पश्चिम बंगाल के अस्थिर और हिंसक माहौल में ज्योति बसु ने जिस तरह धैर्यपूर्ण लंबी राजनीतिक पारी खेली, वह ज्यादातर भारतीयों के लिए रहस्य ही था। अपने देश में कम्युनिस्ट आंदोलन तीन तरह से फैला-एक तो इसमें कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य थे, जो अपनी वाम विचारधारा के कारण जाने जाते थे। ई.एम.एस नंबूदिरीपाद और सरोज मुखर्जी इस धारा से थे। दूसरी धारा मुख्यतः बंगाल में विकसित हुई थी, जिसमें क्रांतिकारी संगठनों को त्याग देने वालों ने वाम वैचारिकता अपना ली।
23 साल तक पश्चिम बंगाल में बतौर मुख्यमंत्री काम करने वाले बसु के बारे में कभी ये कहा जाता था कि वे भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे.
★ ज्योति बसु का प्रारंभिक जीवन ::::
बसु का जन्म पूर्वी बंगाल (यानी अब का बांग्लादेश) में 8 जुलाई 1914 को हुआ. ज्योति बसु कलकत्ता के एक उच्च मध्यम वर्ग बंगाली परिवार में ज्योति किरण बसु के रूप में पैदा हुए। उनके पिता का नाम निशिकांत बसु था । जो ढाका जिला, पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के बार्दी गांव में एक डॉक्टर थे, जबकि उनकी मां का नाम हेमलता बसु था । जो एक गृहिणी थी। बसु की स्कूली शिक्षा 1920 में धरमतला, कलकत्ता (अब कोलकाता) के लोरेटो स्कूल में शुरू हुई, जहां उनके पिता ने उनका नाम छोटा कर ज्योति बसु कर दिया।
★ बसु की पढ़ाई लिखाई :::::::::::::
उन्होंने कलकत्ता के कैथोलिक स्कूल से पढ़ाई की. बसु की स्कूली शिक्षा 1920 में धरमतला, कलकत्ता (अब कोलकाता) के लोरेटो स्कूल में शुरू हुई । 1925 में सेंट जेवियर स्कूल में जाने से पहले बसु ने स्नातक शिक्षा हिंदू कॉलेज में विशिष्ठ अंग्रेजी में पूरी की। 1935 में बसु कानून के उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए,
1950 में बसु ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और बैरिस्टर के रूप में मिडिल टेंपल से प्रात्रता हासिल की।
★ बसु का राजनीतिक जीवन :::::::::::::::::
लंदन मे पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आने के बाद राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने कदम रखा। यहां नामचीन वामपंथी दार्शनिक और लेखक रजनी पाम दत्त से प्रेरित हुए। इसी साल वे भारत लौट आए। 1930 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ली. जल्द ही वे पार्टी में अहम पदों पर पहुंचे और फिर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने. बसु की सरकार ने राज्य में कई महत्वपूर्ण काम किए. जब सीपीआई ने 1944 में इन्हें रेलवे कर्मचारियों के बीच काम करने के लिए कहा तो बसु ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में संलग्न हुए। बी.एन. रेलवे कर्मचारी संघ और बी.डी रेल रोड कर्मचारी संघ के विलय होने के बाद बसु संघ के महासचिव बने।
★ बसु की अंतिम इच्छा जो अधूरी ही रही :::::::::::::
ज्योति बसु हमेशा प्रधानमंत्री बनना चाहते थे.हालांकि बसु ने खुद दो बार ये ऑफर ठुकराया था. पर 1996 में तीसरी बार उन्हें प्रधानमंत्री बनने का ऑफर मिला. इस बार वो प्रधानमंत्री बनने को तैयार थे. उन्होंने कहा था कि अगर पार्टी अनुमति देगी तो वे PM बनेंगे. लेकिन उन्हें धक्का तब लगा जब पार्टी ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी. दरअसल केंद्र में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और मिली-जुली सरकार बननी थी. पर बसु की पार्टी में इसके लिए एकमत नहीं बन सका. बसु ने काफी कोशिश की उनकी पार्टी केंद्र सरकार का हिस्सा बन जाए, पर पार्टी ने उनकी एक नहीं सुनी. पार्टी के कई सदस्य इस बात पर तैयार नहीं थे कि कांग्रेस समर्थन वाली केंद्र सरकार का हिस्सा बना जाए. बाद में ज्योति बसु ने कई इंटरव्यू में नाराजगी भी जताई थी और कहा था कि पार्टी का ये फैसला राजनीतिक द्वंद का परिणाम था. बाद में ये भी कहा गया कि माकपा की केंद्रीय कमेटी के कई सदस्यों ने पहले ही तय किया था कि बसु को प्रधानमंत्री बनने से रोकना है. खबरें आती रहीं कि पार्टी के इस फैसले से बसु काफी दुखी रहा करते थे.
इससे पहले 1989 लोकसभा चुनाव के बाद भी बसु को प्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया गया था. ये ऑफर उन्हें चंद्रशेखर और अरूण नेहरू ने दिया था. दूसरा मौका 1990 में मिला जब केंद्र में वीपी सिंह सरकार गिर गई थी. राजीव गांधी की नजर में तब ज्योति बसु भी थे. पर बसु ने मना कर दिया था.
★ ऐतिहासिक मुख्यमंत्री :::::::::::::::
ज्योति बसु ने लगातार 23 साल तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया। ज्योति बसु की सरकार ने राज्य में कई उपलब्धियाँ दर्ज कीं जिनमें प्रमुख है नक्सलवादी आंदोलन से बंगाल में पैदा हुई अस्थिरता को राजनीतिक स्थिरता में बदलना। उनकी सरकार का एक और उल्लेखनीय काम है भूमि सुधार, जो दूसरे राज्यों के किसानों के लिए आज भी एक सपना है। ज्योति बसु की सरकार ने जमींदारों और सरकारी कब्ज़े वाली ज़मीनों का मालिक़ाना हक़ क़रीब 10 लाख भूमिहीन किसानों को दे दिया।
इस सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों की ग़रीबी दूर करने में भी काफ़ी हद तक सफलता पाई। सफलता के झंडे गाड़ने वाली बसु सरकार की कुछ कमियाँ भी रहीं। जैसे कि वह बार-बार हड़ताल करने वाली ट्रेड यूनियनों पर कोई लगाम नहीं लगा पाई, उद्योगों में जान नहीं फूंक पाई और विदेशी निवेश नहीं आकर्षित कर पाई। वहीं ज्योति बसु की यह सरकार कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की सरकारों की तरह तकनीकी रूप से दक्ष लोगों का उपयोग कर राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग भी नहीं खड़ा कर पाई
★ निधन :::::::::::::: : :::::
देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने 17 जनवरी, 2010 को कोलकाता के एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं।