तंबाकू खाने या धुम्रपान करने से मुंह के कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है। मुंह के कैंसर में मुंह के अंदर के हिस्सों में जैसे जीभ, होंठ और गले में कैंसर होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में हर साल 70 लाख लोग तंबाकू व अन्य धुम्रपान उत्पादों के कारण कैंसर व अन्य बीमारियों के चलते अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं। हर साल भारत में मुंह के कैंसर से हजारों जानें जा रही हैं। अगर आपको अपने मुंह के अंदर किसी भी हिस्से में गांठ महसूस हो तो आपको तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कैंसर की गांठ भी हो सकती है।
अगर आपके मुंह में अल्सर है तो यह दो से तीन दिन में ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह लंबे समय तक रहे तो आपको इसको नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आपको इसे लेकर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
Mauh ke Cancer ke Lakshan मुँह के कैंसर के लक्षण
- मुंह के अंदर किसी भी हिस्से में गांठ महसूस हो तो आपको तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कैंसर की गांठ भी हो सकती है।
- लंबे समय तक अगर मुंह में अल्सर है तो यह दो से तीन दिन में ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह लंबे समय तक रहे तो आपको इसको नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
- वैसे तो गले में टॉन्सिल होना आम बात है ,अगर यह परेशानी आपको बार बार हो रही है तो आपको एक बार इसकी जांच जरूर करानी चाहिए।
- मुंह बार बार सुन्न होना।
- मुंह से खून आता है बिना किसी वजह से मुंह से खून निकलना ।
- आपको मुंह के अंदर किसी तरह का कोई रंग में बदलाव दिखे तो इसे तुरंत डॉक्टर को दिखाए।
- मुंह में बार बार सफेद या वाव धब्बे पड़ते हैं और लंबे समय तक रहते हैं।
- कम उम्र में दात ढीले पड़ने लग जाए या टूटने लग जाए तो हो सकता है कि ये माउथ कैंसर का संकेत हो।
- बिना किसी कारण नियमित बुखार आना।
- थकान होना, सामान्य गतिविध करने से थक जाना।
- गर्दन में किसी प्रकार की गांठ का होना।
- ओरल कैंसर के कारण बिना कारण वजन का कम होता रहता है।
- मुंह में हो रहे छाले या घाव जो कि भर ना रहे हों।
- जबड़ों से रक्त का आना या जबड़ों में सूजन होना।
- मरीज की आवाज में बदलाव होना।
- चबाने या निगलने में परेशानी होना।
- जबड़े या होठों को घुमाने में परेशानी होना।
- ऐसा महसूस करना कि आपके गले में कुछ फंसा हुआ है।
Oral Cancer Kaise Hota hai कैसे होता है ओरल कैंसर
स्मोकिंग : सिगरेट, सिगार, हुक्का, इन तीनों चीज़ों के आदी लोगों को एक नॉनस्मोकर के मुकाबले माउथ कैंसर होने का 6 फीसदी ज्यादा खतरा होता है।
तंबाकू : माउथ कैंसर होने का खतरा तंबाकू सूंघने, खाने या चबाने वाले लोगों को उनकी तुलना में 50 फीसदी ज्यादा होता है, जो तंबाकू यूज़ नहीं करते। माउथ कैंसर आम तौर पर गाल, गम्स और होंठों में होते हैं।
एल्कोहल : शराब पीने वालों को माउथ कैंसर होने का खतरा बाकी लोगों से 6 फीसद ज्यादा होता है।
हिस्ट्री: जिन लोगों के परिवार में पहले किसी को माउथ कैंसर रहा हो, ऐसे लोगों को इस कैंसर का ज्यादा खतरा होता है।
“मुख कैंसर का इलाज़”
कोई भी जख्म या अल्सर आदि मिलने पर उसकी बायोप्सी की जाती है, इसके बाद एंडोस्कोपिक जांच, इमेजिंग इन्वेस्टिगेशन्स (कम्प्यूटिड टोमोग्राफी अर्थात सीटी), मैगनेटिक रिसोनेन्स इमेजिंग (एमआरआई) और अल्ट्रासोनोग्राफी आदि की मदद से कैंसर की स्टेजेज का पता लगाया जाता है। इसका उपचार हर मरीज के लिए अलग हो सकता है।
मुख कैंसर का इलाज –
कैंसर के इलाज में आमतौर पर 3 तरीके इस्तेमाल होते हैं: सर्जरी, कीमोथेरपी और रेडियोथेरपी लेकिन अब इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी का भी असर काफी अच्छा देखा जा रहा है
कीमोथेरेपी से आपका चेहरा भी बिगड़ सकता है और मुख में कैंसर हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती क्यूंकि कई बार कैंसर इलाज के कुछ समय बाद फिर से दोबारा बन सकता है|
हल्दी और तुलसी से करें मुख कैंसर का देसी इलाज : हल्दी और तुलसी की कुछ सूखी पत्तियां लें और उनको पीसकर बारीक़ पाउडर बना लें| इस पाउडर में ग्लिसरीन मिलाकर लेप तैयार करें| इस लेप को मुख की मांसपेशियों पर लगायें| तुलसी एंटीबायोटिक का कार्य करती है| मांसपेशियों पर यह लेप लगाने से कुछ दिनों में आपकी मांसपेशियों में लचीलापन आना शुरू हो जायेगा| हल्दी के चमत्कारी फायदों से तो आप पहले ही परिचित होंगे| हल्दी और तुलसी में कैंसर रोकने वाले तत्व होते हैं| मुख कैंसर वाले व्यक्ति की मांसपेशियों में बहुत कसावट आ जाती है और मुख पूरी तरह खुल भी नहीं पाता| हल्दी और तुलसी का यह लेप आपके मुख की मांसपेशियों में लचीलापन लाता है और कैंसर से आपको बचाने में मदद भी करता है| इस नुस्खे को रोजाना अपनायें| इसका असर आपको धीमे धीमे दिखना शुरू हो जायेगा|
सर्जरी: यह कैंसर का बेस्ट इलाज है। यह गलतफहमी है कि चाकू लगने से कैंसर फैलता है। सर्जरी में कामयाबी के आसार बहुत ज्यादा और रिस्क लगभग जीरो होता है।
कीमोथेरपी: इसमें मरीज को दवाएं दी जाती हैं, जो कैंसर सेल को मारती हैं। दिक्कत यह है कि ये कैंसर के साथ-साथ नॉर्मल सेल को भी मार देती हैं। इसके साइड इफेक्ट्स जैसे कि बाल झड़ना, उलटी होना, कमजोरी होना आदि भी काफी होते हैं। कीमोथेरपी 3-3 हफ्ते के अंतराल पर दी जाती है। कितनी कीमो दी जाएंगी, यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।
रेडियोथेरपी: कैंसर के सेल मारने के लिए मशीन की मदद से ट्यूमर पर कंट्रोल्ड रेडिएशन डाला जाता है। एक दिन में करीब 15-20 मिनट लगते हैं और हफ्ते में 5 दिन तक रेडियोथेरपी की जाती है। इस थेरपी में कई बार मुंह का सूखना, डायरिया, स्किन का काला होना जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी: इसमें बिना चीरा लगाए सूई की मदद से सीधे कैंसर में दवा डाली जाती है या उसे जला दिया जाता है।