बात बारिश की हो और चेरापूंजी का नाम न उठे, हो ही नहीं सकता। हरियाली से सजी चेरापूंजी की पहाड़ियां बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींच लेती हैं। जब बारिश होती है तो बसंत अपने शबाब पर होता है। ऊंचाई से गिरते पानी के फव्वारे, कुहासे के समान मेघों को देखने का अपना अलग ही अनुभव है। यहां के स्थानीय निवासियों को बसंत का बड़ी शिद्धत से इंतजार होता है।
कहाँ और कैसे बसा है चेरापूंजी : चेरापूंजी समुद्र से लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो मेघालय की राजधानी शिलांग से 60 किलोमीटर की दूरी पर है। चेरापूंजी को सोहरा के नाम से भी जाना जाता है। यहां औसत वर्षा 10,000 मिलीमीटर होती है। वर्षा ऋतु में दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं।
पानी होने पे भी होती है पानी की कमी : मेघालय में ही मासिनराम में हाल के दिनों में चेरापूंजी से भी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। लेकिन विडंबना ही है कि सबसे ज्यादा बारिश होने की ख्याति पाने वाले चेरापूंजी के लोगों को हर साल कुछ महीनों के लिए पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ता है। यहां सूखा अपना असर नवंबर से दिखाना शुरू कर देता है। ऐसे समय में यहां के लोगों को पब्लिक हेल्थ इंजीनयरिंग की वाटर सप्लाई पर निर्भर रहना पड़ता है।
आख़िर क्यों होती इतनी बारिश : यह स्थल 25.30°N 91.70°E में स्थित है। यह 4869 फुट की ऊंचाई पर खासी हिल्स के दक्षिणी पठार पर स्थित है जहां पर मानसूनी हवाओं का हर समय जोर बना रहता है। इसके सामने बांग्लादेश का मैदानी इलाका पड़ता है। यह पठार आस-पास की पहाड़ियों पर 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यहां पर पूर्वोत्तर और दक्षिण-पश्चिमी मानसून की हवाएं आती हैं जिसकी वजह से यहां हर समय मानसून मौजूद रहता है। सर्दियों मे ब्रह्मपुत्र की तरफ से आने वाली पूर्वोत्तर हवाओं की वजह से यहां बारिश होती है। क्या आपको पता है कि चेरापूंजी में इतनी ज्यादा बारिश क्यों होती है। नहीं पता तो कोई बात नहीं हम आपको बता देते हैं।
और भी है कारण ज्यादा बारिश होने के :
1. पर्वतीय संरचना – चेरापूंजी में सबसे ज्यादा बारिश होने की एक वजह इसकी पर्वतीय संरचना है। दक्षिण की तरफ से पहाड़ियों में उड़ते बादलों को हवा के दबाव से तेजी मिलती है। बादल खासी हिल्स से टकराते हैं जिसकी वजह से भारी बारिश होती है।
2. मानसूनी हवाएं – मेघालय की राजधानी शिलांग से 60 किलोमीटर दूर स्थित चेरापूंजी में दक्षिण-पश्चिम और पूर्वोत्तर की तरफ से मानसूनी हवाए आती हैं। जिसकी वजह से यहां बारिश होती रहती है।
3. जियोग्राफी – भारत में बारिश की राजधानी के तौर पर मशहूर चेरापूंजी की जियोग्राफी ऐसी है जिसकी वजह से नीचे उड़ रहे बादल इसके आसमान को भर देते हैं। यहां की हवाएं बादलों को घाटियों के ऊपर और तीखे ढलानों की ओर उठा देती है। इसके बाद ऊपर पहुंचे बादल तेजी से ठंडे होकर जम जाते हैं जिससे जोरों की बारिश होने लगती है।
वर्ल्ड रिकॉर्ड : अपनी तेज बारिश की वजह से चेरापूंजी के नाम कई वर्ल्ड रिकॉर्ड हैं। पहला रिकॉर्ड अगस्त 1860 से लेकर जुलाई 1861 के बीच में एक साल में सबसे ज्यादा बारिश का है तो दूसरा 1861 जुलाई में 22,987 मिलीमीटर (905.0 इंच) बारिश का है। दूसरा रिकॉर्ड 1861 के जुलाई महीने में सबसे ज्यादा 370 मिलीमिटर बारिश होने का है।
बेंत के छाते का इस्तेमाल करते हैं लोग :
चेरापूंजी के लोग बेंत के छातों को हमेशा अपने पास रखते हैं क्योंकि आसमान से कभी भी बादल बरबस बरस पड़ते हैं। जिससे उन्हें बचाने का काम बेंत के बने यह छाते करते हैं। यहां के लोगों का ज्यादातर साल सड़कों की मरमम्त करने में लग जाता है। बारिश की वजह से सड़क टूट जाती है