नवाबों का शहर लखनऊ ! दोस्तों बात करते है अदब और तहज़ीब के मालिक लखनऊ शहर कि। लखनऊ शहर है मस्त मौले मिज़ाज वालों का ,ठाठ से रहने वालों का। यहाँ आपको मुग़लई चिकन खाने को मिलेगा और चिकन पहनने को भी मिलेगा। दोस्तों लखनऊ इतना पुराना है कि इसका सीधा संबंध रामायण मे भी है। अयोध्या राज मे होने के कारण इसको प्रभु श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को उपहार स्वरूप भेंट किया था। इसलिए ये नाम लक्ष्मणपुर और लखनपुर के नाम से जाना जाने लगा । बाद मे इसका नाम लखनऊ पड़ गया
दोस्तों! जो आज का लखनऊ है उसकी नींव नवाब आसफउद्दौला ने 1775 ई.में रखी थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया
यहाँ का अवधी खान-पान भी इस शहर को अलग पहचान देता है। लखनऊ खाने के पसंदीदा लोगों के लिए जन्नत माना जाता है। अगर आप लखनऊ आए और यहां के मशहूर टुंडे के कवाब और इदरीस की बिरयानी नहीं खाई तो समझिए आपका लखनऊ घूमना बेकार हुआ। ऐसा नहीं है कि लखनऊ सिर्फ मासाहारी खान-पान के लिए ही मशहूर है, यहां पर आपको ऐसे शाकाहारी पकवान भी मिलेंगे जिसको खाकर आप उंगलियां चाटते रह जाएंगें
Best place to Visit in Lucknow लखनऊ मे घूमने की जगह
रूमी दरवाजा : नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1783 ई. मे बनवाया था। इसकी बनावट बड़े इमामबाड़ा की तरह ही बनाया गया है। सबसे रोचक बात ये है कि इसको अकाल के समय बनवाया गया कि लोगों को इसमें रोजगार मिले और लोग अपनी जीविका को चला सकें। अवध वास्तुकला के प्रतीक इस दरवाजे को तुर्किश गेटवे कहा जाता है। रूमी दरवाजा कांस्टेनटिनोपल के दरवाजों के समान दिखाई देता है। यह इमारत 60 फीट ऊंची है
इमामबाड़ा : 1837 ई. मोहम्मद अली शाह ने इस इमारत को बनवाया था। इसे छोटा इमामबाड़ा भी कहा जाता है। माना जाता है कि मोहम्मद अली शाह को यहीं दफनाया गया था। इस इमामबाड़े में मोहम्मद की बेटी और उसके पति का मकबरा भी बना हुआ है। मुख्य इमामबाड़े की चोटी पर सुनहरा गुम्बद है जिसे अली शाह और उसकी मां का मकबरा समझा जाता है। मकबरे के विपरीत दिशा में सतखंड नामक अधूरा घंटाघर है। 1840 में अली शाह की मृत्यु के बाद इसका निर्माण रोक दिया गया था। उस समय 67 मीटर ऊंचे इस घंटाघर की चार मंजिल ही बनी थी। मोहर्रम के अवसर पर इस इमामबाड़े की आकर्षक सजावट की जाती है
रेज़ीडेंसी : लखनऊ की रेजिडेन्सी अंग्रेजों के राज को याद दिलाते है। सिपाही विद्रोह के समय यह रेजिडेन्सी ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत शहर के केन्द्र में स्थित हजरतगंज क्षेत्र के समीप है। यह रेजिडेन्सी अवध के नवाब सआदत अली खां द्वारा 1800 ई. में बनवाई गई थी
जामा मस्जिद : हुसैनाबाद इमामबाड़े के पश्चिम दिशा में जामी मस्जिद स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था लेकिन 1840 ई. में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया। जामी मस्जिद लखनऊ की सबसे बड़ी मस्जिद है। मस्जिद की छत के अंदरुनी हिस्से में खूबसूरत चित्रकारी देखी जा सकती है। प्रार्थना के लिए गैर मुस्लिमों का मस्जिद में प्रवेश वर्जित है
पिक्चर गैलरी : हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप 19वीं शताब्दी में बनी यह पिक्चर गैलरी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। यह गैलरी लखनऊ के उस अतीत की याद दिलाती है जब यहां नवाबों का डंका बजता था
अम्बेडकर पार्क : गोमतीनगर स्थित अम्बेडकर मेमोरियल पार्क की। इस पार्क का निर्माण गुलाबी पत्थरों से हुआ है..जो रात की रौशनी और में बेहद ही खूबसूरत लगता है। इस पार्क का निर्माण उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बहनजी मायावती द्वारा वर्ष 2008 में कराया दलितों के मसीहा माने जाने वाले सभी महापुरूषों को सम्मान देते हुए कराया। दलित समुदाय भी इसे अपने उत्थान का प्रतीक मानता है। लोगों का कहना है ‘कम से कम मायावती जी ने एक ऐसा स्थल बनवा दिया है, जिससे हमें गर्व की अनुभूति होती है। इस पार्क में हर वर्ष 14 अप्रैल को यहां अम्बेडकर जयंती काफी धूमधाम से मनाई जाती है। अगर इस पार्क को लखनऊ की शान कहा जाए तो बिल्कुल भी गलत नहीं होगा
फिल्मों मे भी छाया है लखनऊ
अब इन सब से हट कर बॉलीवुड ने भी अपने कदम लखनऊ में रख लिए हैं। इनमें अभी रेड मूवी ही लेटेस्ट है जिसकी शूटिंग लखनऊ में हुई है। इसके अलावा जॉली एलएलबी 2, दावते इश्क़, यंगिस्तान इत्यादि मूवी की शूटिंग भी यहीं हुई है
लखनऊ के खान पान
टुंडे कवाब : लखनऊ की चौक बाजार स्थित टुण्डे की दुकान लगभग 112 साल पुरानी है। टुंडे कवाब की एक अलग दिलचस्प कहानी है। टुंडे का मतलब होता है विकलांग, मतलब जिस आदमी ने ये कवाब बनाने शुरू किये थे वह विकलांग था। टुंडे कवाब बनाने के लिए लगभग 100 प्रकार के मसालों का उपयोग किया जाता है। नवाब खाने पीने के शौकीन थे, लेकिन उम्र के साथ मुंह में दांत नहीं रहे तो उस अनुसार ही इस दुकान के मालिक ने ऐसे कवाब बनाने की सोची जिसे बिना दांत के भी आसानी से खाया जा सके
बॉम्बे पाव भाजी : अगर आपको शाकाहारी खाने का मज़ा लेना है तो हजरतगंज के सेंट फ्रांसिस स्कूल के पास आप इसे खा सकते हैं। बॉम्बे पाव भाजी की सबसे खास बात यह है कि यह मक्खन में तला जाता है और इसे बनाने वाले हाइजीन का खासा ध्यान रखते हैं। इसकी कीमत 100 रूपये से भी कम है
बाजपेई की कचौड़ी : यह दुकान लीला सिनेमा के पास स्थित है। बाजपेई कचौड़ी खाने के लिए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई और फिल्म जगत की भी कई नामचीन हस्तियां आ चुकी हैं। यहां की स्वादिष्ट कचौड़ियों की कीमत सस्ती होने की वजह से यहां पर आपको दूर से ही लम्बी कतारें देखने को मिलेंगीं
बास्केट चाट : हजरतगंज रायल कैफे की बास्केट चाट चटपटा खाने वालों की पहली पसन्द है। लखनऊ में आपको इससे अच्छी चाट नहीं मिल सकती। अनार के दानों से सजी बास्केट चाट बनाने के लिए इसे खास तरीके के मसालों का प्रयोग किया जाता है। खट्टी मीठी इमली की चटनी और मटर आलू का सही मात्रा में मिश्रण ही यहां की चाट को खास बनाता है
इदरीस की बिरयानी : अगर आप मटन बिरयानी के शौकीन हैं तो आपको इस होटल में जरूर खाना चाहिए। इससे स्वादिष्ट बिरयानी आपको पूरे लखनऊ में कहीं नहीं मिलेगी। इदरीस की बिरयानी कि खासियत यह है कि इसे कोयले की आंच पर बनाया जाता है और आग का इस्तेमाल नहीं होता है। यह होटल लखनऊ के कोतवाली चौक बाजार में स्थित है
शर्मा की चाय : लखनऊ में चाय के शौकीन लोगों में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसे शर्मा जी की चाय का पता न हो। शर्मा की चाय लखनऊ के लाल बाग में स्थित है। चाय के साथ बन-मक्खन और समोसा खाने वालों की यहाँ सुबह से शाम भीड़ लगी रहती है। शर्मा जी की चाय की खासियत यह है कि यहां पर जो भी एक बार चाय पी लेता है फिर उसको यह स्वाद भुलाना मुश्किल हो जाता है
लखनऊ की चिकनकारी : लखनऊ का नाम आते ही चिकन की कढ़ाई के कपड़ों का भी अनायास नाम ठीक उसी तरह से आ जाता है जैसे लखनवी कबाब और बिरयानी का आता है। चिकनकारी पिछले 150 सालों से भी ज्यादा लखनऊ के नाम से जुड़ी हुई है। यह नवाबों के काल में विधिवत स्थापित हुई थी। लखनऊ का चिकन इतना प्रसिद्ध है कि मशहूर नायिका ज्यूडी डेंच जब 2004 में अकैडमी अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ट अभिनेत्री का ख़िताब लेने स्टेज पर गयी थी तो संदीप खोसला और अबू जानी की चिकनकारी जड़ी कृति पहनी हुईं थीं। ज्यूडी डेंच जेम्स बांड की फिल्मों में अपनी भूमिका के लिये जानी जाती है। जानी-मानी गायिका मडोना भी लखनवी चिकन की कायल है
कैसे शुरू हुआ लखनऊ मे चिकनकारी :
वैसे कायल होने की बात की इन्तिहां लखनऊ में ही पाई जाती है जहां महबूब गंज मोहल्ले में 1878 का बना हुआ मुग़ल साहिबा का इमामबारा है। इसको मुग़ल शासक मोहम्मद अली शाह की बेटी फकरू निसा बेगम ने बनवाया था। इमामबाड़े की दीवारों और खिड़कियों पर बेहतरीन चिकनकारी के डिजाईन बने हुएं है जो काबिले तारीफ है। अमूमन कहा जाता है कि मुग़ल बादशाह जहांगीर की बेगम नूर जहां (1577-1645) ने इस तरह की कढ़ाई की शुरुआत की थी। चिकन शब्द भी हिंदुस्तानी नहीं है। फारसी के चिकिन या चिकीन से लिया गया है जिसका मतलब कढ़ाई किया हुआ कपड़ा होता है। नूर जहां इस तरह का सफ़ेद कढ़ाई किया हुआ कपड़ा पर्शिया से लायी थी जिसको शाही घराने में पसंद किया गया था। नूर जहां खुद सिलाई-कढ़ाई में माहिर थीं और उन्होंने ढाका की मलमल पर शैडो वर्क शुरू करवाया था। उनके दौर के कई चित्र है जिनमें बादशाह सफ़ेद रंग का कढ़ाई दार ढीला लिबास पहने हुये है। नूर जहां ने चिकन कारी को बढ़ावा देने के लिये दिल्ली में कारीगरों को इकहठा किया था और चिकन के फूल–पतियों वाले विशेष लक्षणों को चिन्हित भी किया था। आज जो हम लखनऊ के चिकनकारी देखते है वो नूर जहां की देन है
लखनवी चिकन की खुसूसियत को मद्देनज़र रखते हुए 2008 में इसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन स्टेटस भी दिया गया था। इसका मतलब यह है कि एक तरह से लखनऊ को चिकनकारी का कॉपीराइट दे दिया गया है