भारतीय राजनीति में सत्ता से जुड़े रहने के लिए सिद्धांतों के साथ समझौता करने के तो कई उदाहरण मिल जाएंगे. लेकिन इस देश में एक राजनीतिज्ञ ऐसा भी हुआ था जिसने अपनी पार्टी की कमजोर होती जड़ों को फिर से मजबूत करने के लिए न सिर्फ सत्ता को छोड़ा बल्कि आधी सदी पहले नि:स्वार्थ राजनीति के एक ऐसे उसूल को कायम किया जिसकी नजीर आज भी पेश की जाती है.
★ के कामराज का जन्म , परिवार :—–
के. कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को विरुधुनगर, मदुरै, तमिलनाडु में हुआ था। वे ‘ नाडर जाति’ से संबंध रखते थे। उनके पिता का नाम श्री नतत्न मायकार कुदुमबम्ब था। वे गाँव के मुखिया थे | इनकी माता का नाम श्रीमती शिवकामी था।
★ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में :—
13 अप्रैल 1954 को कामराज पहली बार मद्रास के मुख्यमंत्री बने. इस दौरान उन्होंने हर गांव में प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में हाईस्कूल खोलने की मुहिम चलाई. उन्होंने 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की योजना चलाई.
उन्होंने स्वतंत्र भारत में पहली बार मिडडे मील योजना चलाई. उनका कहना था कि राज्य के लाखों गरीब बच्चे कम से कम एक वक्त तो भरपेट भोजन कर सकें. उन्होंने मद्रास के स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना की शुरुआत की.
इसी तरह मद्रास में तय समय के भीतर सिचाईं परियोजनाओं को पूरा करने और हर गांव में आजादी के महज 15 साल बाद बिजली पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें जाता है. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनकी तारीफ करते हुए कहा था कि मद्रास भारत में सबसे अच्छा प्रशासित राज्य है.
★ कांग्रेस के लिए कामराज प्लान :——
तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद गांधीवादी कामराज ने 02 अक्टूबर 1963 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की बात कही. उनका कहना था कि कांग्रेस के सब बुजुर्ग नेताओं में सत्ता लोभ घर कर रहा है. उन्हें वापस संगठन में लौटना चाहिए. लोगों से जुड़ना चाहिए.
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को कामराज की यह योजना बहुत पसंद आई. उन्होंने इसे पूरे देश में लागू करने का मन बनाया. इस योजना को भारतीय राजनीति में कामराज प्लान के नाम से जाना जाता है.
इस योजना के चलते छह कैबिनेट मंत्रियों और छह मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा. कैबिनेट मंत्रियों में मोरारजी देसाई, लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम और एसके पाटिल जैसे लोग शामिल थे. वहीं, उत्तर प्रदेश के चंद्रभानु गुप्त, एमपी के मंडलोई, ओडिशा के बीजू पटनायक जैसे मुख्यमंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दिया. कामराज को इसके बाद कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया.
★ नेहरू की मृत्यु के बाद निभाई बहुत अहम भूमिका :———–
कामराज को आजाद भारत के पहले किंगमेकर राजनेता के तौर पर भी जाना जाता है. दो बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलने के बावजूद उन्होंने यह पद नहीं लिया. साल 1964 में नेहरू की मौत के बाद कांग्रेस पार्टी नेतृत्व के संकट से जूझ रही थी. ऐसे में बतौर कांग्रेस अध्यक्ष कामराज ने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर पहुंचाया. इसके बाद लालबहादुर शास्त्री की आकस्मिक मौत के बाद जब एक बार फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली हुई तब भी कामराज के पास उसे हासिल करने का अच्छा मौका था.
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के डीक्लासिफाइड दस्तावेजों के मुताबिक उस वक्त सीआईए भी यह मान के चल रही थी कि कामराज ही अगले प्रधानमंत्री होंगे. लेकिन कामराज एक बार फिर से सत्ता से दूर ही रहे और उन्होंने इंदिरा गांधी को देश की तीसरी प्रधानमंत्री बनवा दिया.
★ कांग्रेस पार्टी मे था बहुत बड़ा योगदान :——–
एक गरीब परिवार में जन्म लेने वाले के कामराज ने आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के साथ जुड़ कर तमिलनाडु में जमीनी स्तर पर कांग्रेस पार्टी को खड़ा करने में अहम योगदान दिया था. कामराज प्लान से नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उन्हें 1963 में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद कामराज ने सत्ता का कभी कोई पद नहीं लिया. साल 1930 में महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह के दौरान पहली बार जेल जाने वाले कामराज देश को आजादी मिलने तक कई बार जेल गए और उनके जीवन के करीब आठ साल जेल में ही बीते. साल 1954 में कामराज पहली बार तमिलनाडु या उस वक्त के मद्रास सूबे से मुख्यमंत्री बने.
★ इंदिरा ने दी कामराज को मात
कामराज और उनके सहयोगियों को कांग्रेस के भीतर ‘सिंडिकेट’ के नाम से जाना जाता था. नेहरू की मौत के बाद ‘सिंडिकेट’की ताकत बहुत बढ़ गई थी. इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस पार्टी में कामराज की पकड़ को कमजोर करने का काम शुरू कर दिया. सिंडिकेट पार्टी चला रहा था और इंदिरा सरकार चला रही थीं. पार्टी और सरकार के बीच मतभेद इस स्तर पर पहुंच गए कि साल 1969 में औपचारिक रूप से पार्टी का विभाजन हो गया. साल 1971 के आम चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस को जनादेश मिला और कामराज की राजनीति अवसान की ओर बढ़ गई. कामराज ने दो अक्टूबर 1963 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर कामराज प्लान की शुरूआत की थी।
★ कामराज की मौत :———
जीवन भर महात्मा गांधी के सिखाए आदर्शवाद की राजनीति करने वाले के कामराज गांधी जयंती के ही दिन यानी दो अक्टूबर 1975 को इस दुनिया को छोड़ कर चले गए.
जनसेवा और साफ-सुथरी राजनीति के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले के कामराज को उनकी मौत के एक साल बाद देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.