1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की हिंसक कार्रवाई शुरू हुई तो वहाँ के लगभग 10 से 11 लाख लोगों ने असम में शरण ली।
जब बांग्लादेश देश बना तब इनमें से अधिकांश वापस लौट गए, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी असम में ही अवैध रूप से रहने लगे। देश बनने के बाद भी बहुत सारे बांग्लादेशी नागरिक भारत में अवैध रूप से घुसपैठ करने लगे, तब स्थानीय लोगों को लगा कि ये लोग उनके संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेंगे।इस तरह जनसंख्या में हो रहे बदलावों ने असम के मूल निवासियों में भाषायी, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर दी।
इसकी प्रतिक्रयास्वरूप 1978 के आस-पास वहाँ एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसका नेतृत्व वहाँ के युवाओं और छात्र संगठनों- ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और ऑल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP) के हाथों में था।इसी समय इस मांग ने भी ज़ोर पकड़ा कि विधानसभा चुनाव कराने से पहले विदेशी घुसपैठियों की समस्या का हल निकाला जाए। बांग्लादेशियों को वापस भेजने के अलावा आंदोलनकारियों ने 1961 के बाद राज्य में आने वाले लोगों को वापस भेजे जाने या उन्हें कहीं और बसाने की मांग की। इन्हीं मुद्दों को लेकर आंदोलन उग्र होता गया और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई। बांग्लादेशियों को वापस भेजने के अलावा आंदोलनकारियों ने 1961 के बाद राज्य में आने वाले लोगों को वापस भेजे जाने या उन्हें कहीं और बसाने की मांग की। इन्हीं मुद्दों को लेकर आंदोलन उग्र होता गया और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई। 1983 के विधानसभा चुनाव में राज्य की बड़ी आबादी ने मतदान का बहिष्कार किया। इसी दौरान राज्य में आदिवासी, भाषायी और सांप्रदायिक पहचान के नाम पर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। स्थिति इतनी बिगड़ी कि 1984 के आम चुनावों में राज्य के 14 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव ही नहीं हो पाए। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और असम में घुसपैठियों के ख़िलाफ़ वर्ष 1979 से चले लंबे आंदोलन और 1983 की भीषण हिंसा के बाद समझौते के लिये बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और कुछ अन्य संगठनों तथा भारत सरकार के बीच हुआ समझौता ही असम समझौता कहलाता है।
असम समझौते के मुताबिक 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहाँ से जाना होगा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान।इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और मतदान का अधिकार देने का फैसला लिया गया। इस समझौते के तहत 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।इस समझौते का पैरा 5.8 कहता है कि 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विदेशियों को कानून के अनुसार निष्कासित किया जाएगा। ऐसे विदेशियों को बाहर निकालने के लिये तात्कालिक एवं व्यावहारिक कदम उठाए जाएंगे।इस समझौते के तहत विधानसभा भंग करके 1985 में चुनाव कराए गए, जिसमें नवगठित असम गण परिषद को बहुमत मिला और AASU के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत असम के मुख्यमंत्री बने।1979-1985 के दौरान हुए असम आंदोलन के पश्चात् 15 अगस्त, 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
समझौते की धारा 6 के अनुसार, असम के लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान व विरासत के संरक्षण और उसे प्रोत्साहित करने के लिये उचित संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक उपाय किये जाएंगे।
इसलिये मंत्रिमंडल ने एक उच्च स्तरीय समिति के गठन को मंज़ूरी दी है जो असम समझौते की धारा 6 के आलोक में संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षात्मक उपायों से संबंधित अनुशंसाएँ करेगी।
बोडो समझौते पर 2003 में हस्ताक्षर किये गए। इसके परिणामस्वरूप भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (Bodoland Territorial Council) का गठन हुआ।
1985 में असम समझौते पर इस आश्वासन के साथ हस्ताक्षर किये गए कि केंद्र सरकार असम में विदेशियों की समस्या का संतोषजनक समाधान खोजने के लिये प्रयास करेगी।
परिणामस्वरूप असम में आव्रजन मुद्दे को हल करने के लिये लागू किये जाने वाले प्रस्तावों को केंद्र सरकार के समक्ष रखा।
समझौते के अनुसार, 1 जनवरी, 1966 से पहले असम आने वाले सभी लोगों को नागरिकता दी जाएगी।
1 जनवरी, 1966 तथा 24 मार्च, 1971 के बीच आए लोगों का “विदेशी अधिनियम, 1946 (Foreigners Act, 1946) और विदेशी (ट्रिब्यूनल) आदेश 1964 [The Foreigners (Tribunal) Order,1964] के प्रावधानों के अनुसार पता लगाया जाएगा।
उनके नाम मतदाता सूची से हटाए जाएंगे और उन्हें 10 साल की अवधि के लिये विस्थापित किया जाएगा।
समझौते के अनुसार, 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम आए विदेशियों का पता लगाए जाने का कार्य जारी रहेगा, ऐसे विदेशियों को निष्कासित करने के लिये व्यावहारिक कदम उठाए जाएंगे