चारु मजूमदार का जन्म 12 मार्च 1918 को सिलीगुड़ी में एक ज़मींदार के परिवार मे हुआ था।बचपन से ही वे जमींदारों के तौर तरीके और उनकी हैवानियत नापसंद थी। कॉलेज के दीनो से ही चारू राजनीति मे सक्रिए हो गये ओर कॉंग्रेस पार्टी से जुड़ गये ओर अपनी पढ़ाई को बीच मे ही छोड़ दिया, चारू ने सबसे पहले बीड़ी मजदूरो को सांगठित किए ओर उनपे हो रहे अत्याचारो के खिलाफ आवाज़ उठाई हलकी चारू इसमे ज़्यादा सफल नही हुए हलाकि बाद के दिन मे 1942 चारू ने कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़ गये और जलपागुरी कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्यए बन गये सन 1942 मे बंगाल मे बहुत बड़ा अकाल पड़ गया ओर चारो तरफ़ भुखमरी फैल गई चारू ने इस बिपत कल मे लोगो की बहुत मदद की ओर कई लोगो की जान बचाई, चारू लोगो की दिल मे एक खास जगह बना लिया. चारू ने ग़रीब मजदूरो संगठित किया ओर ज़मींदारो के अनाज पर धावा बोल दिया हालाकी ज़मींदारो को पोलीस की सुरक्षा मौजूद था चारू के कहने पर मजदूरो ने पोलीस से उनके हथियार छीने ,उन्होने बोला पोलीस की गोली से मरो पर भूख से नही
आज़ादी के बाद भी चारू ने कोमुन्निस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़े रहे सन 1948 मे कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को प्रतिबंध कर दिया ओर चारू को तीन साल के लिए जेल मे भेज दिया गया जेल मे उनकी मुलाकात कानू सान्याल से हुआ , कानू को भी सरकार के खिलाफ काम करने के कारण गिरप्तार कर लिया गया था उन्होने तब के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ काली झंडे दिखया था. चारू ने अपने सिधन्त कानू को बताया बाद मे कानू चारू के साथ जुड़ गये. चारू ओर कानू के बिचारधारा एक दूसरे से काफ़ी मिलती थी ओर उन दोनो ने साथ मिल के कम करने का फ़ैसला लिया ओर चारू बन फादर ऑफ नकशलिस्म |
नक्सलबाड़ी आंदोलन : सन 1967 मे चारू के नेतृत्व मे कुछ लोगो नकशबडी गाँव मे ज़मींदारो के खिलाफ हथियार उठा लिए ओर बंदूक के दम पे अपने हक़ माँगने लगे उनका कहना था की ज़मींदारो से ज़मीन ले कर भूमिहीन किसानो मे बाट दिया जाए नकशलबाड़ी आंदोलन ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया यह आंदोलन मूलरूप से किसानो का आंदोलन था ओर चारू इसके नेता थे 22 एप्रिल 1967 को चारू ने अपनी पार्टी बनाई जिसका नाम था कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडियन मार्क्सिस्ट ओर लेनिनिस्ट जिसे बाद के दीनो मे बान किया गया चारू मजूमदार का झुकाऊ माओ के तरफ़ जाड़ा था वो माओ के तर्ज पे हिन्दुस्तान मे क्रांति लाना चाहते थे
1948 में सत्ता के विरूद्ध काम करने के कारण उन्हें जेल हुई और बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI)को बैन कर दिया गया।
वहां उनकी मुलाकात कानू सान्याल नाम के व्यक्ति से हुई जो आगे चलकर इस आंदोलन का एक अहम हिस्सा बने।
1949 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(CPI) के बैन के विरोध में कानू सान्याल ने बंगाल के मुख्यमंत्री बिधान चन्द्र रॉय को काले झंडे दिखाए और 1952 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) से जुड़े।
अब दो जांबाज़ एक साथ काम कर रहे थे इसलिए सत्ताधारियो में डर का माहौल बनने लगा।
कुछ समय बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया टूट गई और दो भागो में बंट गई
(1) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(मार्क्सिस्ट )[CPI M]
(2) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) [CPI ML]
चारु और कानू ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(मार्किस्ट)[CPI M] को चुना और इसके बाद इस पार्टी में चीन की तर्ज पर ‘आर्म्ड रेवोलुशन’ की बात चलने लगी चारू मजूमदार की अगुवाई में पार्टी ने इस बात को पूरी तरहनकारा नहीं पर स्वीकार भी नहीं किया1965 में चारू अपने ‘हिस्टोरिक 8 डाक्यूमेंट्स’ के साथ आये इसमें चीन के माओत्से जेदांग को आइडियल मानते हुए भारत सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की बात की गई और कहा गया कि अब राजनीति से काम नहीं चलेगा।1967 में चारू मजूमदार को पार्टी से निकाल दिया गया क्योंकि पार्टी की वेस्ट बंगाल में सरकार आ गई थी और चारू अब सरकार से लड़ाई करनेवाले थे खुलेआम कह दिया था कि अब हथियार छीने जायेंगे और जमींदारों का सिर कलम किया जायेगा कानू सान्याल ने एक बार कहा था कि वो वक़्त ‘आर्म्ड रेवोलुशन’ के लिए एकदम सही था क्योंकि कार्यकर्ता बिल्कुल ही जोश में थे कानू अब चारू के साथ हो गए चारू हुए नक्सलिज्म के पिता और कानू हुए पहले नक्सलफिर नक्सलबाड़ी में हुआ पहला खूनअप्रैल 1967 में एक घटना हुई भिगुल किसान के पास जमीन नहीं थी वो ईश्वर तिर्की की जमीन जोतता था बहुत ही कम फायदे पे एक दिन उसने अपने फायदा बढ़ाने की बात की ईश्वर ने उसको जमीन से बेदखल कर दिया भिगुल ने ‘कृषक सभा’ में शिकायत की कानू सान्याल इस संगठन के नेता थे उन्होंने तिर्की को घेरा पर तिर्की जो एयरफोर्स में इंजिनियर रह चुका था अब बंगाल कांग्रेस का सदस्य था बाद में वो कांग्रेस की सरकार में बंगाल में मंत्री भी बना उसने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया दिल्ली से CRPF की बटालियन भेजी गई तिर्की बच गयापर जमींदार नगेन रॉय चौधरी बदकिस्मत निकले उनके लिए पुलिस नहीं आ पाई कानू सान्याल के आर्डर पर नगेन का सर कलम कर दिया गया सर कलम करनेवाले थे 6 फीट 5 इंच के जंगल संथाल बाद में जंगल नक्सलवादियों के ‘सिर कलम’ स्पेशलिस्ट बने इस घटना से हदस कर जमींदार सरकार के पास गये उस समय बंगाल के होम मिनिस्टर (गृह मंत्री) ज्योति बासु थे।उस वक़्त ज्योति बसु उन्होंने किसानों को टेररिस्ट का टैग दे के पुलिस को भेज दिया उस समय महिला नक्सल शांति की लीडरशिप में किसानों का एक ग्रुप जमींदारों से जमीन छीनने जा रहा था पुलिस से भिड़ंत हुई इंस्पेक्टर सोनम वांगदी की हत्या हो गई शांति अभी जिन्दा हैं और मैगज़ीन द वीक के हवाले से बताती हैं कि उन्होंने सोनम को एक गर्भवती महिला (प्रेगनेंट) को लात मारते देखा था इसीलिए उसको मारने का आर्डर दिया बाद में वो प्रेग्नेंट औरत मर गई थी अगले दिन पुलिस ने जवाब में 9 औरतों को मार दिया इस घटना ने नक्सल आन्दोलन की दशा-दिशा बदल दी कानू सान्याल ने डिक्लेयर किया कि अब नक्सलबाड़ी को आज़ाद करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं इसके बाद नक्सलबाड़ी में हिंसा चरम पर पहुंच गई एक-एक कर कई जमींदारों को मार दिया गया उनकी जमीनें छीन ली गयीं आगे शांति कहती हैं कि हमारा उद्देश्य पूरे इंडिया के किसानों को जमींदारी से मुक्त कराना था पर हो नहीं पाया आज भी वही हालात हैं।1968 में नक्सल नेता अपने कॉमरेड्स के साथ चीन गए माओ से मिले वहां बड़ा स्वागत हुआ दो-ढाई महीने रहे वहां कहा जाता है कि वहां इन लोगों को मिलिट्री ट्रेनिंग भी दी गई खुदन मलिक भी गए थे उस टीम में द वीक को बताते हैं: ‘माओ ने कहा कि मलिक तुम चाईनीज जैसे दिखते हो और तुम्हें चीन की सेना में होना चाहिए फिर आगे कहा कि CPI की पार्टी से इंडिया में क्रांति नहीं आएगी नक्सलाइट ही ये क्रांति ला सकते हैं पर माओ ने ये भी कहा कि ‘आर्म्ड रेवोलुशन’ से पहले जनता का सपोर्ट जुटाना होगाचारू मजूमदार माओ की इस बात से सहमत नहीं थे वो सब कुछ जल्दी से करना चाहते थे दिलचस्प ये है कि एक मीटिंग (सभा)में कानू सान्याल चारू की ‘आर्म्ड रेवोलुशन’ वाली बात पर राजी नहीं थे पर चीन से लौटने के बाद वो एकदम मूड में थेअप्रैल 1969 में लम्बी मीटिंग हुई नई पार्टी CPI(ML) बनाई गई ML यानी मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट चारू ने इस घटना को विनाश का युद्ध बतायाऔर कहा कि अब जमींदारों का पूरा सफायाइस बात से भड़क कर पुलिस जबरदस्त तरीके से पार्टी के पीछे पड़ गई चारू इस पार्टी के साथ अंडरग्राउंड हो गए पर कानू को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।जेल में कानू का दिल बदल गया उनको अपनी पार्टी की कमियां नज़र आने लगीं मुख्यमंत्री ज्योति बासु ने उनको जेल से छुड़वा दिया 1977 में कानू ने अपनी पार्टी को अलविदा कह दिया पार्टी ने भी बुलाने की कोशिश नहीं की पर पार्टी की आइडियोलॉजी को इससे बहुत धक्का लगाकानू इसके बाद भी पार्टी बनाकर काम करते रहे पर पहले की तरह नहीं 2006 में बूढ़े कानू ट्रेन में डकैतों से भिड़ गए चाकू लग गया पर कानू लड़ते रहे ये थी उनकी जिन्दादिली।बांग्लादेश की लड़ाई के बाद सरकार नक्सल आन्दोलन के पीछे पड़ गई 1972 में चारू मजूमदार इंडिया के ‘मोस्ट वांटेड मैन’ थे कहा जाता है कि जब पुलिस कलकत्ता में चारू को खोजती थी तो लोग उनके बारे में बताते नहीं थे ऐसा क्या था कि गांव के किसानों के लिए लड़नेवाले लड़ाके को शहरी लोग बचाते फिर रहे थे? एक दिन चारू के एक नजदीकी पुलिस के हत्थे चढ़ गए उनको इतना टार्चर किया गया कि वो बर्दाश्त नहीं कर पाए और चारू के बारे में बता दिया 16 जुलाई 1972 को चारू को गिरफ्तार कर लिया गया लाल-बाजार लॉक-अप में दस दिन की पुलिस कस्टडी में चारू से किसी को मिलने नहीं दिया गया वकील को भी नहीं किसी भी कोर्ट में पेशी नहीं हुई कहते हैं कि पुलिस ने चारू को भयानक टार्चर किया लाल-बाजार लॉक-अप उस वक़्त ‘नक्सल टार्चर’ के लिए कुख्यात हो गया था बिना किसी केस-मुकदमे के 28 जुलाई को उसी लॉक-अप में चारू को मौत मिल गई कहते हैं कि चारू की डेड बॉडी(मृत शरीर) को भी पुलिस ने घरवालों को नहीं दिया और खुद ही जला दिया। और ऐसे ही बिखर गई वो क्रांति जो कुछ करना चाहती थी पर सताधरियो के हत्थे एक क्रांति का कत्ल हो गया।