वायनाड जिले का नाम, वायल नाडू से लिया गया है, जिसका अर्थ है, धान के खेतों की भूमि। वायनाड केरल के बारह जिलों में से एक है जो कन्नूर और कोझिकोड जिलों के मध्य स्थित है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। पश्चिमी घाट के हरे भरे पर्वतों के बीच स्थित वायनाड का प्राकृतिक सौन्दर्य आज भी अपने प्राचीन रूप में है। वायनाड की संस्कृति मुख्य रूप से जनजातीय उन्मुख है। यह जिला इलायची, कॉफी, चाय,और मसालों जैसी नकदी फसलों के उत्पादन के साथ राज्य के सबसे बड़े विदेशी मुद्रा कमाई में से एक है
यह एक सुरम्य पठार है जो तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों की सीमाओं पर पश्चिमी घाट के पहाड़ों के बीच घूमने वाली 700 से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। वरदान: इस स्थल का अछूता प्राकृतिक सौंदर्य एक पर्यटक के अंत:करण को भावविभोर कर देता है। हरियाली की अद्भुत छटा अपने मोहपाश में इस तरह बांधती है कि यहां से बाहर निकलने का मन ही नहीं करता। पहाड़ियों पर फैली अथाह हरियाली के नीचे केले, अनन्नास, नारियल, कॉफी, काजू और काली मिर्च की फसलों का रंग मोह लेने से पहले मन को गहरे हरे रंग में सराबोर करते हुए चलता है। दरअसल, वायनाड बहुत सुंदर है और उसकी सुंदरता तक पहुंचने के लिए बहुत ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। जिले को प्रकृति प्रदत्त ऊंचाई का अद्भुत फायदा मिला है। विषुवतीय वर्षा वन के लिए सबसे जरूरी चीज वर्षा इसी ऊंचाई का परिणाम है। इससे यह स्थल बागवानी से लेकर सामान्य कृषि के लिए काफी उपयुक्त हो जाता है। यही ऊंचाई यहां सुंदर प्राकृतिक दृश्यावलियां निर्मित करती है, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है। घुमावदार सड़कें पहाड़ियों से लिपटी रस्सी की तरह ऊपर बढ़ती जाती है और क्रमश: हरियाली व जीवन में प्रकृति के अद्भुत रंग के चित्र खुलते जाते है।
मीनमुट्टी और सूचीपारा झरना
वायनाड वर्षा के लिए काफी प्रसिद्ध है और यही वर्षा इसे एक से बढ़कर एक झरने प्रदान करती है। यूं तो ये बरसाती झरने हैं, लेकिन इनका भव्य रूप लंबे समय तक बना रहता है। इन झरनों में मीनमुट्टी और सूजीपारा प्रमुख हैं। सूजीपारा झरना जंगल के भीतर स्थित है, जहां तक आपको 2 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ेगा। इस स्थान की खासियत इसके नुकीले पत्थर है।
” वायनाड का इतिहास”
वायनाड का इतिहास एक समृद्ध इतिहास है, जिसके वायनाड की पहाड़ियों में पाषाण युग सभ्यता के कई प्रमाण हैं। किसी भी पर्यटन स्थल का ऐतिहासिक होना उसके सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देता है। वायनाड विशेष भौगोलिक पहचान लिए हुए है। इसी कारण यह स्थान सामरिक महत्व का भी रहा है। प्राचीन काल में केरल के इस क्षेत्र की भूमि ‘वेदा’ जनजाति के राजाओं के अधीन रही
अमल्पुचिमाला की दोनों गुफाओं की दीवारों पर चित्र और चित्रमय लेखन हैं, जो सुल्तान बैथेरी और अंबालावालय के बीच स्थित हैं, जो पिछले युग और सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। प्राचीन काल में यह भूमि वेद राजाओं द्वारा शासित थी। बाद में वायनाड कोट्टायम रॉयल राजवंश के पजास्सी राजा के शासन में आया। मैसूर के राजा बनने के बाद, हैदर अली ने इस भूमि पर हमला किया और इसे अपने नियंत्रण में लाया। आधुनिक भारत के इतिहास में यह टीपू सुल्तान के अधीन भी रहा। हैदर अली ने जब मैसूर का शासन ग्रहण किया, तब उसने वायनाड को अपने कब्जे में ले लिया था। बाद के वर्षों में वायनाड परशि राजा के हाथ में आ गया। परशि राजा अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध के जनक माने जाते हैं और केरल की स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हैं। श्रीरंगपट्टनम के युद्ध के बाद टीपू सुल्तान ने संपूर्ण मलाबार अंग्रेजों को दे दिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने परशि राजा पर दबाव बढ़ा दिया। राजा ने जंगल में शरण लेते हुए गुरिल्ला लड़ाई के जरिये अंग्रेजों को कई बार शिकस्त दी। बाद में अंग्रेजों को उनका मृत शरीर ही मिला। स्वतंत्र रहने की चाह में राजा ने जंगल के भीतरी हिस्से में खुद को खत्म कर लिया था। वायनाड में परशि राजा से संबंधित स्मारक स्वतंत्र जीवन जीने की उनकी उत्कट चाह की याद दिलाता है।हालांकि, यह टीपू सुल्तान के शासनकाल के दौरान कोट्टायम रॉयल राजवंश में वापस चला गया। अंत में यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन आया।
Best Place to Visit in Wayanad in Hindi वायनाड मे घूमने की जगह”
कुरुवा द्वीप का सौंदर्य: यहां बहने वाली कबीनी नदी के बीच स्थित कुरुवा द्वीप प्रकृति में मौजूद विविध रंगों को महसूस करने का सबसे उपयुक्त स्थान है। एक ओर वायनाड जहां हरियाली के आगोश में लिपटा रहता है, वहीं यह द्वीप सौंदर्य को नए मायने देते हुए नजर आता है। करीब 900 एकड़ में फैले इस द्वीप में घनी आबादी के साथ-साथ कुछ अतिविशिष्ट पेड़-पौधों का भी घर है।
बांस की नगरी: उरवु वायनाड के प्रसिद्ध पर्यटन केंद्रों में से एक है। यहां बांस से साजो-सामान बनाने की स्थानीय कला को पुनर्जीवित व प्रचलित करने के लिए बांस उद्योग शुरू किया गया था। उरवु का अर्थ होता है ‘बांस की नगरी’ और यह नाम इस स्थान के लिए उपयुक्त भी है। यहां आने वाले पर्यटक आसानी से देख सकते हैं कि किस प्रकार स्थानीय निवासी बांस के बनाए उत्पादों और उपकरणों से अपनी आजीविका चलाते हैं।
चेम्बरा पीक : सबसे ऊंचे स्थान पर यादगार ट्रेकिंग वायनाड की यात्रा में सबसे पहला आकर्षण इसी स्थान का रहता है। चेम्बरा पीक जिला मुख्यालय कलपेटा से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह यहां का सबसे ऊंचा स्थान है। यदि आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं तो यकीनन यह आपके लिए एक यादगार ट्रिप होगी। देश-विदेश से ट्रेकिंग के शौकीन पर्यटक यहां अपने इस शौक को पूरा करने के लिए आते हैं। समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान तक पहुंचने के लिए टेढ़े-मेढ़े और अनगढ़, किंतु नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर रास्तों से गुजरना पड़ता है। ऊपर पहुंचने पर सामने का दृश्य अद्भुत होता है।
एडक्कल गुफा : प्रागैतिहासिक भित्तिचित्रों का रोमांच ये गुफाएं अपने प्रागैतिहासिक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं, जो 6000 साल पहले के माने जाते हैं। ये भित्तिचित्र भोपाल के पास स्थित भीमबेटका की याद दिला सकते हैं। सुदूर दक्षिण भारत में इस तरह की गुफाओं और चित्रों की उपस्थिति इतिहास की समझ रखने वालों को रोमांचित करती है।
वायनाड वन्यजीव अभयारण्य:- वायनाड वन्यजीव अभयारण्य को ‘मतंगा अभयारण्य’ भी कहा जाता है। सुल्तान बथेरी से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जंगल कर्नाटक के नागरहोल और बांदीपुर और तमिलनाडु के मुदमलाई टाइगर रिजर्व से जुड़ता है। 345 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य के सघन वनों में प्रकृति दिल खोलकर झूमती है। इसमें आप ऐसे पेड़-पौधे भी देख सकते हैं, जो केवल यहीं मिलते हैं। केरल के इस वर्षा-वन में जीव-जंतुओं की भरमार है।
चींगेरीमला: ये हैं फैंटम रॉक यह अपने आप में एक अनूठा स्थान है जहां बड़ी-बड़ी चट्टानें फैंटम की भांति सर उठाए खड़ी हैं। इसलिए इस हिस्से को फैंटम रॉक भी कहा जाता है। यहां आनेवालों में पुरातत्वविद और ट्रेकिंग के शौकीन लोग होते हैं। दूर तक फैली हरियाली के बीच बसी इन रहस्यमयी संरचनाओं के बीच चहलकदमी के रोमांच को कौन नहीं हासिल करना चाहेगा।
वायनाड मे खान पान:
वायनाड घूमने आने वालों के लिए खानपान कोई विशेष समस्या नहीं है। यहां के होटल और रेस्तरां में स्थानीय भोजन के अतिरिक्त विभिन्न स्थानों के पर्यटकों को ध्यान में रखकर भी व्यंजन परोसे जाते हैं। आपको यहां उत्तर भारतीय शाकाहारी व्यंजनों की दुकानें आसानी से मिल जाएंगी। मांसाहारी हैं तो भोजन के और भी कई विकल्प उपलब्ध हैं।
स्थानीय भोजन में पीड़ी, पत्तिरी विशिष्ट हैं। पीड़ी चावल के आटे को गरम पानी में गूंथकर छोटी-छोटी गोली की शक्ल में बनाया जाता है, जिन्हें पुन: उबलते पानी में पकाया जाता है। इसे किसी भी सब्जी के साथ खाया जा सकता है। यहां का ‘मुलेयरी पायसम’ भी काफी प्रसिद्ध है। दरअसल, मुलेयरी बांस के चावल को कहते हैं। बांस के चावल की इस खीर के कई आयुर्वेदिक गुण बताए जाते हैं, जिनके कारण इसका महत्व बढ़ जाता है। एडक्कल की गुफाओं के आसपास ‘तेन नेलिक्या’ भी मिलता है, जिसे आंवले को शहद में डालकर तैयार किया जाता है। यह अपने विशिष्ट स्वाद के लिए काफी प्रसिद्ध है।