केरल में इस्लाम पैगंबर मुहम्मद के वक्त अरब व्यापारियों के माध्यम से (CE 570 – CE 632) के बीच पहुंचा. इस्लामिक काल से पहले से भी केरल का मध्य पूर्व के साथ एक बहुत ही प्राचीन संबंध था. मुस्लिम मर्चेंट मलिक दीनार 7वीं सदी में केरल में ही आकर बस चुका था और उसी ने यहां सबसे पहले इस्लाम से लोगों को परिचित कराया. चेरामन जुमा मस्जिद जिसे भारत की पहली मस्जिद कहा जाता है वह कोडुंगलूर तालुक में स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि चेरा राजवंश का आखिरी राजा चेरामन पेरुमल ने भी इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था वह पैगंबर मोहम्मद से मिलने भी गया था. पेरुमल ने इस्लाम के प्रचार प्रसार में भी काफी सहयोग किया.
History of Isalam In Kerala in Hindi
भारत और अरब देशों के बीच पैगंबर मोहम्मद के समय से पहले ही कारोबारी रिश्ते कायम हो चुके थे. यहूदी और ईसाई देशों से अलग, अरब के लोग काफी पहले ही भारत के पश्चिमी घाट पर आकर डेरा जमा चुके थे. ऐसे प्रमाण हैं कि अरब मूल के लोग 8वीं और 9वीं शताब्दी में ही केरल में बसने लगे थे. हालांकि, कई जगह ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि पश्चिम एशिया से केरल में पहुंचने वालों में मुस्लिम कारोबारी पहले नहीं थे. ऐसा यहां के मसालों की वजह से था. यूरोपीय और अरब कारोबारियों को ये जगह भारी मुनाफे की वजह से लुभाती रही थी. कई पुस्तकों में उल्लेख है कि इस्लाम के जन्म से बहुत पहले, अरब कारोबारियों के जहाज केरल में पहुंचने की परंपरा रही है. ऐसा कहा गया है कि यहूदी और ईसाई वहां पहुंचने वाले पहले लोग थे. मुस्लिम इनके बाद ही केरल पहुंचे थे. हालांकि, बाद के वर्षों में केरल में यहूदी तो नहीं बढ़े लेकिन ईसाई-मुस्लिम यहां बढ़ते गए और इसी के साथ बढ़ता गया उनका प्रभाव, जो आज भी राज्य में है.
आजादी से पहले, वर्तमान केरल 3 सूबों को लेकर बना था जिनके नाम थे मालाबार, त्रावनकोर और कोचिन. उत्तरी केरल में इस्लाम के फैलने सबसे अहम फैक्टर कोझिकोड में जमोरिन का संरक्षण रहा. मुस्लिम राज्य में बड़ी ताकत के साथ उभरे थे और राजवंश भी उनका सम्मान करते थे. अदालतों में उनका खासा प्रभाव दिखाई दे रहा था. 1498 में पुर्तगालियों ने यहां पर पहले से स्थापित कम्युनिटी की प्रगति की पड़ताल की. हालांकि बाद के वर्षों में मुस्लिमों की आबादी धर्मांतरण के फलस्वरूप ही बढ़ी. दक्षिणी मालाबार में ये धर्मांतरण मुख्यतः जातीय व्यवस्था की मार झेल रहे हिंदुओं में हुआ. 18 वीं शताब्दी के मध्य तक केरल के अधिकांश मुसलमान भूमिहीन मजदूर, गरीब मछुआरे और छोटे व्यापारी थे. 18वीं सदी में मैसूर राजवंश की चढ़ाई ने इसकी विपरीत स्थिति को जन्म दिया. 1766 के बाद मुस्लिम राज्य में प्रभावशाली हो चले थे लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के उदय और princely Hindu confederacy 1792 ने मुस्लिमों को एक बार फिर आर्थिक और सांस्कृतिक अधीनता में ला खड़ा किया.
केरल और मुस्लिम देशों के बीच व्यापार बढ़ने के साथ ही सुलेमान नाम के पहले मुस्लिम मर्चेंट ने 851वीं शताब्दी में केरल का दौरा किया था. इसके बाद कई अरब मुस्लिम केरल आए और मालाबार तट पर बसे. यहां पर कालीकट के राजा ने उनका स्वागत किया. राजा ने इन लोगों को स्थानीय महिलाओं से शादी के लिए प्रेरित किया और सैन्य बलों में सेवा देने के लिए भी तैयार किया. यहां चेर राजवंश के चेरामन पेरुमल का जिक्र करना भी आवश्यक हो जाता है जिन्होंने न सिर्फ इस्लाम धर्म स्वीकार किया बल्कि मक्का भी गए. चेरामन जुमा मस्जिद को ही भारत की पहली मस्जिद कहा जाता है, ये कोडुंगलूर तालुक में स्थित है. मालाबार के मुस्लिमों में अरब मुस्लिम मलिक दिनार के प्रति सम्मान का भाव था. मलिक दिनार केरल में इस्लाम का प्रचार करने आया. उसने पहली मस्जिद करेंगनोर में बनाई. इसके बाद उसने क्विलोन, मडाई, कासरगौड, श्रीकांतपुरम, धर्मपट्टनम और चालियम में मस्जिदों का निर्माण किया.
भारत में इस्लामी कट्टरता की जड़ें गहरी जमी है जब एक मस्जिद पर गुंबद बनाने को लेकर मुसलमानों का विवाद हो गया तो टीपू सुल्तान को आमंत्रित किया गया था. उस समय गुंबद बनाने की अनुमति सिर्फ तीन हिंदू मंदिरों को थी. टीपू सुल्तान बहुत सख्त था. उसने हिंदुओं को गोमांस खाने और इस्लाम कबूलने को मजबूर किया था. उनके हमलों के कारण कुछ भी हों लेकिन हैदर और टीपू ने वहां हिंदू-मुसलमान विवाद के बीज बोए और इस तरह केरल में इस्लाम की जिंदगी का मदीना काल शुरू हुआ.यहूदी और ईसाई जाहिर तौर पर वहां पहुंचने वाले पहले लोग थे और उनके बाद मुसलमान पहुंचे. बाद की सदियों में यहूदियों की जनसंख्या बढ़ी नहीं, लेकिन ईसाइयों और मुसलमानों की जनसंख्या भी बढ़ी और उनका प्रभाव भी, जैसा कि आज भी है. पश्चिम एशिया से केरल में पहुंचने वाले मुसलमान पहले लोग नहीं थे. इस्लाम के जन्म से बहुत पहले, वहां अरब कारोबारियों के जहाज पहुंचने की परंपरा रही है.
लेकिन केरल में इस्लाम से जुड़ा पहला विवाद तब शुरू हुआ जब 1498 ईस्वी में वास्कोडिगामा के नेतृत्व में पुर्तगाली लोग वहां पहुंचे. वे यूरोप से वहां इस्लाम बनाम ईसाईयत का विचार लेकर पहुंचे. हिंदुओं ने व्यापार और अपने सहअस्तित्व के सिद्धांत के कारण मुसलमानों का साथ दिया. इसे केरल में मुसलमानों का मक्का वाला शांतिपूर्ण काल कहा जाता है जब उनकी संख्या बहुत कम थी. जिन दो मुसलमान शासकों ने केरल में मुसलमानों के मक्का काल को खत्म किया वे थे हैदर अली और उसका बेटा टीपू सुल्तान.
आज केरल के उन इलाकों में कट्टरपंथ महसूस किया जा सकता है जहां इन मुसलमान शासक बाप-बेटों ने हमले किए थे. हैदर अली ने 1771 में मालाबार इलाके में हमला किया और टीपू सुल्तान ने 1789 में.
इब्न बतूता ने अपने जीवनकाल में 1342 से 1347 तक का काल केरल में बिताया और राज्य के अलग अलग हिस्सों में मुस्लिमों की जीवनशैली का उसने विवरण दिया है. इब्न बतूता ने कालीकट से क्विलोन तक 10 दिनों तक यात्रा की. उसने लिखा, ‘जहां ठहरने की जगहें थी वहां मुस्लिमों के घर थे. इन घरों में मुस्लिम यात्रा ठहरते थे. वह खाने पीने का सामान भी खरीदते थे. राज्य में मुस्लिम सबसे सम्मानित लोग थे. बता दें कि 15वीं, 16वीं और 17वीं शताब्दी में मुस्लिम केरल में न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत हुए बल्कि उनकी संख्या भी बढ़ी. समाज में अस्पृश्यता का दंश झेल रहे कई लोग इस्लाम के प्रति आकर्षित हुए. 12वीं शताब्दी के एक समय केरल में मुस्लिम शासक भी रहा था. केरल के मुस्लिमों को मप्पिला कहा जाता है. ये सभी मलयालम भाषा ही बोलते हैं और अरब संस्कृति के मिश्रण के साथ साथ मलयालम संस्कृति का पालन करते हैं. केरल में इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. पहले नंबर पर हिंदू धर्म है. केरल में मुस्लिम आबादी 25 फीसदी से अधिक है जो देश के किसी भी राज्य से अधिक आंकड़ा है. केरल में इस्लाम इस वक्त तेजी से बढ़ रहा है.