न्याय पंचायत क्या है :
न्याय पंचायत को ग्राम पंचायत की न्यायपालिका कहा जाता है, क्योकि यह न्याय का कार्य करती है, गावं में होने वाले विवादों का पक्षपात किये बिना निपटारा करती है।
न्याय पंचायत मे सदस्यों की संख्या और उनका कार्यकाल :
- न्याय पंचायत में एक सरपंच और उपसरपंच होते है
- न्याय पंचायत में कम से कम 10 या अधिक से अधिक 25 तक सदस्य होते है
- न्याय पंचायत पांचो का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है
पंचायत समिति के कार्य :
समान रूप से गाँव का विकास करना,खेती का विकास, पशुपालन एवं मत्स्य पालन, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, शिक्षा, सहकारिता, कुटीर उद्योग, महिला, शिशु एवं कमजोर वर्गो का कल्याण, रोजगार कार्यक्रम, खेलकूद, भवन निर्माण एवं लघु सिंचाई की योजना बनाकर कार्यान्वयन सुनिश्चित कराना।
पंचायत समिति क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना तैयार कर उसे जिला परिषद को सौंपना। पंचायत समिति का वार्षिक बजट तैयार करना। प्राकृतिक संकट में रिलीफ की योजना बनाकर उसका कार्यान्वयन। कृषि, बागवानी, बीज फार्मा एवं कीटनाशी दवाओं का भंडारण एवं वितरण।
भूमि विकास, भूमि सुधार एवं भू संरक्षण तथा लघु सिंचाई में सरकार एवं जिला परिषद को सहायता करना। मत्स्य पालन का समेकित विकास एवं मार्केटिंग, दूध उद्योग मुर्गी पालन एवं सुअर पालन को प्रोन्नति। सामाजिक, कृषि वानिकी एवं रेशम उत्पादन का समेकित विकास।
ग्रामीण, कुटीर, कृषि एवं वाणिज्यिक उद्योगों के विकास में सहायता करना। ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं की व्यवस्था, मरम्मत एवं अनुरक्षण करना। दो या दो सेअधिक ग्राम पंचायतों के लाभ के लिए ग्रामीण सड़कों, पुल पुलिया एवं नालियों का निर्माण।
सौर ऊर्जा संचालित उपकरणों को अनुदानित दर पर उपलब्ध कराना, वायोगैस संयंत्र का विकास करना। खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यकलापों के प्रोत्साहित करना तथा ग्रामीण क्लबों की स्थापना में सहायता। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों का समेकित विस्तार। सड़क, तालाब, कुंओं की सफाई, सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण समाज के कमजोर वर्गों खासकर एससी,एसटी के विकास के लिए समेकित योजनाओं का निर्माण एवं कार्यान्वयन। वृद्ध, आसक्त लोगों के लिए पेंशन की व्यवस्था में पंचायतों को सहायता। ग्राम पंचायतों के क्रियाकलापों का समन्वय एवं मूल्यांकन एवं मार्गदर्शन करना। केन्द्र, राज्य सरकार या जिला परिषद के द्वारा सौंपी गयी स्कीमों के निष्पादन को सुनिश्चित करना। अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत समिति को अतिरिक्त शक्तियां दी गयी हैं।
न्याय पंचायत के अधिकार क्या है :
न्याय पंचायत जो कि गाँव स्तर पर होने वाले विवादों के निपटारा करने वाली एक प्रणाली है. इसका कार्य प्रकृति न्याय के सिद्धांत के अंतर्गत न्याय करना है। इस न्याय पंचायत में दीवानी के साथ साथ फौजदारी के छोटे अपराधों का क्षेत्राधिकार दिया है।
- उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा 42 में न्याय पंचायत की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी जिलों को मंडल में विभाजित करेगा, हर एक मंडल ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में उतने ग्राम सम्मिलित होंगे जितने हो सकते हो, राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी हर एक के मंडल के के लिए एक न्याय पंचायत की स्थापना करेगा। किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि हर एक ग्राम पंचायत के क्षेत्र जहाँ तक संभव है परस्पर जुड़े होंगे।
- अधिनियम के तहत हर एक न्याय पंचायत के कम से कम 10 सदस्य या अधिक से अधिक 25 सदस्य होंगे जो निर्धारित किये जायें, लेकिन न्याय पंचायत के लिए यह वैध होगा कि उनके सदस्यों के किसी स्थान के रिक्त (खाली) होते हुए भी न्याय पंचायत अपना काम करती रहे, किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि जब तक उसके पंचो की संख्या विहित संख्या के दो तिहाई से कम न हो
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी, फौजदारी का ऐसा हर एक मुकदमा जो न्याय पंचायत के द्वारा विचारणीय हो, उस मंडल के, जिसमे अपराध किया गया हो, न्याय पंचायत के सरपंच के समक्ष दायर किये जायेंगे
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में किसी बात के होते हुए भी, उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम के अधीन दायर दीवानी का हर एक मुकदमा उस मंडल की न्याय पंचायत के सरपंच के समक्ष दायर किया जायेगा, जिसमे प्रतिवादी एक या अधिक हो, तो सभी प्रतिवादी सिविल मुकदमा दायर होने के समय, सामान्य रूप से निवास करते हो या व्यापर करते हो, भले ही मूल वाद कहीं भी उत्पन्न हुआ हो।
न्याय पंचायत को किन अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार है :
उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा 52 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि न्याय पंचायत निम्न अपराधों का संज्ञान लेने के लिए सशक्त है।
1. यदि किसी न्याय पंचायत के क्षेत्राधिकार के भीतर निम्नलिखित अपराध एवं इन अपराधों के उकसाने या इन अपराधों को करने की कोसिस की जाये तो, उसी न्याय पंचायत द्वारा हस्ताक्षेप होगा:-
(क) :- भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत निम्न अपराध जैसे कि:
- धारा 140 – अन्य व्यक्ति के द्वारा सैनिक, नौसैनिक या वायु सैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक या टोकन धारण करना।
- धारा 172 – समनों की तामील का या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना।
- धारा 174 -लोक सेवक का आदेश न मानकर गैरहाजिर रहना।
- धारा 179 -प्राधिकृत लोकसेवक द्वारा प्रश्न करने पर उसका उत्तर देने से इंकार करना।
- धारा 269- लापरवाही से किया गया कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलना संभावित हो।
- धारा 277- लोक जल स्रोत या जलाशय के जल को दोषित या गन्दा करना।
- धारा 283- लोक मार्ग नौ -परिवहन के रास्ते में संकट या बाधा उत्पन्न करना।
- धारा 285-अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के सम्बन्ध में लापरवाही पूर्ण कार्य करना।
- धारा 289-जीव-जंतु के सम्बन्ध में लापरवाहीपूर्ण कार्य करना।
- धारा 290-अन्यथा अनुपबंधित मामलो में लोक न्यूसेंस के लिए दंड।
- धारा 294-अश्लील कार्य और अश्लील गाने गाना।
- धारा 323-स्वेच्छया उपहति कारित करने के दंड।
- धारा 334-प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति करीत करना।
- धारा 341- सदोष अवरोध के लिए दंड।
- धारा 352-गंभीर प्रकोपन होने से या हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दंड।
- धारा 357-किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्न में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।
- धारा 358-गंभीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।
- धारा 374-किसी व्यक्ति मर्जी के बिना श्रम करने के लिए विवश करना।
- धारा 379- चोरी के लिए दंड।
- धारा 403- संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग करना।
- धारा 411-चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना। (धारा 379,403 व् 411 के अधीन मुक़दमे में चुराई गयी या दुर्विनियोग वास्तु का मूल्य 50 रु से अधिक न हो)
- धारा 426- नुकसान के लिए दंड।
- धारा 428-दस रूपये के मूल्य के जिव-जंतु का वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि।
- धारा 430-सिंचन संकर्म को क्षति करने या जल को दोषपूर्वक मोड़ने द्वारा रिष्टि।
- धारा 431-लोक सड़क, पल ,नदी या जल सरणी को क्षति पहुँचाना।
- धारा 445-गृह-भेदन।
- धारा 448-गृह -अतिचार के लिए दंड।
- धारा 504-लोक- शांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से किया गया अपमान।
- धारा 509-शब्द, अंग विक्षेप या अर्थ जो किइस स्त्री की लज्जा अनादर करने के आशय से किया गया कार्य।
- धारा 510- मत्त व्यक्ति द्वारा लोक-स्थान में अवचार/ दूरचार / दुराचरण।
(ख) पशुओं द्वारा अनाधिकार प्रवेश अधिनियम 1871 की धारा 24 व् धारा 26 के अंतर्गत अपराध।
(ग) उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट बोर्ड प्राइमरी शिक्षा अधिनियम, 1926 की धारा 10 उपधारा 1 के अंतर्गत अपराध।
(घ) सार्वजानिक जुआ अधिनियम 1867 की धारा 3, धारा 4, धारा 7 धारा 13 के अंतर्गत अपराध।
(ड) पूर्वोक्त विद्यायनों अथवा किसी अन्य विद्यायन के अंतर्गत कोई ऐसा अन्य अपराध जिसे राज्य सरकार सरकारी गजट में विज्ञप्ति प्रकाशित करके न्याय पंचायत द्वारा हस्तक्षेप घोषित करे।
(च) उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम या उसके अधीन बनाये गए किसी नियम के अंतर्गत कोई भी अपराध।