इस साल गुरु नानक जयंती 12 नवंबर को मनाई जा रही है। सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले धर्मगुरु गुरु नानक देव की 550 वीं जयंती के मौके पर देशभर में सेलेब्रेशन शुरू हो गया है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को यह प्रकाश का पर्व मनाया जाता है।
इस साल गुरु नानक जयंती 12 नवंबर को मनाई जा रही है। सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले धर्मगुरु गुरु नानक देव की 550 वीं जयंती के मौके पर देशभर में सेलेब्रेशन शुरू हो गया है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को यह प्रकाश का पर्व मनाया जाता है।
गुरु नानक जी पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर एक हिन्दू किसान परिवार के घर जन्मे थे. इनके पिता का नाम कल्याण या मेहता कालू जी था और माता का नाम तृप्ती देवी था. 16 वर्ष की उम्र में इनका विवाह गुरदासपुर जिले के लाखौकी नाम स्थान की रहने वाली कन्या सुलक्खनी से हुआ. इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थें. उनके मस्तक पर शुरू से ही तेज आभा थी. रावी नदी के किनारे तलवंडी (पाकिस्तान के लाहौर से 30 मील पश्चिम) गुरु नानक का नाम साथ जुड़ने के बाद आगे चलकर ननकाना कहलाया. गुरु नानक के प्रकाश उत्सव पर प्रति वर्ष भारत से सिख श्रद्धालुओं का जत्था ननकाना साहिब जाकर वहां अरदास करता है.
★ बचपन से ही थी आध्यात्म में रुचि :—
गुरुनानक जी बचपन से ही अध्यात्म के प्रति रूचि रखते थे. नानकजी का विवाह 16 साल की उम्र में ही कर दिया गया था, लेकिन गृहस्थ से दूर नानकदेव का मन धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ता चला जा रहा था. अपने इस अध्यात्म की वजह से उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को ससुराल में छोड़ दिया और स्वंय धर्म के मार्ग पर चल पडे़.
अपने दोनों पुत्रों के जन्म के बाद नानक देव जी अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े. ये चारों ओर घूमकर उपदेश देने लगे. 1521 तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया. इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ” कहा जाता है. गुरुनानक देव जी मूर्तिपूजा को निरर्थक माना और हमेशा ही रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में रहें. नानक जी के अनुसार ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है.
गुरु नानक देव भाईचारा, एकता और जातिवाद को मिटाने के लिए कई उपदेश दिए. इन उपदेशों को पढ़कर आप अपना जीवन बदल सकते हैं. आज जिसे हम पवित्र गुरुग्रंथ साहिब के नाम से जानते हैं, उसके शुरुआती 940 शबद नानक जी के ही हैं। आदिग्रंथ की शुरुआत मूल मंत्र से होती है, जिसमें हमारा ‘एक ओंकार’ से साक्षात्कार होता है.
1. गुरु नानक देव ने इक ओंकार का नारा दिया यानी ईश्वर एक है. वह सभी जगह मौजूद है. हम सबका “पिता” वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए.
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो.
3. ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है.
4. ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता.
5. ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए.
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं.
7. सदैव प्रसन्न रहना चाहिए. ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए.
8. मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए.
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं.
10. भोजन शरीर को जि़ंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ−लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है.
★ सामाजिक दोषों को किया दूर :—-
गुरुनानक जी ने अपने पूरे जीवन में सामाजिक कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया. समाज में एकरूपता लाने के लिये उन्होंने अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया. समाज में फैल रही बुराईयों को जड़ से मिटाने के लिये उन्होंने काफी सफल प्रयास किये. हालांकि अपने इस प्रयासों के दौरान ही साल 1539 में उन्होंने अपने देह का त्याग कर दिया. गुरुनानक जी का मानना था कि समाज के प्रत्येक वर्ग का विकास तभी हो सकता है, जब सभी लोग सही रास्ते पर चलें.
★ सजायें जाते हैं गुरुद्वारे :—–
गुरुनानक जयंती के दिन गुरुद्वारों और घरों को काफी सुंदर तरीके से सजाया जाता है. गुरुद्वारों को सजाने का काम गुरुनानक जयंती के आने से पहले ही शुरू हो जाता है. हालांकि रात के समय गुरुद्वारों की सजावट और भी खूबसूरत लगती है. प्रकाश पर्व के दिन लगभग हर गुरुद्वारे में लंगर का आयोजन किया जाता है. इस दिन सभी गुरुद्वारों में पूजनीय ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब जी का अखंड पाठ किया जाता है और गुरु ग्रंथ साहिब जी को फूलों से सजाया जाता है. इसके बाद इस पवित्र ग्रंथ को पालकी साहिब में रखकर नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है. नगर कीर्तन में गुरु ग्रंथ साहिब की सुसज्जित पालकी भव्य समारोह के रूप में निकाली जाती है. गुरु ग्रंथ साहिब जी की पालकी की अगुवाई के पंजप्यारे करते हैं और उनके पीछे सभी संगत भजन-कीर्तन करते हुये चलते हैं. इस पर्व के दिन लोगों में खासा उत्साह देखने को मिलता है.