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★अकबर को चुनौती देने वाली रानी : दुर्गावती ★

★अकबर को चुनौती देने वाली रानी : दुर्गावती ★

Posted on November 11, 2019January 20, 2021 By admin No Comments on ★अकबर को चुनौती देने वाली रानी : दुर्गावती ★

गढ़मंडल के जंगलो में उस समय एक शेर का आतंक छाया हुआ था. शेर कई जानवरों को मार चुका था. रानी कुछ सैनिको को लेकर शेर को मारने निकल पड़ी. रास्ते में उन्होंने सैनिको से कहा, ” शेर को मैं ही मारूंगी” शेर को ढूँढने में सुबह से शाम हो गई. अंत में एक झाड़ी में शेर दिखाई दिया, रानी ने एक ही वार में शेर को मार दिया। सैनिक रानी के अचूक निशाने को देखकर आश्चर्यचकित रह गये.ये वीर महिला गोडवाना के राजा दलपतिशाह की पत्नी रानी दुर्गावती थी।

★ दुर्गावती का जन्म और बचपन :-  रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।

★ रानी का विवाह :- दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति अलग अलग थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था।

★ राजा के निधन के बाद रानी का जीवन :-

दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।

★ अकबर और दुर्गावती :—–

तथाकथित महान् मुग़ल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ़ ख़ाँ पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास ‘नरई नाले’ के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया।

इस युद्ध में 3,000 मुग़ल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।

★ रानी का अंतिम समय :——

रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।

रानी दुर्गावती के नाम पर धरोहर

● 1983 में मध्यप्रदेश की सरकार ने जबलपुर यूनिवर्सिटी का नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रखा. भारत सरकार ने 24 जून 1988 को उनके नाम पर पोस्टल- स्टाम्प जारी किया था. बुंदेलखंड में रानी दुर्गावती के नाम पर कीर्ति स्तम्भ, रानी दुर्गावती संग्रहालय एवं मेमोरियल और अभ्यारण्य हैं.

● रानी दुर्गावती विविध व्यक्तित्व की धनी थी. वो सौन्दर्य, दिमाग साहस और वीरता से सम्पन्न थी साथ ही सुंदर, वीर और महान शासक थी, उनमें कुशल प्रशासन की भूमिका निभाने की भी योग्यता थी. उनका आत्म सम्मान उन्हें मृत्यु तक लड़ने के लिए प्रेरित करता रहा था. उन्होंने जहां पर आत्म-बलिदान दिया था वो जगह हमेशा स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहेगी

Biography, History

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