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★ सिंधु घाटी की सभ्यता :—  लोथल शहर

★ सिंधु घाटी की सभ्यता :— लोथल शहर

Posted on December 18, 2019April 8, 2024 By admin

लोथल प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर है। लगभग 2400 ईसापूर्व पुराना यह शहर भारत के राज्य गुजरातके भाल क्षेत्र में स्थित है और इसकी खोज सन 1954 में हुई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस शहर की खुदाई 13 फ़रवरी 1955 से लेकर 19 मई 1956 के मध्य की थी। लोथल, अहमदाबाद जिले के ढोलकातालुका के गाँव सरागवाला के निकट स्थित है।अहमदाबाद-भावनगर रेलवे लाइन के स्टेशन लोथल भुरखी से यह दक्षिण पूर्व दिशा में 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं मिले हैं, बल्कि पूरी बस्ती एक ही दीवार से घिरी थी। यह छः खण्डों में विभक्त था।

जैसे ही आप इस खुदाई स्थल पर पहुँचते हैं तो सबसे पहले आपको वहाँ पर लोथल का संग्रहालय नज़र आता है। इस संग्रहालय के पास ही मुख्य खुदाई स्थल बसा हुआ है और वहाँ तक पहुँचने के लिए आपको धूल भरे रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।

★ कौन कौन शहर है सबसे नज़दीक :—–

लोथल अहमदाबाद, राजकोट, भावनगर और ढोलका शहरों से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा है जिनमें से सबसे करीबी शहर ढोलका और बगोदरा हैं।

साबरमती नदी की प्राचीन धारा के द्वारा शहर से जुड़ी थी, जो इन स्थानों के मध्य एक व्यापार मार्ग था। उस समय इसके आसपास का कच्छ का मरुस्थल, अरब सागर का एक हिस्सा था। प्राचीन समय में यह एक महत्वपूर्ण और संपन्न व्यापार केंद्र था जहाँ से मोती, जवाहरात और कीमती गहने पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक भेजे जाते थे। मनकों को बनाने की तकनीक और उपकरणों का समुचित विकास हो चुका था और यहाँ का धातु विज्ञान पिछले 4000 साल से भी अधिक से समय की कसौटी पर खरा उतरा था।

1961 में भारतीय पुराततव सर्वेक्षण ने खुदाई का कार्य फिर से शुरु किया और टीले के पूर्वी और पश्चिमी पक्षों की खुदाई के दौरान उन वाहिकाओं और नालों को खोद निकाला जो नदी के द्वारा गोदी से जुड़े थे। प्रमुख खोजों में एक टीला, एक नगर, एक बाज़ार स्थल और एक गोदी शामिल है। उत्खनन स्थल के पास ही एक पुरात्तत्व संग्रहालय स्थित हैं जिसमें सिंधु घाटी से प्राप्त वस्तुएं प्रदर्शित की गयी हैं।

★ लोथल में मनकों का कारख़ाना :—-  लोथल मे आपको मनके बनाने का कारख़ाना नज़र आयेगा जो खुदाई के दौरान पाया गया था। यहाँ पर भट्टियाँ और कुछ चूल्हे भी थे, जिनपर बड़े से मटके के समान दिखनेवाले कुछ ढांचे से बने हुए थे। इन में से अधिकतर संरचनाओं को उनके मूलस्थान से विस्थापित किए बिना ही पुनःनिर्मित किया गया था।

★ लोथल की एक भट्टी :—- इस कारखाने में बनाए जानेवाले मनके बहुत ही बारीक हुआ करते थे। इन मनकों के कुछ नमूने आप लोथल के संग्रहालय में देख सकते हैं। सफ़ेद रंग के इन बरीक मनकों को आप खुली आँखों से नहीं देख सकते। संग्रहालय में प्रदर्शित इन मनकों के सामने आवर्धक शीशा डाला गया है। इससे आप इन मनकों को परखनली की शीशी में स्वतंत्र रूप से देख सकते हैं और उनसे बनाए गए गहने भी देख सकते हैं। इन मनकों की सराहना करते-करते आप हमारे पुरखों की शिल्पकला की प्रशंसा में खो जाते हैं, जो शायद 3000 से भी अधिक वर्ष पुरानी है।

★ विश्व का प्राचीनतम गोदी बाड़ा – लोथल :—– इस नगर के पास में ही एक कुंआ है जो आम आयताकार ईंटों के बजाय समद्विबाहु समलंब के आकार की ईंटों से बनाया गया है, ताकि उन्हें एक साथ जोड़ने पर वे वृत्ताकार रूप ग्रहण करे। इससे पहले मैंने इस प्रकार की संरचना कहीं नहीं देखी थी। इसी के बगल में लोथल का गोदी बाड़ा बसा हुआ है।

★ लोथल का चित्रांकन एक संग्रहालय में :—– यह गोदी बाड़ा यानी एक आयताकार झील है जिसमें बनी हुई नाली उसे एक नहर से जोड़ती है जिससे कि जरूरत के हिसाब से उसमें पानी का स्तर बना रहे। यह गोदी बाड़ा अन्य किसी भी जल स्रोत के जैसा ही है, सिवाय उसके ईंट चिनाई के जो बहुत ही प्राचीन शैली की लगती है। और फिर इस पूरे दृश्य को संपूर्ण बनाने के लिए आपको अपनी कल्पना शक्ति से माल से लदी उन छोटी-छोटी नावों की कल्पना करनी है, जो यहाँ पर आती थीं, खड़ी होती थीं और लाए हुए माल को उतारकर, लोथल या आस-पास के शहरों में उत्पादित वस्तुओं को फिर से लादकर सिंध – जो अरब सागर के उस पार बसा हुआ है, जाने के लिए निकलती थीं।

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