कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो।

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता तुम मेरी ज़िन्दगी हो, ये सच है ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता वो चांदनी का बदन खुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है तुम अभी शहर में क्या नए आए हो रुक गए राह में हादसा देख कर वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में और जाम टूटेंगे इस शराब ख़ाने में मौसमों के आने में मौसमों के जाने में हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती कौन सांप रखता है उस के आशियाने में दूसरी कोई लड़की ज़िंदगी में आएगी कितनी देर लगती है उस को भूल जाने में

दुश्मनी जम कर करो  लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जायें  तो शर्मिंदा न हों।

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा, इतना मत चाहो उसे वो बे-वफ़ा हो जायेगा।

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो।

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए।