रांसजेंडर्स को ओबीसी कैटेगिरी में रखने का निर्देश भी दिया गया.
फिर डीएमके पार्टी के राज्यसभा सांसद तिरुची शिव ने सदन में एक बिल पेश किया. ये प्राइवेट मेंबर बिल था. थावरचंद गहलोत उस वक्त भी मोदी सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री थे. उन्होंने इस बिल का विरोध किया. कहा कि सरकार कोर्ट के फैसले के बाद पहले से ही पॉलिसी बना रही है. इसलिए बिल वापस ले लें. शिव अड़े रहे. कहा कि कागज में ट्रांसजेंडर्स की संख्या साढ़े चार लाख है, लेकिन असल में इनकी संख्या 20 लाख के आसपास हो सकती है. इन्हें वोट देने का अधिकार तो है, लेकिन भेदभाव से बचाने के लिए कोई भी कानून नहीं है. आखिरकार शिव का बिल राज्यसभा में अप्रैल 2015 में पास हो गया.
फिर आई लोकसभा की बारी. शिव तो राज्यसभा में ही रह गए. इस बिल को बीजेडी सांसद बैजयंत पांडा ने लोकसभा में पेश किया, प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर. अगस्त 2016 में. बैजयंत अब बीजेपी में हैं. उसके बाद इस बिल को सरकार ने टेकओवर कर लिया और अपना एक ड्राफ्ट पेश किया. इसे स्टैंडिंग कमेटी को रेफर कर दिया गया. स्टैंडिंग कमेटी मतलब पार्लियामेंट के अंदर सांसदों की एक छोटी सी कमेटी होती है, इसमें सभी दलों के सांसद शामिल होते हैं. ये ग्रुप पॉलिसी मैटर्स पर सुझाव देता है. कमेटी के सुझाए 27 बदलावों को सरकार ने मान लिया. और बिल दिसंबर 2018 में लोकसभा में पास हो गया. लेकिन 16वीं लोकसभा के खत्म होने के बाद, इसे फिर से नई लोकसभा में पेश किया गया. ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल 2016 की जगह, ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल- 2019 के नाम से.
● क्या बदलाव हुए :—–
– 2016 वाले बिल में ट्रांसजेंडर की परिभाषा थी, ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जोकि न तो पूरी तरह से महिला है और न ही पुरुष, अथवा वह महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन है, अथवा न तो महिला है और न ही पुरुष.’ अब ये परिभाषा बदल दी गई है.
– 2018 में लोकसभा में जो बिल पास हुआ था, उसमें भीख मांगने को अपराध के दायरे में रखा गया था. लेकिन इससे ट्रांसजेंडर कम्युनिटी कमजोर हो रही थी. क्योंकि इंडिया में ज्यादातर ट्रांसजेंडर्स भीख मांगने के लिए इसलिए मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास नौकरी के ज्यादा मौके नहीं होते. नए बिल में से इस प्रावधान को हटा दिया गया है.
– स्क्रीनिंग कमेटी को हटा दिया गया. पहले बिल में एक प्रावधान था, कि किसी व्यक्ति को ट्रांसजेंडर होने का सर्टिफिकेट लेने के लिए डिस्ट्रिक्ट स्क्रीनिंग कमेटी और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास जाना होता था. अब स्क्रीनिंग कमेटी वाली प्रोसेस को हटा दिया गया है.