ओशो एक भारतीय रहस्यमयी गुरु और अध्यात्मिक शिक्षक थे. जिन्होंने गतिशील ध्यान को आध्यात्मिक अभ्यास का जरिया बनाया था. वह एक विवादास्पद नेता, वक्ता और योगी थे. उनके लाखों अनुयायी थे और इतनी ही संख्या में विरोधी भी थे. ओशो ने रूढ़ीवादी समाज का विभिन्न विषयों पर विरोध किया. उन्होंने समाज में मौजूद धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों पर कई सवाल उठाए. ओशो एक अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त आध्यात्मिक गुरु थे.
★ ओशो के जन्म, बचपन :—
ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को रायसेन, मध्यप्रदेश मे हुआ था। इनके पिता का नाम बाबूलाल जैन और माता का नाम सरस्वती जैन था। उनका वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन था.
उनके पिता एक कपड़ा व्यापारी थे. ओशो ने अपना प्रारंभिक बचपन अपने दादा दादी के साथ बिताया । ओशो अपने बचपन से ही सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर प्रश्न पूछते रहते थे.
एक बार ओशो के जन्म के समय उनके माता पिता को उनके ज्योतिष ने कहा था कि ये बालक सात वर्ष से अधिक जीवित रह गया तो वो उसकी जन्म कुंडली बनायेंगे क्योंकि उनके अनुसार ओशो साथ वर्ष से अधिक जीवित नही रह सकते थे और यदि जीवित रहते है तो हर साथ वर्ष में उनको मौत का सामना करना पड़ेगा | इसलिए उनके माता पिता हमेशा उनकी चिंता करते रहते थे | इसी कारण जब वो 14 वर्ष के हुए थे तब वो एक मन्दिर में जाकर मौत का इंतजार करने लगे | सात दिनों तक एक वक़्त का खाना खाकर मौत का इंतजार किया लेकिन उनका बाल भी बांका नही हुआ था |
★ ओशो की पढ़ाई लिखाई :—-
वे जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे। जिसके बाद उन्होंने वर्ष 1955 में डी.एन. जैन कॉलेज से फिलोसोफी में B.A. किया. वे छात्र जीवन से ही लोगों को भाषण देते थे. वर्ष 1957 में सागर यूनिवर्सिटी से उन्होंने फिलोसॉफी में डिस्टिंक्शन के साथ M.A. किया.
★ ओशो ने पढ़ने के बाद पढ़ाना शुरू किया :–
वर्ष 1958 में ओशो जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के लेक्चरर के रूप में कार्य करने लगे और 1960 में वे प्रोफेसर बन गए. जबलपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की. समाजवाद और पूंजीवाद की अवधारणाओं पर ओशो व्याख्यान देने लगे. जिसके कारण वे पूरे भारत में आचार्य रजनीश के नाम से प्रसिद्ध हो गए. उनका मानना था कि भारत केवल पूंजीवाद, विज्ञान, प्रौद्योगिकी के नियंत्रण के माध्यम से ही समृद्ध हो सकता है.
● आध्यात्मिक गुरू ओशो :—-
ओशो ने जल्दी ही स्वयं को एक आध्यात्मिक गुरू के तौर पर स्थापित कर लिया. इस दौरान उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की और अपने विचारों से बड़ी संख्या में अनुयायी बनाये. उन्होंने अपने विचारों से तब के युवा समाज को उद्वेलित कर दिया. उनके विचार संभोग से समाधी तक नाम की पुस्तक में सहेजे गए जो सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों में से एक बन गई.
रजनीश पारम्परिक भारतीय अध्यात्म के विपरीत संभोग को ज्ञान प्राप्त करने की राह में रोड़ा मानने की बजाय रास्ता मानते थे. उस वक्त के भारतीय समाज में उनका जम कर विरोध हुआ और उन्हें सेक्स गुरू तक की संज्ञा दे दी गई. पूना में उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की. उनके भक्तों में भारत के एलिट ग्रुप के साथ ही पश्चिमी देशों के लोग बड़ी संख्या में शामिल थे.
तब भारतीय सिनेमा के सूपर स्टार माने जाने वाले विनोद खन्ना ने अपने करिअर को छोड़ ओशो के शरण में जाने का फैसला लिया. भारतीय सिनेमा उद्योग के कई जाने-माने लोग ओशो के पूणे आश्रम के नियमित सदस्य बने. उनके अनुयायी भगवा और लाल कपड़े पहनते थे और विदेशी अनुयायियों का भी हिंदुस्तानी नामकरण किया गया था.
1970 आते-आते पूणे में छह एकड़ में फैला आश्रम अनुयायियों के लिए छोटा पड़ने लगा और उन्हें एक नये आश्रम की जरूरत पड़ी. तब तक भारत में ओशो का विरोध भी अपने चरम पर पहुंच गया था और सामान्य जनमानस उन्हें स्वीकार करने को बिल्कुल तैयार नहीं था. इसी बीच 1980 में एक घटना घटी जब एक व्यक्ति ने ओशो की हत्या करने का प्रयास किया हालांकि वह इसमें सफल नहीं हो सका.
इस विरोध से परेशान होकर ओशो ने अपने 2000 अनुयायियों के साथ भारत छोड़ दिया और अमेरिका के आॅरेगन शहर में 100 मील के एक रेंच का अपना आश्रम बना लिया. इस रेंच को एक शहर में बदल दिया गया और नाम रखा गया रजनीशपुरम. वहां की स्थानीय सरकार ने इसका विरोध किया लेकिन अदालत में ओशो की जीत हुई और आश्रम को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया लेकिन स्थानीय सरकार के साथ ओशो की नहीं बनी और उन्हें आखिर में 1986 में आॅरेगन छोड़ एक बार फिर से भारत लौटना पड़ा.
भारत लौटने के बाद एक बार फिर उन्होंने अपने पूणे के आश्रम में उपदेश देना शुरू किया लेकिन उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा और 19 जनवरी 1990 को उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद उनके आश्रम को ओशो इंस्टीट्यूट में बदल दिया गया और यहीं पर ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसोर्ट की भी स्थापना की गई. इस रिसोर्ट में हरे साल लाखो लोग ध्यान साधना के लिए आते हैं. इस सेंटर से जुड़े आज सैकड़ों ध्यान केन्द्र पूरे भारत में खुल चुके हैं जो ओशो के विचारों के अनुसार ध्यान साधना करवाते हैं.
★ ओशो से जुड़े विवाद :—-
19 जनवरी 1990 को 58 वर्ष की आयु में ओशो ने अपनी आखिरी सांस ली. ओशो की मृत्यु को लेकर संदेहास्पद तथ्य मौजूद हैं. पुणे में उनका आश्रम आज ओशो इंटरनेशनल ध्यान रिज़ॉर्ट के रूप में जाना जाता है. यह भारत के मुख्य पर्यटन आकर्षण में से एक है और हर साल दुनिया भर से लगभग दो लाख लोगों आते है.
★ ओशो के विचार :—
• अगर आप सत्य देखना चाहते हैं तो न सहमती में राय रखिये और न असहमति में.
• केवल वह लोग जो कुछ भी नहीं बनने के लिए तैयार हैं वह प्रेम कर सकते हैं.
• जेन लोग बुद्ध से इतना प्रेम करते हैं कि वो उनका मज़ाक भी उड़ा सकते हैं. यह अथाह प्रेम कि वजह से है, उनमे डर नहीं है.
• किसी से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं है. आप स्वयं में जैसे भी हैं एकदम सही हैं. खुद को स्वीकार करिए.
• सवाल यह नहीं है कि कितना सीखा जा सकता है बल्कि इसके उलट, सवाल यह है कि कितना भुलाया जा सकता है.
• दोस्ती शुद्ध प्रेम है. यह प्रेम का सर्वोच्च रूप है जहाँ कुछ भी नहीं माँगा जाता, कोई भी शर्त नहीं होती, जहां बस देने में आनंद आता है.
• प्रसन्नता सदभाव की छाया है, वो सदभाव का पीछा करती है. प्रसन्न रहने का कोई और तरीका नहीं है.
• जीवन कोई दुखद घटना नहीं है, यह एक हास्य है. जीवित रहने का मतलब है हास्य का बोध होना.
• अगर आप एक दर्पण बन सकते हैं तो आप एक ध्यानी भी बन सकते हैं. ध्यान दर्पण में देखने की कला है.
• आत्मज्ञान एक समझ है कि यही सबकुछ है, यही बिलकुल सही है, बस यही है. आत्मज्ञान यह जानना है कि ना कुछ पाना है और ना कहीं जाना है.
• जेन एकमात्र वह धर्म है जो एकाएक आत्मज्ञान सीखाता है. इसका कहना है कि आत्मज्ञान में समय नहीं लगता, ये बस कुछ ही क्षणों में हो सकता है.
• आप जितने लोगों को चाहें उतने लोगों को प्रेम कर सकते हैं- इसका ये मतलब नहीं है कि आप एक दिन दिवालिया हो जायेंगे, और कहेंगे, “अब मेरे पास प्रेम नहीं है”. जहाँ तक प्रेम का सवाल है आप दिवालिया नहीं हो सकते
● रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई थी मौत :—-
19 जनवरी 1990 को रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु को प्राप्त होने वाले ओशो ने कहा था कि मौत से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे सेलिब्रेट करना चाहिए। भगवान श्री रजनीश के नाम से भी पुकारे जाने वाले ओशो के कुछ अनुयायियों का मानना था कि उनके गुरु को उनके ही कुछ विश्वस्त सहयोगियों ने जहर दे दिया था। उन लोगों की नजर ओशो की अकूत संपत्ति पर थी फिलहाल आज भी ओशो की मौत से जुड़े सवालों के जवाब लोगों को नहीं मिले हैं।