चन्द्रगुप्त मौर्यवंश का संस्थापक थे । मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने नंदवंश को ख़त्म ही नही किया उसने पंजाब सिंध में विदेशी शासन का भी अन्त किया और पूरे भारत पे अपना एकाधिकार जमा लिया।
★ चन्द्रगुप्त का जन्म :—
चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ई. पूर्व मौर्य वंश के क्षत्रिय कुल में हुआ था ।
★ कौन है चन्द्रगुप्त :—-
वे प्रथम मौर्य सम्राट थे और पूरे भारत पर भी राज करने वाले वे पहले सम्राट थे। चन्द्रगुप्त जन्म से ही ग़रीब थे। उनके पिता नन्दों की सेना में एक अधिकारी थे जो किसी कारणवंश नन्दों द्वारा मार दिए गए थे। चन्द्रगुप्त के जन्म होने से पहले उनके पिता की मौत हो चुकी थी। जब चन्द्रगुप्त 10 वर्ष के थे तो उनकी माँ मुरा का भी देहांत हो गया था और तब से उनकी परवरिश चाणक्य नाम के ब्राह्मण ने की थी ।
बड़े होने के बाद चन्द्रगुप्त भी नन्दों का सेनापति हुआ परन्तु इससे भी नन्दों की नहीं पटी और वह अपनी प्राण की रक्षा के लिए मगध से भाग गए । और फिर उसके बाद से वह नन्द विनाश का साधन ढूंढने लगे ।
★ कहाँ कहाँ था चन्द्रगुप्त का राज़ :—–
चन्द्रगुप्त एक ऐसा सम्राट हुआ था जिसका राज कोने कोने तक फैल चुका था। बंगाल से ले कर अफ़ग़ानिस्तान और बलोचिस्तान चन्द्रगुप्त ने राज किया |
★ चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य :—
चन्द्रगुप्त के पास चाण्क्य जैसे बुद्धिजीवी का साथ था। ये दोनों ही नंदो के राज मे अपमानित हुए थे। दोनो ने ही नन्द वंश के विनाश का संकल्प लिया था। चन्द्रगुप्त को चाणक्य जैसे विद्वान और चाणक्य को चन्द्रगुप्त जैसे योद्धा की ज़रूरत थी, नन्द- वंश का विनाश के लिए । दोनों को अपने अपने मन की पसंद के व्यक्ति प्राप्त हुए । दोनों में नन्द वंश का अंत करने तथा एक सुदृढ़ साम्राज्य की सथापना के लिए गठबंधन हो गया । उन्होंने मिल कर एक सेना तैयार की और मगध पर आक्रमण कर दिया । परन्तु इस युद्ध में उन्हें हार मिली और दोनों हीं वहां से भाग निकले और पंजाब जा पहुंचे । वहां उन्होंने अनुभव किया की इस प्रदेश को आक्रमण का आधार बना कर नन्दों की शक्ति का अंत करना संभव है ।
★ मगध पर रणनीति के साथ चंद्रगुप्त मौर्य ने दुबारा किया हमला :—–
हार के भागने के बाद चंद्र ने एक रणनीति तैयार की। जिसके बाद वो धीरे धीरे मगध में प्रवेश करने लगे थे। बता दें कि अपना विजय अभियान शुरू चंद्र ने बार्डर से किया था, जिसके बाद रास्ते में आने वाले कई जिले तो कई राज्यों की जीतते हुए मगध पर आक्रमण कर दिया था। बता दें कि चंद्रगुप्त मौर्य ने रास्ते में पड़ने वाले हर जिले हर राज्य को जीता था, जिसकी वजह से कई राज्यों से उन्हें खूब समर्थन भी मिला था। ऐसे में इनकी शक्ति और भी मजबूत हो गई थी। चंद्र ने बाद में मगध पर अटैक किया, तब नंद वहां से भाग निकला लेकिन वहां पर राज चंद्र करने लगा, धीरे धीरे नंद की तलाश जारी थी, बाद में चंद्र ने उसे भी मारा डाला।
★ चन्द्रगुप्त मौर्य का विवाह :——
जब सिकंदर की सेनापति सेल्यूकस ने भारत पर आक्रमण किया था तब चन्द्रगुप्त ने उसकी विशाल सेना का सिन्धु नदी के उस पार सामना किया । इस समय शशिगुप्त और आम्भि के समान विदेशी शत्रु का कोई साथ देने वाला नहीं था । इस युद्ध में सेल्यूकस बुरी तरह परास्त हुआ और चन्द्रगुप्त के साथ उसे एक अपमान जनक संधि करनी पड़ी।
★ क्या थी संधि :——-
संधि के अनुसार उसे वर्तमान अफगानिस्तान और बलुचिस्तान का सारा प्रदेश जो खैबर दर्रे से हिन्द कुश तक फैला हुआ था चन्द्रगुप्त को देना पड़ा ।
अपनी बेटी हेलेन का विवाह चन्द्रगुप्त से करना पड़ा । हेलेन को भारत से लगाव था और शादी के बाद उन्होंने संस्कृत भी सिखा | उपहार में चन्द्रगुप्त ने उसे 500 हांथी दिए और मिगास्थानिज राजदूत के रूप में भारत आया । उनका एक पुत्र भी था जिसका नाम बिन्दुसार था । इस प्रकार चन्द्रगुप्त के साम्राज्य की वैधानिक सीमा पश्चिमोत्तर में हिन्दुकुश तक पहुँच गई ।
★ चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु :—–
सेल्यूकस से जितने के बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य शादी करके कर्नाटक की तरफ चले गए और बाद में उनकी मृत्यु 298 ई. पूर्व श्रवण बेल्गोला में हुआ , उस वक्त चन्द्रगुप्त केवल 42 वर्ष के थे । विजयी होने के बाद उन्होंने जैन पद्वति को अपनाया था |