पारसी धर्म ईरान का प्राचीन धर्म है। ईरान के बाहर मिथरेज्म के रूप में रोमन साम्राज्य और ब्रिटेन के विशाल क्षेत्रों में इसका प्रचार-प्रसार हुआ। इसे आर्यों की एक शाखा माना जाता है। जब ईरान पे मुसलमान शासकों का शासन हुआ तो पारसियों को इस्लाम कबूल करना पड़ा तो कुछ पारसी धर्म के लोगों ने अपना देश छोड़कर भारत में शरण ली। उस समय दुनिया के तीन महाद्वीपों तथा 20 देशों में राज करने वाले पारसी समुदाय की तादाद आज बहुत कम रह गई हैं।
कहा जाता है कि इस्लामिक अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईसा पूर्व दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वे गुजरात में बस गए। गुजरात से कुछ लोग मुंबई में बस गए। अब पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी संभवत: 1,00,000 से अधिक नहीं है। ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी अधिकांश अब मुंबई में हैं।
कैसे हुआ धर्म की शुरुआत :- इसकी स्थापना पैगंबर ज़राथुस्ट्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी. ईसा मसीह की ही भांति पारसी धर्म की स्थापना करने वाला जरस्थ्रु थे। मान्यता है कि उनका जन्म लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व एक कुंआरी माता “दुघदोवा” से हुआ था। एक हजार सालों तक जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के एक ताकतवर धर्म के रूप में रहा. 600 BCE से 650 CE तक इस ईरान का यह आधिकारिक धर्म था। उनके नाम पर ही पारसियों का धर्म जोरोस्ट्रियन कहलाता है। पारसी कम्युनिटी के लोग एक ईश्वर को मानते हैं जो ‘आहुरा माज्दा’ कहलाते हैं। ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुश्ट्र की शिक्षाओं को मानते हैं। पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं।
पारसी धर्म से जुड़े रोचक बातें
- पारसी समुदाय में बाहर के लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता। यदि किसी पारसी लड़की ने किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह किया है तो उसके पति तथा बच्चों को पारसी समुदाय में प्रवेश नहीं दिया जाता। इसी तरह लड़के ने बाहर के धर्म में विवाह किया है तो उसकी पत्नी को भी पारसी बनने की अनुमति नहीं होती।
- पारसियों का नया वर्ष 24 अगस्त को आरंभ होता है। इस दिन को नवरोज भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन जरस्थ्रु का जन्म हुआ था।
- “किस्सा ए संजान” पारसियों का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना बहमान कैकोबाद ने की थी।
- पारसी एक साल को 360 दिन का मानते हैं। बाकी पांच दिन को वे गाथा कहते हैं। इन पांच दिनों में वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
कैसे होता है अंतिम संस्कार :-
विभिन्न धर्मों में मृतक के शरीर को अंतिम विदाई देने का अलग-अलग तरीका होता है। जिस तरह हिन्दू और सिख धर्म में शव का दाह-संस्कार किया जाता है, इस्लाम और ईसाई धर्म के लोग शव को दफनाते हैं, वैसे ही पारसी धर्म, जिन्हें भारत के बाहर जोरास्ट्रियन्स धर्म कहा जाता है, को मानने वाले लोग मृतक के शव को गिद्धों का भोजन बना देते हैं। पिछले करीब तीन हजार वर्षों से पारसी धर्म के लोग दोखमेनाशिनी नाम से अंतिम संस्कार की परंपरा को निभाते आ रहे हैं। इस परंपरा को निभाने के लिए ये लोग पूर्णत: गिद्धों पर ही निर्भर हैं। क्योंकि गिद्ध ही मृतक के शव को अपना भोजन बनाते हैं