दुनिया के सबसे महान और विजयी सेनापतियों में से एक नेपोलियन बोनापार्ट, फ्रांस के एक महान बादशाह थे, जिन्होंने हारना कभी सीखा ही नहीं था, उन्होंने अपने मजबूत इरादे और अटूट दृढ़संकल्पों के साथ दुनिया के एक बड़े हिस्से पर अपना दबदबा कायम कर विश्व को अपनी ताकत और बहादुरी का परिचय करवाया था।
★ नेपोलियन का जन्म, परिवार और विवाह★
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 15 अगस्त 1769 में फ्रांस के अजैक्यिो शहर में हुआ था। यह शहर कोर्सिका द्वीप पर है। नेपोलियन के चार भाई और तीन बहनें थीं। इसी बीच 9 मार्च 1796 को जोसेफाइन से उसका विवाह हो गया। नेपोलियन ने अपनी प्रथम पत्नी ‘जोसेफिन’ के निस्संतान रहने पर ऑस्ट्रिया के सम्राट की पुत्री ‘मैरी लुईस’ से दूसरा विवाह किया, जिससे उसे संतान प्राप्त हुई थी और पिता बन सका।
★ फ्रांस में क्रांति के दौरान नेपोलियन की भूमिका ★
इसके बाद नेपोलियन बोनापार्ट साल 1786 में कोर्सिका आ गए, इसके 3 साल बाद साल 1789 में फ्रांस की लोकतांत्रिक क्रांति हो गई, इस विद्रोह का मकसद फ्रांस की राजशाही को पूरी तरह खत्म कर लोकतंत्र की स्थापना करना था, वहीं फ्रांस के विद्रोह 1799 तक चला। फ्रांस के विद्रोह के समय वे फिर से फ्रांस आ गए जहां उनकी सैन्य प्रतिभा को देखते हुए उन्हें विद्रोही सेना की एक टुकड़ी का कमांडर बना दिया। इसके बाद साल 1793 में जब इंग्लैंड की सेना से फ्रांस के टाउलुन शहर पर कब्जा कर लिया तो नेपोलियन को अंग्रेजों को बाहर निकालकर जीतने की जिम्मेदारी दी गई, जिसके बाद उन्होंने अपने अद्भुत युद्द कौशल और अदम्य सैन्य प्रतिभा का प्रदर्शन कर वहां से अंग्रेजों को खदेड़ दिया और जीत हासिल की। उनकी इस अद्भुत जीत से फ्रांस के कई बड़े राजा बेहद प्रभावित हुए और महज 24 साल के नेपोलियन को बिग्रेडियर जनरल बना दिया गया। वहीं इसके बाद नेपोलियन साल 1796 में इटली में विजय हासिल कर वहां के बादशाह बन गए, जिससे उनके शौहरत और प्रसिद्दि और भी अधिक बढ़ गई।
◆ नेपोलियन की पढ़ाई लिखाई ◆
एक अमीर परिवार में पैदा होने के कारण नेपोलियन को बचपन में अच्छी शिक्षा मिली। उन्हें एक सैनिक अफसर बनने के लिए फ्रांस की सैन्य अकादमी में भर्ती किया गया। सैनिक स्कूल में शिक्षा के बाद उसने 1784 में तोपखाने से संबंधित विषयों का अध्ययन करने के लिए पेरिस के एक कॉलेज में प्रवेश लिया।
उसकी प्रतिभा को देखकर फ्रांस के राजकीय तोपखाने में उसे सबलेफ्टिनेन्ट की नौकरी मिल गयी थी। उसे ढाई सिलिंग का प्रतिदिन का वेतन मिला करता था, जिससे वह अपने 7 भाई-बहिनों का पालन-पोषण करता था। उसके व्यक्तिगत गुण और साहस को देखकर फ्रांस के तत्कालीन प्रभावशाली नेताओं से उसका परिचय प्रगाढ़ होता चला गया। अब उसे आन्तरिक सेना का सेनापति भी नियुक्त किया गया।
नेपोलियन के लड़े और जीते गए युद्ध
नेपोलियन ने अपने युद्ध-कौशल से फ्रांस को विदेशी शत्रुओं से मुक्ति दिलाई। अपने अदम्य साहस और वीरता के कारण वह 27 वर्ष की अवस्था में फ्रेंच आर्मी ऑफ इटली का सेनापति बनकर सार्डिनिया को जीतने गया। अपने युद्ध-कौशल से उसने सार्डिनिया को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और सार्डिनिया का बहुत-सा जीता हुआ क्षेत्र फ्रांस को सौंप दिया। नेपोलियन का अगला विजय अभियान ऑस्ट्रिया पर आक्रमण करके वहां के सम्राट केंपोफोरमियो को सन्धि की अपमानजनक शर्तों को स्वीकार करने हेतु बाध्य करना था। इसके बाद नेपोलियन ने टोलेंन्टिन्ड की सन्धि पर पोप के हस्ताक्षर करवाकर फ्रांस की अधीनता स्वीकारने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद फ्रांस ने नेपोलियन को इंग्लैण्ड पर आधिपत्य करने हेतु भेजा, किन्तु इंग्लिश चैनल की बाधा ने नेपोलियन को पराजय का मुंह दिखाया। नेपोलियन ने मिश्र को विजित करके पूर्वी एशिया में स्थित ब्रिटिश उपनिवेशों को भी अपने अधीनस्थ करने का निश्चय कर 1798 में 35 हजार प्रशिक्षित सैनिकों के साथ कूच कर दिया। उसने रास्ते में माल्टा, पिरामिड, सिंकदरिया, नील नदी की सम्पूर्ण घाटी पर कब्जा कर लिया। अब वह भारत की ओर बढ़ रहा था लेकिन ब्रिटिश नौसेना की शक्ति के आगे नेपोलियन परास्त हो गया।
★ रूस से मिली बड़ी हार ★
ब्रिटेन के शांति समझौता नहीं होने पर नेपोलियन ने साल 1812 में ब्रिटेन के व्यापार को पूरी तरह से रोक लगाने का फैसला लिया और इसकी आर्थिक नाकेबंदी के लिए रुस को राजी करने के लिए रुस की सीमा पर फ्रांस के करीब 6 लाख सैनिक तैनात कर दिए। लेकिन रुस के मोर्च पर नेपोलियन को कोई खास कामयाबी नहीं मिली बल्कि भयानक सर्दी होने की वजह से नेपोलियन को पीछे हटना पड़ा, यही नहीं इस दौरान नेपोलियन की भारी सेना भुखमरी का शिकार हो गई, और यहीं से नेपोलियन की बादशाहत बिखरने लगी।
◆ वाटरलू का युद्द में नेपोलियन को मिली हार ◆
रुस से मिली शिकस्त के बाद फ्रांस की हालत काफी बिगड़ गई थी, वहीं इस दौरान नेपोलियन को इटली के एलबा (Elba) द्धारा कैद कर लिया गया, और फ्रांस की राजशाही लुई 16वें को दे दी गई, इस विकट परिस्थिति ने भी नेपोलियन ने हार नहीं मानी और फिर वह साल 1815 में कैद से आजाद होकर पेरिस पहुंच गए।
इसके बाद उन्होंने यहां की राजनैतिक स्थिति में सुधार करने के लिए तेजी से संविधान में बदलाव किए, लेकिन यहां वह ज्यादा दिन तक राज नहीं कर सके, क्योंकि नेपोलियन की विशाल सेना के खत्म होने के बाद, उसकी ताकत को कमजोर होता देख इस दौरान यूरोप के कई देश एक हो गए।
फिर 18 जून साल 1815 में ऑस्ट्रेलिया, रुस, ब्रिटेन, प्रशा, हंगरी ने अपनी संयुक्त सेना लेकर नेपोलियन के खिलाफ धावा बोल दिया, और इसमें नेपोलियन की नाकामी का सामना करना पड़ा।
वहीं वाटरलू शहर में युद्ध होने की वजह से इस युद्ध को वाटरलू का युद्द कहा गया, वहीं इस पराजय के बाद नेपोलियन कभी कैद से आजाद नहीं हो सके। इस तरह नेपोलियन ने अपने जीवन काल में अपनी अदभुत शक्ति और अदम्य शक्ति का परिचय देकर यूरोप के कई हिस्सों पर अपना सिक्का जमाया और वे इतिहास के सबसे महान बादशाह भी बने। नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन से हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।
★ नेपोलियन की मृत्यु ★
1815 में मित्र-राष्ट्रों की मिली-जुली सेना से वाटरलू के युद्ध में उसे घोर पराजय का सामना करते हुए इंग्लैण्ड के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा, जिसके फलस्वरूप उसे सेंटहेलेना द्वीप में भेज दिया गया। साल 1821 में पेट के कैंसर होने की वजह से इस महान बादशाह की मौत हो गई। 6 वर्षों का यातनामय जीवन बिताते हुए नेपोलियन ने मृत्यु से पहले अपनी वसीयत में यह लिखा था कि- ‘मुझे सोन नदी के तट पर फ्रांस की जनता के बीच दफनाया जाये, जिससे कि मैं बहुत अधिक प्रेम करता हूं।’