मकर संक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों मे मनाया जाने वाला सर्वमान्य पर्व है। अलग अलग राज्य मे भले ही लोगों का पर्व मनाने का तरीका भले अलग हो लेकिन इस पर्व का मूल भाव, दर्शन व कारण एक ही है। खेतों मे लहलहाती सरसों और अन्य फसलें किसान को सुख देती है। सूर्य देव की उत्तरायणी ऊष्मा हमारी आत्मा को तृप्त करती है।
जनवरी की कडकडाती ठंड और उसी जनवरी मे इस फेस्टिवल का आना। एक दिन पहले ही जहाँ चूड़ा दही खाने की खुशी होती है तो वही अगले दिन हाड़ काँपा देने वाली ठंड मे नहाने का एक टेंशन भी बनता है ,क्योंकि एक दिन पहले ही ये हिदायत दी जाती है कि कल जो नहाएगा उसी को चूड़ा दही मिलेगा।
अगले दिन सुबह होती है और सब घर के बड़े स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देते है और दान करते है । तो आइए जानते है कि ये खिचड़ी क्या है, क्यों मनाई जाती है और क्या मान्यताएं है।
क्यो मनाई जाती है संक्रांति :
मकर संक्रांति का सीधा संबंध पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की दशा से है। इस दिन सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि मे प्रवेश करते है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते है। मतलब धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य देव की और मुड़ जाता है। दिन धीरे धीरे लम्बे होने लगते है और रातें छोटी होने लगती है।
वैसे तो इस पर्व को मनाने के लोगों ने अपने अपने रीति रिवाज़ बनाये है। कहि कहि ये भी मान्यता है कि जब फसलें काटने योग्य हो जाती है या कट चुकी होती है तो ये पर्व मनाया जाता है।
देश के किन किन राज्य मे कैसे कैसे मनाई जाती है मकर संक्रांति :
भारत के अलग अलग राज्यों मे लोग अपने अपने तरीक़े से इस पर्व को मनाते है तो आइए चलते है और देखें कि किस किस राज्य मे कैसे कैसे ये पर्व मनाया जाता है :-
पंजाब : वर्ष 1705 ई. मे गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों के ख़िलाफ़ पंजाब के मुक्तसर मे आख़िरी लड़ाई लड़ी थी। उनके चालीस शिष्य इस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस दिन को याद करने के लिए और अपने शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए मुक्तसर मे एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस पर्व को पंजाब मे “माघी” या “लोहिड़ी” के नाम से जाना जाता है। इस दिन सिख समुदाय के लोग आग जलाकर धूमधाम से लोहड़ी मनाई जाती है। भांगड़ा, गिद्धा होता है और नई फ़सल के कटने के उत्साह लोगों के चेहरे पे साफ़ दिखता है।
उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश मे यह पर्व खिचड़ी के रूप मे मनाया जाता है। प्रयागराज मे संगम के तट पर माघ मेले का पहला शाही स्न्नान होता है। गोरखपुर मे गोरक्षनाथ परम्परा मे खिचड़ी के दिन देश विदेश के भक्त नाथ परम्परा के आदियोगी गोरखनाथ जी के मंदिर मे खिचड़ी चढ़ाते है। यहाँ ब्रम्ह महूर्त मे पहली खिचड़ी नेपाल के राजपरिवार की चढ़ाई जाती है।
इस तरह चूड़ा, दही, तिलवा, बादाम पट्टी, और फिर शाम को खिचड़ी बना कर इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।
राजस्थान : इस पर्व को राजस्थान मे कुछ अलग ही तरीक़े से मनाया जाता है। यहाँ के हर घर मे तिल पट्टी, गज़क, पकौड़ी, और पुआ बनता है। विवाह के बाद पहली संक्रान्ति देखने वाली नई नेवेली दुल्हन को उसके माता पिता अपने दामाद को विशेष संक्रान्ति भोज के लिए बुलाते है।
उड़ीसा : इस पर्व को उड़ीसा मे लोग अपने घरों मे नारियल, केला, गुड़, काली मिर्च, गन्ना, छेना आदि को नए चावल मे मिलाकर तैयार नैवेद्य के साथ इस दिन का स्वागत करते है।
कर्नाटक : कर्नाटक मे इस दिन को फ़सल की कटाई से जोड़के देखा जाता है। इस दिन कन्नड़ युवतियों मे काफ़ी उत्साह देखने को मिलता है। वे नए कपडे पहनकर प्लेट मे सफेद तिल, मूंगफली,सूखा नारियल और गुड़ रखकर अपने परिवार और अपने दोस्तों को उपहार देती है। घर घर मे रंगोली बनती है और पूरे प्रदेश मे पतंग उड़ाने का भी विशेष रीति रिवाज़ है। इस पर्व को यहाँ ‘एलु विरोधू’ बोला जाता है।
कुमाऊँ : कुमाऊँ मे इस दिन को उत्तरायणी कहा जाता है। इस दिन गेहूँ के आटे को गुड़ और घी के साथ मिलाकर इससे अलग अलग आकार के जैसे : चाक़ू, तलवार, चंद्रमा, आदि वस्तुएं बनाई जाती है। फ़िर इनको घी मे तलकर पकाते है और इनकी माला बनाकर बीच बीच मे एक संतरा पियो दिया जाता है। इस माला को यहाँ को यहाँ “घुघती” और “काला कौवा” कहते है। गले मे यह माला पहनकर बच्चे सुबह से अपने घरों से निकल कर मैदान मे उड़ रही घुमंतू चिड़िया और कौवों को माला से मीठी मीठी आटा तोड़कर खिलाते है।
बिहार और झारखंड : इस दिन लोग सुबह सुबह उठकर पवित्र नदियों, पोखरों मे स्नान कर सूर्य देवता को अर्घ्य देते है। देश के अन्य भागों की तरह ही यहाँ भी गुड़ और तिल से बने पकवानों पर अधिक जोर रहता है। बहुत से लोग इस दिन चूड़ा दही और बिना पानी के नमक चीनी से बना कोंहड़ा बेहद पसंद किया जाता है। इस दिन का भोजन महिलाएं समूह मे बनाती है।
आसाम : आसाम मे इस पर्व को ‘भोगली बिहू ‘ के नाम से मनाते है। सुंदर सुंदर कपड़े और अच्छे अच्छे संगीत से सजा बिहू नृत्य पूरी दुनिया मे प्रसिद्ध है। इस दिन राज्य मे आग जलाकर सामूहिक नृत्य गायन के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। इसमें नए युवक युवतियों विशेष रूप से पारम्परिक परिधान पहनकर तैयार होते है।
श्रीकृष्ण ने भी बताया है इसको शुभ :
5000 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण के 6 महीनों को भी शुभकाल बताया गया है। गीता मे श्रीकृष्ण कहते है कि जब सूर्यदेव उत्तरायण होते है और धरती पे ऊष्मा और प्रकाश की वर्षा हो रही होती है तो ऐसा समय शरीर को भी त्यागने के लिए उचित है और शय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने शरीर टैब तक नही त्यागा था जब तक सूर्यदेव उत्तरायण नही हो गए थे।
पतंग उड़ाना है सेहत के लिए वरदान : दोस्तों! हमारे खिचड़ी के दिन पतंग लगभग पूरे देश मे उड़ाई जाती है। क्या गुजरात, क्या उत्तर प्रदेश और क्या बिहार हर तरफ पतंग से पूरा आसमां ढंक जाता है। कुछ लोग ये सोचते है कि पतंग उड़ाना एक फ़िजूल खर्ची है लेकिन ये हमारे सेहत से जुड़ी एक बहुत सुंदर क्रियाविधि है।
दोस्तों ! हमारे पूर्वजों ने एक इतनी सुंदर परम्परा को हमारा सेहत से जोड़ दिया जिससे हमारा शरीर सूर्य की ऊष्मा के बीच कुछ समय तक रहता है। पतंग उड़ाने के साथ साथ सूर्य का प्रकाश हमारी त्वचा, हड्डियों और पूरे बॉडी के लिए लाभकारी होती है। इससे हमारे बॉडी मे होने वाली विटामिन डी की कमी को पूरा कर सकता है