बिहार में फाल्गू नदी किनारे स्थिति बोधगया जिला भारत में ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है। पितृपक्ष आते ही बोधगया का अलग ही माहौल बन जाता है। इस दौरान यहां पूरे भारत से लोग श्राद्ध के दौरान पिंडदान करने आते हैं। पितृपक्ष के दौरान यहां काफी भीड़ होती है। बोधगया में पितृपक्ष मेला भी लगता है। इसके अलावा बोधगया को भगवान गौतम बुद्ध के कारण भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर बोधिवृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध ने साधना करते हुए ज्ञान की प्राप्ति की थी। जिसके चलते बौद्ध धर्म के लिए यह स्थान काफी महत्व रखता है।
मोह माया त्याग बुद्ध ने पाया ज्ञान :
मान्यतानुसार गौतम बुद्ध ने फाल्गू नदी के किनारे बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। लगभग 528 ई॰ पू. के वैशाख (अप्रैल-मई) महीने में कपिलवस्तु के राजकुमार गौतम ने सत्य की खोज में घर त्याग दिया। गौतम ज्ञान की खोज में निरंजना नदी के तट पर बसे एक छोटे से गांव उरुवेला आ गए। वह इसी गांव में एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान साधना करने लगे। एक दिन वह ध्यान में लीन थे कि गांव की ही एक लड़की सुजाता उनके लिए एक कटोरा खीर तथा शहद लेकर आई। इस भोजन को करने के बाद गौतम पुन: ध्यान में लीन हो गए। इसके कुछ दिनों बाद ही उनके अज्ञान का बादल छट गया और उन्हें ज्ञान की प्राप्ित हुई। अब वह राजकुमार सिद्धार्थ या तपस्वी गौतम नहीं थे बल्कि बुद्ध थे। बुद्ध जिसे सारी दुनिया को ज्ञान प्रदान करना था। ज्ञान प्राप्ित के बाद वे अगले सात सप्ताह तक उरुवेला के नजदीक ही रहे और चिंतन मनन किया।
पहला ज्ञान कहाँ दिया : ज्ञान मिलने के बाद बुद्ध वाराणसी के निकट सारनाथ गए जहां उन्होंने अपने ज्ञान प्राप्ित की घोषणा की। बुद्ध कुछ महीने बाद उरुवेला लौट गए। यहां उनके पांच मित्र अपने अनुयायियों के साथ उनसे मिलने आए और उनसे दीक्षित होने की प्रार्थना की। इन लोगों को दीक्षित करने के बाद बुद्ध राजगीर चले गए। इसके बुद्ध के उरुवेला वापस लौटने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बाद उरुवेला का नाम इतिहास के पन्नों में खो जाता है। इसके बाद यह गांव सम्बोधि, वैजरसना या महाबोधि नामों से जाना जाने लगा।
मंदिर मे बनाई खुद बुद्ध ने अपनी मूर्ति :
कहा जाता है कि महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्त्ति संबंध स्वयं बुद्ध से है। कहा जाता है कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तो इसमें बुद्ध की एक मूर्त्ति स्थापित करने का भी निर्णय लिया गया था। लेकिन लंबे समय तक किसी ऐसे शिल्पकार को खोजा नहीं जा सका जो बुद्ध की आकर्षक मूर्त्ति बना सके। सहसा एक दिन एक व्यक्ित आया और उसे मूर्त्ति बनाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इसके लिए उसने कुछ शर्त्तें भी रखीं। उसकी शर्त्त थी कि उसे पत्थर का एक स्तम्भ तथा एक लैम्प दिया जाए। उसकी एक और शर्त्त यह भी थी इसके लिए उसे छ: महीने का समय दिया जाए तथा समय से पहले कोई मंदिर का दरवाजा न खोले। सभी शर्त्तें मान ली गई लेकिन व्यग्र गांववासियों ने तय समय से चार दिन पहले ही मंदिर के दरवाजे को खोल दिया। मंदिर के अंदर एक बहुत ही सुंदर मूर्त्ति थी जिसका हर अंग आकर्षक था सिवाय छाती के। मूर्त्ति का छाती वाला भाग अभी पूर्ण रूप से तराशा नहीं गया था। कुछ समय बाद एक बौद्ध भिक्षु मंदिर के अंदर रहने लगा। एक बार बुद्ध उसके सपने में आए और बोले कि उन्होंने ही मूर्त्ति का निर्माण किया था। बुद्ध की यह मूर्त्ति बौद्ध जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त मूर्त्ति है। नालन्दा और विक्रमशिला के मंदिरों में भी इसी मूर्त्ति की प्रतिकृति को स्थापित किया गया है।
बोधगया का त्यौहार : बोधगया में बुद्ध जयन्ती के अवसर पर विशेष आयोजन होते हैं। नये साल के अवसर पर यहां महाकाली पूजन कर मठों को पवित्र किया जाता है। भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म से जुड़ी शिक्षाओं के लिए बोध गया एक शानदार जगह है।
आइए जानते हैं कि बोधगया में किन किन स्थलों को देखा जा सकता है:
महाबोधि मंदिर-
यह मंदिर बोधगया का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर परिसर में बोधिवृक्ष है, जहां पर भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान की प्रप्ति की थी। गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के बाद इस मंदिर का निर्माण राजा अशोक ने करवाया था। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित की गई है।
अर्कियॉलजी म्यूजियम: बोधगया जाएं तो आप अर्कियॉलजी म्यूजियम जरूर जाएं। इस म्यूजियम में महाबोधि पेड़ के चारों ओर लगने वाली असली रेलिंग रखी है।
तिब्बतियन मठ: महाबोधि मंदिर के पास में ही तिब्बतियन मठ स्थित है। तिब्बतियन मठ बोधगया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा मठ है।
नालंदा यूनिवर्सिटी: बोधगया से 70 किलोमीटर और राजगीर से 13 किलोमीटर दूर नालंदा यूनिवर्सिटी है, आप यहां घूमने भी जा सकते हैं और ज्ञान भरे अपने पूर्वजों और अपने इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। नालंदा यूनिवर्सिटी में देश-विदेश के छात्र पढ़ने के लिए आते थे। वर्तमान समय में इसके अवशेष दिखाई देते हैं।
राजगीर- अगर आप बोधगया जा रहे हैं तो राजगीर जाने का प्लान जरूर बनाना चाहिए। यहां पर विश्व शांत स्तूप आकर्षण का केंद्र है। इसके अलावा राजगीर में ही सप्तपर्णी गुफा है। यहां पर गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद पहले बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
कैसे जाए बोधगया :
गया, राजगीर, नालन्दा, पावापुरी तथा बिहार शरीफ जाने के लिए सबसे अच्छा साधन ट्रेन है। इन स्थानों को घूमाने के लिए भारतीय रेलवे द्वारा एक विशेष ट्रेन बौद्ध परिक्रमा चलाई जाती है। इस ट्रेन के अलावे कई अन्य ट्रेन जैसे श्रमजीवी एक्सप्रेस, पटना राजगीर इंटरसीटी एक्सप्रेस तथा पटना राजगीर पसेंजर ट्रेन भी इन स्थानों का जाती है। इसके अलावे सड़क मार्ग द्वारा भी यहां जाया जा सकता है।
हवाई मार्ग : नजदीकी हवाई अड्डा गया (07 किलोमीटर/ 20 मिनट)। इंडियन, गया से कलकत्ता और बैंकाक के साप्ताहिक उड़ान संचालित करती है। टैक्सी शुल्क: 200 से 250 रु. के लगभग।
रेल मार्ग :नजदीकी रेलवे स्टेशन गया जंक्शन। गया जंक्शन से बोध गया जाने के लिए टैक्सी (शुल्क 200 से 300 रु.) तथा ऑटो रिक्शा (शुल्क 100 से 150 रु.) मिल जाता है।
सड़क मार्ग : गया, पटना, नालन्दा, राजगीर, वाराणसी तथा कलकत्ता से बोध गया के लिए बसें चलती है।