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स्वामी विवेकांनद के जीवनी के बारे में | स्वामी जी के अनमोल विचार

स्वामी विवेकांनद के जीवनी के बारे में | स्वामी जी के अनमोल विचार

Posted on January 12, 2020January 20, 2021 By admin No Comments on स्वामी विवेकांनद के जीवनी के बारे में | स्वामी जी के अनमोल विचार

स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। 1984 में भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित किया और 1985 से यह आयोजन भारत में हर साल मनाया जाता है। जैसा कि भारत सरकार ने उद्धृत किया था और महसूस किया था कि स्वामीजी के दर्शन और आदर्श जिसके लिए वह रहते थे और काम करते थे, भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं ।

12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्मे स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त जबकि माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था । इनका पूरा नाम नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त था जिसको बाद में इन्होंने बदलकर स्वामी विवेकानंद कर लिया था । 9 बहन भाइयो के बीच पले बढ़े विवेकानंद के पिता कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे। इनके दादा का नाम दुर्गाचरण दत्ता था और इन्हें संस्कृत और पारसी का विद्वान माना जाता था इन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में इन्होंने अपना घर परिवार छोडकर एक सन्यासी का जीवन स्वीकार कर लिया था। अच्छे माहौल में मिली अच्छी परवरिश ने उन्हें पूजा पाठी इंसान बनाया और वो घण्टो तक शिव शंकर, दुर्गा माँ की पूजा में लीन रहते थे इसके अलावा साधु संतों की बताई बातो से भी वो काफी प्रभावित थे ।

8 वर्ष की आयु से उनकी शिक्षा की शुरुआत हुई और 1871 में उनका दाखिला ईश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में कराया गया और 1877 तक वो उसी स्कूल में पढ़े और प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में प्रथम स्थान लाने वाले वो पहले छात्र बने । स्वामी विवेकानंद ने 1881 में ललित कला की परीक्षा अच्छे अंको से पास की और 1884 में उन्होंने कला स्नातक की डिग्री पूरी की। उनको दर्शन शास्त्र,धर्म,इतिहास,सामाजिक विज्ञान,कला और साहित्य को पढने में आनन्द आता था । इसके अलावा धार्मिक परिवार से होने की वजह से वो महाभारत,गीता,रामायण को भी बड़े चाव से पढ़ते थे ।

स्वामी विवेकानंद के गुरु हिंदु सन्यासी और 19वी शताब्दी के प्रसिद्घ संत रामकृष्ण के थे। जिन्होंने विवेकानंद को आध्यात्म का ज्ञान देने के साथ उन्हें हिन्दू धर्म की पहुँच समस्त संसार में करने के मिशन में लगाया और शायद गुरु द्वारा प्रदत्त बेहतर शिक्षा का ही नतीजा था कि स्वामी विवकेनन्द ने भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण दर्शन विदेशो में बखूबी पहुँचाया,विवेकानंद जी की वक्तव्य शैली इतनी बेहतरीन थी अमेरिका में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में अपने भाषण से उन्होंने सभी को अपना दीवाना बना लिया था दरअसल वहाँ हुए संबोधन में उन्होंने हैलो जेंटल मैन ना कह कर “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” कहकर सम्बोधन शुरू किया जिसके बाद पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से लगातार गूंजता रहा था ।

4 जुलाई 1902 को विवेकानंद कुछ जल्दी उठे और बेलूर मठ में पूजा अर्चना के लिए गए और इसके बाद उन्होंने लगभग तीन घण्टे योग भी किया। छात्रों को पढ़ाने के बाद उन्होंने अपने शिष्यों के साथ विभिन्न धार्मिक मुद्दों के अलावा रामकृष्ण मठ को वैदिक महाविद्यालय बनाने को लेकर बात की ।जिसके बाद वो कमरे में किसी को ना आने को कहकर अपने कमरे में चले गए,उनके शिष्यों के मुताबिक वो 7 बजे कमरे में गए थे और 9 बजे उन्हें मृत पाया गया । उनकी मौत के पीछे दिमाग मे रक्तवाहिनी (रक्त संचार केंद्र) में दरार आने के कारण हुई । उनके शिष्यों के मुताबिक उन्होंने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि वो 40 वर्ष से अधिक नही जिएंगे और हुआ भी यही 40 वर्ष की आयु में देश को आध्यात्म, वैदिक संस्कृति, ब्रह्मचार्य की शिक्षा देने के बाद वो महासमाधि में लीन हो गए ।

1. जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है.

2. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.

3. पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान. ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है.

4. पवित्रता, धैर्य और उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं.

5. उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तमु अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते.

6. ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है.

7. एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ.

8. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पे विश्वास नहीं कर सकते.

9.ध्यान और ज्ञान का प्रतीक हैं भगवान शिव, सीखें आगे बढ़ने के सबक

10. लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो.

 

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