माइकल फैराडे का जन्म 22 सितंबर 1791 ई. को हुआ। इनके पिता बहुत गरीब थे और लौहार का कार्य करते थे। ये लंदन में किताबों मे जिल्द लगाने का काम करते थे। समय मिलने पर रसायन एव विद्युत् भौतिकी पर पुस्तकें पढ़ते रहते थे। सन् 1813 ई. में प्रसिद्ध रसायनज्ञ, सर हंफ्री डेबी, के व्याख्यान सुनने का इन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ। इन व्याख्यानों पर फैराडे ने टिप्पणियाँ लिखीं और डेबी के पास भेजीं। सर हंफ्री डेबी इन टिप्पणियों से बड़े प्रभावित हुए और अपनी अनुसंधानशाला में इन्हें अपना सहयोगी बना लिया। फैराडे ने लगन के साथ कार्य किया और निरंतर प्रगति कर सन् 1833 में रॉयल इंस्टिट्यूट में रसायन के प्राध्यापक हो गए।
अपने जीवनकाल में फैराडे ने अनेक खोजें कीं। सन् 1831 में विद्युत प्रेरण के सिद्धांत की महत्वपूर्ण खोज की। चुंबकीय क्षेत्र में एक चालक को घुमाकर विद्युत्-वाहक-बल उत्पन्न किया। इस सिद्धांत पर भविष्य में जनित्र (generator) वना तथा आधुनिक विद्युत् इंजीनियरी की नींव पड़ी। इन्होंने विद्युद्विश्लेषण पर महत्वपूर्ण कार्य किए तथा विद्युद्विश्लेषण के नियमों की स्थापना की, जो फैराडे के नियम कहलाते हैं। विद्युद्विश्लेषण में जिन तकनीकी शब्दों का उपयोग किया जाता है, उनका नामकरण भी फैराडे ने ही किया। क्लोरीन गैस का द्रवीकरण करने में भी ये सफल हुए। परावैद्युतांक, प्राणिविद्युत्, चुंबकीय क्षेत्र में रेखा ध्रुवित प्रकाश का घुमाव, आदि विषयों में भी फैराडे ने योगदान किया। आपने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें सबसे उपयोगी पुस्तक “विद्युत् में प्रायोगिक गवेषणाएँ” (Experimental Researches in Electricity) है।
फैराडे जीवन भर अपने कार्य में लगे रहे। ये इतने नम्र थे कि इन्होंने कोई पदवी या उपाधि स्वीकार न की। रायल सोसायटी के अध्यक्ष पद को भी अस्वीकृत कर दिया। धुन एवं लगन से कार्य कर, महान वैज्ञानिक सफलता प्राप्त करने का इससे अच्छा उदाहरण वैज्ञानिक इतिहास में न मिलेगा।
फैराडे की सबसे बड़ी उपलब्धि विद्युत चुंबकत्व और बिजली के विकास में थी। हालांकि लोगों को पहले से ही बिजली के बारे में पता था, फैराडे ने भी बिजली का सतत स्रोत प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1821 के अपने इलेक्ट्रो-चुंबकीय रोटेशन मॉडल के माध्यम से ऐसा किया। बाद में वह पहली इलेक्ट्रिक डाइनेमो विकसित करने में सक्षम था; उन्नीसवीं सदी के नए बिजली उद्योग में विद्युत चुंबकत्वके सिद्धांतों ने प्रभावशाली साबित कर दिया।
प्रस्तुत है डायनेमो की खोज से जुड़ा फैराडे का प्रेरक प्रसंग:
डायनेमो या जेनरेटर के बारे में जानकारी रखनेवाले यह जानते हैंकि यह ऐसा यंत्र है जिसमें चुम्बकों के भीतर तारों की कुंडली या कुंडली केभीतर चुम्बक को घुमाने पर विद्युत् बनती है। एक बार फैराडे ने अपने सरलविद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के प्रयोग की प्रदर्शनी लगाई। कौतूहलवश इस प्रयोगको देखने दूर-दूर से लोग आए। दर्शकों की भीड़ में एक औरत भी अपनेबच्चे को गोदी में लेकर खड़ी थी। एक मेज पर फैराडे ने अपने प्रयोग काप्रदर्शन किया। तांबे के तारों की कुंडली के दोनों सिरों को एक सुईहिलानेवाले मीटर से जोड़ दिया। इसके बाद कुंडली के भीतर एक छड़चुम्बक को तेजी से घुमाया। इस क्रिया से विद्युत् उत्पन्न हुई और मीटर कीसुई हिलने लगी। यह दिखाने के बाद फैराडे ने दर्शकों को बताया कि इसप्रकार विद्युत् उत्पन्न की जा सकती है।
यह सुनकर वह महिला क्रोधित होकर चिल्लाने लगी – “यह भीकोई प्रयोग है!? यही दिखाने के लिए तुमने इतनी दूर-दूर से लोगों कोबुलाया! इसका क्या उपयोग है?”
यह सुनकर फैराडे ने विनम्रतापूर्वक कहा – “मैडम, जिस प्रकारआपका बच्चा अभी छोटा है, मेरा प्रयोग भी अभी शैशवकाल में ही है।आज आपका बच्चा कोई काम नहीं करता अर्थात उसका कोई उपयोग नहींहै, उसी प्रकार मेरा प्रयोग भी आज निरर्थक लगता है। लेकिन मुझे विश्वासहै कि मेरा प्रयोग एक-न-एक दिन बड़ा होकर बहुत महत्वपूर्ण सिद्धहोगा।”
यह सुनकर वह महिला चुप हो गई। फैराडे अपने जीवनकाल मेंविद्युत् व्यवस्था को पूरी तरह विकसित होते नहीं देख सके लेकिन अन्यवैज्ञानिकों ने इस दिशा में सुधार व् खोज करते-करते उनके प्रयोग कीसार्थकता सिद्ध कर दी।
उनका 25 अगस्त 1867 को हैम्पटनकोर्ट में निधन हो गया।