भारत की भूमि पर अनेक ¬योद्धाओं और महायोद्धाओं ने जन्म लिया है। अपने दुश्मन को धूल चटाकर विजयश्री हासिल करने वाले इन योद्धाओं ने कभी अपने प्राणों की परवाह नहीं की। हमारे इतिहास ने इन योद्धाओं को वीरगति से नवाजा, सदियां बीतने के बाद आज भी इन्हें शूरवीर ही माना जाता है.
दिल्ली पर शासन करने वाले आखिरी हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान के नाम से कौन वाकिफ नहीं है। पृथ्वीराज एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने बचपन में ही अपने हाथों से शेर का जबड़ा फाड़ दिया था। इतना ही नहीं आंखें ना होने के बावजूद अपने परमशत्रु मोहम्मद गोरी को मौत के घाट उतार दिया था।
★ पृथ्वीराज का जन्म :—- पृथ्वीराज चौहान का जन्म वर्ष 1168 में, अजमेर मे हुआ था। पृथ्वीराज के पिता का नाम राजा सोमेश्वर चौहान था। इनकी माता का नाम कर्पूरदेवी था।
★ पृथ्वी बचपन से ही था होनहार :—- पृथ्वीराज चौहान एक प्रतिभाशाली बालक थे, जो सैन्य कौशल सीखने में बहुत ही निपुण थे। पृथ्वीराज चौहान में आवाज के आधार पर निशाना लगाने की कुशलता थी।
★ छोटी सी उम्र मे ही बना राजा :—– जब वर्ष 1179 में पृथ्वीराज के पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी, तब पृथ्वीराज ने 13 वर्ष की उम्र में अजमेर के राजगढ़ की गद्दी को संभाला था। पृथ्वीराज के दादा अंगम दिल्ली के शासक थे। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी के बारे में सुनने के बाद, उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पृथ्वीराज ने एक बार बिना किसी हथियार के अकेले ही एक शेर को मार डाला था। पृथ्वीराज चौहान को एक योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था। जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज-सिंहासन की गद्दी पर बैठे, तब उन्होंने किला राय पिथौरा का निर्माण कराया। पृथ्वीराज का संपूर्ण जीवन वीरता, साहस, शौर्यवान और निरंतर महत्वपूर्ण कार्य करने की एक श्रृंखला में बँधा था। जब पृथ्वीराज चौहान केवल तेरह वर्ष के थे, तब उन्होंने गुजरात के पराक्रमी शासक भीमदेव को पराजित किया था।
★ पृथ्वी की शिक्षा दीक्षा :—- जब पृथ्वी पांच वर्ष की के हुए तब उनका प्रवेश अजयमेरु (वर्तमान में अजमेर) में विग्रहराज द्वारा स्थापित “सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ” से (वर्तमान में वो विद्यापीठ ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ नामक एक ‘मस्जिद’ है) से शिक्षा प्राप्त की।।
सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ में उन्होंने शिक्षा के अलावा युद्धकला और शस्त्र विद्या की शिक्षा अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त की थी।
★ कई भाषाओं के ज्ञानी थे पृथ्वी :—–
वह छह भाषाओँ में निपुण थे, जैसे –
● संस्कृत
● प्राकृत
● मागधी
● पैशाची
● शौरसेनी
●अपभ्रंश भाषा। इसके अलावा उन्हें मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था।
★ कवि चंदरबरदाई ने किया है गुणगान :——
महान कवि चंदबरदाई की काव्य रचना “पृथ्वीराज रासो” में उल्लेख किया गया है कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने,और हाथी घोड़े को काबू मे करने का हुनर उन्हें बहुत अच्छे से आता है।
★ महान सेना थी पृथ्वी के पास :—–
पृथ्वीराज की सेना में घोड़ों की सेना का बहुत अधिक महत्व था, लेकिन फिर भी हस्ति (हाथी) सेना और सैनिकों की भी मुख्य भूमिका रहती थी। जिसके चलते पृथ्वीराज की सेना में 70,000 घुड़सवार सैनिक थे। जैसे-जैसे पृथ्वीराज की विजय होती गई, वैसे-वैसे सेना में सैनिकों की वृद्धि होती गई। नारायण युद्ध में पृथ्वीराज की सेना में केवल 2,00,000 घुड़सवार सैनिक, पाँच सौ हाथी एवं बहुत से सैनिक थे।
★ पृथ्वी का कैसे हुआ विवाह :—–
जब पृथ्वीराज दिल्ली की सत्ता संभाल रहे थे वहीं दूसरी ओर कन्नौज के शासक जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घोषणा कर दी।जयचंद, पृथ्वीराज के गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था इसलिए उसने इस स्वयंवर में पृथ्वीराज को निमंत्रण नहीं भेजा। पृथ्वीराज का अपमान करने के उद्देश्य से जयचंद ने उन्हें स्वयंवर में तो आमंत्रित नहीं किया, लेकिन मुख्य द्वार पर उनकी मूर्ति को ऐसे लगवा दिया जैसे कोई द्वारपाल खड़ा हो। जब संयोगिता ने पृथ्वीराज की मूर्ति देखी तब उसने मन ही मन यह वचन ले लिया कि वह पृथ्वीराज को ही अपना वर चुनेंगी। पृथ्वी ने भी संयोगिता को भी देखा था। संयोगिता की खूबसूरती ने पृथ्वीराज चौहान को भी मोहित कर दिया। दोनों ने ही एक-दूसरे से विवाह करने की ठान ली। पृथ्वीराज को भले ही निमंत्रण ना भेजा गया हो लेकिन उन्होंने उसमें शामिल होने का निश्चय कर लिया था।
★ पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति के गले में वरमाला:—
स्वयंवर के दिन जब महल में देश के कोने-कोने से आए राजकुमार उपस्थित थे तब संयोगिता को कहीं भी पृथ्वीराज नजर नहीं आए। इसलिए वह द्वारपाल की भांति खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति को ही वरमाला पहनाने आगे बढ़ी। जैसे ही संयोगिता ने वरमाला मूर्ति को डालनी चाहे वैसे ही यकायक मूर्ति के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान आ खड़े हुए और माला पृथ्वीराज के गले में चली गई।
अपनी पुत्री की इस हरकत से क्षुब्ध जयचंद, संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़ा लेकिन इससे पहले की जयचंद कुछ कर पाता पृथ्वीराज, संयोगिता को लेकर भाग गए। लेकिन उनका प्रेम उनके लिए सबसे बड़ी गलती बन गया।
★ पृथ्वी को मिटाने के लिए साथ मिले गोरी और जयचंद :——-
इधर संयोगिता और पृथ्वीराज खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे, वहीं जयचंद मोहम्मद गोरी के साथ मिलकर पृथ्वीराज को मारने की योजना बनाने लगा।
★ बंधक बने पृथ्वीराज चौहान :——–
पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 16 बार धूल चटाई थी लेकिन हर बार उसे जीवित छोड़ दिया। गोरी ने अपनी हार का और जयचंद ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला लिया। जयचंद ने अपना सैनिक बल पृथ्वीराज चौहान को सौंप दिया, जिसके फलस्वरूप युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को बंधक बना लिया गया। बंधक बनाते ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को गर्म सलाखों से जला दिया और कई अमानवीय यातनाएं भी दी गईं। अंतत: मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को मारने का फैसला कर लिया। इससे पहले कि मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज को मार पाता, पृथ्वीराज के करीबी दोस्त और राजकवि चंद्रवरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज की एक खूबी बताई।
दरअसल पृथ्वीराज चौहान, शब्दभेदी बाण चलाने के उस्ताद थे। वह आवाज सुनकर तीर चला सकते थे। गोरी ने पृथ्वीराज को अपनी यह कला दिखाने का आदेश दिया। प्रदर्शन आरंभ करने का आदेश देते ही पृथ्वीराज ने समझ लिया कि गोरी कितनी दूरी और किस दिशा में बैठा है। उनकी सहायता करने के लिए चंद्रवरदाई ने भी दोहों की सहायता से पृथ्वीराज को गोरी की बैठकी समझाई। पृथ्वीराज ने बाण चलाया जिससे मोहम्मद गोरी धाराशायी हो गया। कहते हैं दुश्मन के हाथ से मरने से अच्छा है किसी अपने के हाथ से मरा जाए। बस यही सोचकर चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे का वध कर अपनी दोस्ती का बेहतरीन नमूना पेश किया। जब संयोगिता को इस बात की खबर मिली तब वह भी एक वीरांगना की तरह सती हो गई।