चे ग्वेरा एक ऐसा नाम है जिसको भारत में शायद कोई जनता हो या न हो, लेकिन उसके चित्र बनी हुयी टीशर्ट को भारत के लाखो युवा पहनते है | 50 और 60 के दशक में चे ग्वेरा वो शख्स है जिसने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को चुनौती दे दी थी | युवाओं के हको की लड़ाई के लड़ने वाले चे ग्वेरा में अपना जीवन उनके लिए न्योछावर कर दिया था | आशा की किरण जगाने वाले Che Guevara चे ग्वेरा को आज पुरी दुनिया जानती है और उसके पोस्टर पुरी दुनिया में पहुचे जिन्होंने वर्तमान में टीशर्ट पर अपना आधिपत्य जमा लिया |
क्यूबा की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाने वाले चे ग्वेरा अर्जेंटीना के मार्क्सवादी क्रन्तिकारी थे ।
चे गेवरा का जन्म 14 जून, 1928 एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. दो वर्ष की आयु में उन्हें दमा हो गया और वे आजीवन इस रोग से ग्रस्त रहे | उनके माता पिता कोरडोबा आ गये ताकि वहा की जलवायु में उनकी दशा में सुधार हो सके | हालांकि चे हमेशा रोगी रहे | अपनी पढाई पुरी करने के बाद वो क्यूबा आ गये थे और कम्युनिस्ट पार्टी से जुडकर विद्रोह में लग गये थे |
★ आराम की ज़िन्दगी को कहा अलविदा :
उन्होंने अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई की थी । वो डॉक्टर बनने के बाद आराम की ज़िंदगी बसर कर सकते थे. चे यूनिवर्सिटी की पढाई पुरी करने के बाद 1954 मेक्सिको आ गया था | यहाँ पर उसने विशेष रूप से कुष्ठ रोग की चिकित्सा सीख रहे थे | इसके बाद वो पेरू में कुष्ठ कोलोनी में रोग अध्ययन करने लगे | लेकिन अपने आसपास ग़रीबी और शोषण देखकर युवा चे का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ़ हो गया और बहुत जल्द ही इस विचारशील युवक को लगा कि दक्षिणी अमरीकी महाद्वीप की समस्याओं के निदान के लिए सशस्त्र आंदोलन ही एकमात्र तरीक़ा है.
1955 में यानी 27 साल की उम्र में चे की मुलाक़ात फ़िदेल कास्त्रो से हुई. जल्द ही क्रांतिकारियों ही नहीं, लोगों के बीच भी ‘चे’ एक जाना-पहचाना नाम बन गया. क्यूबा ने फ़िदेल कास्त्रो के क़रीबी युवा क्रांतिकारी के रूप में चे को हाथों-हाथ लिया.
★ क्यूबा के विकास मे रहा योगदान :
केवल 27 वर्ष की उम्र में 1955 में चे की मुलाकात वहा के क्यूबा के क्रांतिकारी फिदेल क्रस्तो से हुयी | चे अपनी शक्तिशाली छवि के चलते जल्द ही वहा के लोगो में जाना पहचाना जाने लगा | क्रांति में अहम भूमिका निभाने के बाद चे 31 साल की उम्र में बन गए क्यूबा के राष्ट्रीय बैंक के अध्यक्ष और उसके बाद क्यूबा के उद्योग मंत्री. 1964 में चे संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्यूबा की ओर से भाग लेने गए. उस समय उनकी उम्र 36 वर्ष थी |
★ मोटरसाइकिल से की अर्जेंटीना से अमेरिका की यात्रा :
चे ने अपने जीवन में दो बड़ी यात्राये की थी | चे ने अपनी पहली यात्रा 1950 में उत्तरी अर्जेंटीना के ग्रामीण इलाको में साइकल से की थी | अपनी इस पहली यात्रा में वो अकेले 4500 किलोमीटर चले थे | इसके बाद 1951 में उसने दक्षिणी अमेरिका के कई हिस्सों की लगभग 8000 किमी की यात्रा मोटरसाइकिल से की थी जिसे उसके लिखे नोट के आधार पर The Motorcycle Diaries नामक पुस्तक में संग्रहित किया गया | इस यात्रा में चे अर्जेंटीना से शुरू होते हुए चिली ,पेरू इक्वाडोर ,वेनेजुएला ,पनामा ,मिआमी और फ्लोरिडा की यात्रा केवल 20 दिन में पुरी की | उनकी इस यात्रा में उनका एक दोस्त ब्युनो उसके साथ था |
★ Che Guevara की भारत यात्रा :
बहुत की कम लोगो को ये पता होगा कि चे ने भारत भ्रमण भी किया था | ये बात तब की है जब वो क्यूबा सरकार में एक मंत्री के तौर पर कार्यरत थे | भारत भ्रमण से चे को कई बाते सीखने को मिली जैसे देश का विकास करने के लिए तकनीकी का विकास होना जरुरी है जिसके लिए वैज्ञानिक संस्थान होना आवश्यक है | अपनी इस यात्रा के बारे में एक रिपोर्ट चे ने 1959 में फिदेल क्रस्तो को दी थी | अपनी रिपोर्ट में उन्होंने नेहरु जी के स्वागत और आत्मीयता का जिक्र भी किया था |
एक क्रांतिकारी के साथ कवि ,लेखक और शतंरज खिलाड़ी : चे एक लेखक ,कवि ,गणितज्ञ और दार्शनिक था | चे ने अपने स्कूल के दिनों से ही कई उपलब्धिया हासिल कर ली थी | 12 साल की उम्र से उसने शतरंज के आयोजनों में भाग दिया था | चे के अपनी युवावस्था से ही एक उत्साही कवि था | चे के घर से 3000 से भी ज्यादा पुस्तके मिली थी जिससे पता चलता है कि उस पढने का कितना शौक था | उसने अपनी शौक के चलते गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई की थी |\
गुरिल्ला युद्ध की नियम पुस्तक और बोलीविया डायरीज और अन्य कई किताबें लिखने वाले चे ग्वेरा 1965 में कांगो पहुंचे जहां उन्होंने क्रांति लाने का प्रयास किया और फिर बोलीविया पहुंचे जहां विद्रोह की चिंगारी को मशाल में बदलने का कार्य चे ने किया। अमेरिका की खुफ़िआ संस्थाएं उन्हें ढूंढ रही थी और चे ग्वेरा आम लोगों में क्रांति की चिंगारी पैदा करने में व्यस्त थे। अंततः सेना की सहायता से खुफिया संस्थाओं ने चे को मार कर 9 अक्टूबर 1967 को अमर कर दिया। चे ग्वेरा को टाइम मैगज़ीन ने सदी के सबसे प्रभावशाली 100 व्यक्तियों में से एक माना और उनकीस तस्वीर “गेरिलेरो एरोइको(वीर गुरिल्ला)” को विश्व की सबसे प्रसिद्द तस्वीर मानी जाती है।
क्रांति जब-जब आएगी, तब-तब चे ग्वेरा का नाम लिया जायेगा.
क्रांतिकारियों के बारे में यह कहना उचित नहीं होगा कि उनका नाम सबसे शीर्ष पर लिया जाएगा क्योंकि क्रांति सबके लिए समान रूप से आती है.
एर्नेस्टो चे ग्वेरा साधारणतः che guevara नाम से भी जाने जाते है. वे अर्जेंटीना के मार्क्सवादी क्रन्तिकारी, दर्शनशास्त्री, लेखक, नेता और डिप्लोमेट थे. उनका जन्म 14 जून 1928 को अर्जेंटीना के रोसरिओ में हुआ था. पांच संतानों के आर्जेंटीयन परिवार के वे सबसे बड़े बेटे है.उन्होंने दक्षिणी अमेरिका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया.चे ग्वेरा एक जुनूनी क्रन्तिकारी थे. अपने अदम्य दुस्साहस, निरंतर संघर्षशीलता, अटूट इरादों व पूंजीवाद विरोधी मार्क्सवादी लेनिनवादी विचारधारा के कारन ही चे ग्वेरा आज पूरी दुनिया में युवाओ के महानायक है.
यात्राओं से बदला जीवन
सही चल रहा था सब कुछ… अर्नेस्तो ग्वेरा डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे. न जाने कौन सी बेचैनी थी जिसके कारण अपने एक दोस्त के साथ इन्होंने पूरे लैटिन अमेरिका की यात्रा करने की ठानी. इस यात्रा के दौरान अर्नेस्तो ग्वेरा की आंखों ने, जो देखा वो दिल पर गहरा प्रहार करने लगा. उन्हें पता चल चुका था कि लैटिन अमेरिका के हालात सिर्फ़ और सिर्फ़ ग़रीबी के कारण बिगड़े हैं. साम्राज्यवाद और पूंजीवाद ने जिस तरह से पूरे महाद्वीप को जकड़ रखा है, उससे बचने का एक ही तरीका था क्रांति… विश्व क्रांति.
समाजवाद के लिए चे ने पूरा विश्व घूम कर समर्थन जुटाना शुरू किया. चे को लिखने का बहुत शौक था. वो डायरी लिखा करते थे. डायरी का नाम है ‘बोलीविया डायरी’. उसमें चे ने यात्रा और आंदोलन के दौरान की आंखों-देखी लिखी है. 1964 में चे ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण दिया. कई देशों के वरिष्ठ मंत्री इनका भाषण सुनने के लिए आये. चे ने क्यूबा की ओर से इस भाषण में भाग लिया था. कॉन्गो में che guevara ने लोगों को क्रांतिकारी बनाने के लिए गुरिल्ला पद्धित सिखाई थी. इसके बाद बोलीविया में उठते विद्रोह को आग बनाने का काम भी चे ने ही किया. . फिदेल कास्त्रो के साथ जब ग्वेरा की मुलाकात हुई तो जल्द ही क्रांतिकारियों का समूह ग्वेरा को चे के नाम से पुकारने लगा. अपने आसपास जिस तरह से चे ने यात्राओं का सहारा लेते हुए दर्द देखा था, वो दर्द ताउम्र उनमें ज़िंदा रहा. मार्क्सवाद की ओर झुकाव हो गया और तर्क के साथ-साथ सशस्त्र आंदोलन उन समस्यओं के निदान का एक तरीका बन गया. 31 वर्ष की उम्र में चे को फिदेल ने राष्ट्रीय बैंक का अध्यक्ष और देश का उद्योग मंत्री बना दिया, लेकिन वो राजधानी में बैठकर काम नहीं करना चाहते थे बल्कि ज़मीनी स्तर पर जाकर पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ़ आंदोलन को और मजबूत करना चाहते थे.
डॉक्टर से क्रांतिकारी बने चे ग्वेरा को क्यूबा के बच्चे-बच्चे भी पूजते हैं. वो अपनी मौत के 50 साल बाद भी क्यूबा के लोगों के बीच जिंदा है. इसका कारण है कि उन्होंने क्यूबा को आजाद कराया था. चे ग्वेरा क्रांति के नायक माने जाने वाले फिदेल कास्त्रो के सबसे भरोसेमंद थे. फिदेल और चे ने मिलकर ही 100 ‘गुरिल्ला लड़ाकों’ की एक फौज बनाई और मिलकर तानाशाह बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंका था.बतिस्ता को अमेरिका का सपोर्ट हासिल था और इस तरह से बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंकने से अमेरिका भी पूरी तरह से हिल गया था. 1959 में क्यूबा को आजाद कराया. इसके बाद फिदेल कास्त्रो आजाद क्यूबा के पहले प्रधानमंत्री बने, जबकि चे ग्वेरा को महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार सौंपा गया. करीब 17 सालों तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहने के बाद फिदेल कास्त्रो राष्ट्रपति बने और 2008 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
बोलिविया से गिरफ्तार किया और मार दिया गया
चे ग्वेरा को 8 अक्टूबर 1967 को बोलिविया से गिरफ्तार किया गया और गिरफ्तारी के अगले ही दिन उन्हें मार दिया गया. बोलिविया को अमेरिका का सपोर्ट था और चे को गिरफ्तार करने के बाद बोलिवियाई सरकार ने चे के दोनों हाथ काट दिए और उनके शव को एक अनजान जगह पर दफना दिया था.
Top quotes of Che Guevara
“Many will call me an adventurer, and that I am…only one of a different sort: one who risks his skin to prove his truths.”
“If you tremble with indignation at every injustice then you are a comrade of mine.”
“We cannot be sure of having something to live for unless we are willing to die for it.”