किसी भी महिला के लिए मां बनना जीवन का सबसे खूबसूरत अनुभव होता है. इसके एहसास भर से न केवल वह महिला बल्कि उससे जुड़े बाकी सभी लोग भी रोमांचित हो उठते हैं. एक बच्चे के आ जाने से पूरे घर का माहौल हमेशा के लिए बदल जाता है. हालांकि गर्भवती होना और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देना संभवत: इस दुनिया की सबसे मुश्किल बात है ।गर्भवती महिलाएं, ऐसे समय में शारीरिक और मानसिक बदलाव से गुजर रही होती हैं, ऐसे में एक अंदरूनी डर हमेशा बना रहता है और यही डर उन्हें इन भ्रांतियों को मानने के लिए मजबूर करता है
गर्भवती होने के साथ ही गर्भवती महिला को सलाह और नुस्खे बताने वालों की भीड़ जुट जाती है, जिनमें से कुछ सलाह और नुस्खे वाकई काम के होते हैं।
Tips To Pregnant Women Take Care Of Themselves (गर्भवती महिला कैसे रखे अपना ख्याल )
थोड़ा-थोड़ा खाए :
आपको दिन में 1800-2000 कैलोरी की जरूरत होती है। लेकिन प्रेगनेंसी में आपको 300 कैलोरी ही ज्यादा चाहिए होती है, न कि दुगुनी कैलोरी। नहीं तो आपका वज़न बहुत बढ़ सकता है जिससे आपको जेस्टेशनल डायबिटीज जैसी बीमारियां हो सकती हैं। दिन में 6 बार थोड़ा-थोड़ा खाएं।
बिना सलाह के दवाएं मत खाना:
प्रेगनेंसी में अपने आप बिना किसी की सलाह लिए दवाएं खाना भारी पड़ सकता है। एंटासिड, पैरासिटामोल जैसी बिना प्रेस्क्रिप्शन के मिलने वाली दवाओं और हार्श ब्यूटी ट्रीटमेंट का असर गर्भ पर पड़ सकता है। इसलिए प्रेगनेंसी में सिर्फ डॉक्टर की सलाह दी हुई दवाएं ही खाएं
नींद न लेना:
आप अपने घर के काम और ऑफिस के काम में बैलेंस बनाने के लिए अगर नींद कम ले रही हैं तो ये आपकी प्रेगनेंसी पर भारी पड़ सकता है। इस अवस्था में आपके शरीर में कई सारे हार्मोनल बदलाव होते हैं। कम नींद लेने से आपको थकान महसूस हो सकती है। कोशिश करें कि एक घंटा पहले सोने जाएं और एक घंटा देरी से उठें। मेड रखें या परिवार वालों की मदद लें, और काम पूरे करें। अगर ऑफिस में हैं तो बॉस से बात करके थोड़ा आराम का वक्त लें।
सही उम्र में कर लें फैमिली प्लानिंग:
पहले लोगों की शादियां सही उम्र में हो जाया करती थीं लेकिन अब समय बदल चुका है. शादियां अधिक उम्र में होती हैं और उसके बाद पति-पत्नी फैमिली प्लान करने में भी कम से कम दो साल का वक्त लेते हैं. गर्भ धारण करने के लिए 22 से 28 की उम्र बेस्ट होती है. इसका प्रमुख कारण यह है कि इस उम्र में महिला शारीरिक और मानसिक दोनों तौर पर तैयार होती है.
ऑर्गज्म का ख्याल रखना:
गर्भवती होने के लिए ऑर्गज्म भी बहुत जरूरी कारक है. संबंधों के दौरान अगर महिला ऑर्गज्म को प्राप्त कर लेती है तो गर्भधारण की संभावना बहुत बढ़ जाती है. इसके अलावा अगर आप गर्भवती होना चाह रही हैं तो सबसे पहले अपनी पूरी जांच कराएं. खासतौर पर पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिस्ट को लेकर चेकअप कराएं.
अपने बेबी-बंप पर ध्यान न देना:
प्रेगनेंसी में महिलाएं अक्सर थकी हुई रहती हैं, इसलिए वो अपने पेट की तरफ ध्यान नहीं देती। सिर्फ तब ध्यान देती हैं जब गर्भस्थ शिशु कोई मूवमेंट करता है। जो कि गलत है। अपने पेट पर हाथ रखकर उसे दुलाकर करें और शिशु के बात करें। इस तरीके से आपके अजन्मे बच्चे और आपके बीच संबंध गहरा होगा।
पसंदीदा चीज़ें खाना छोड़ देना:
प्रेगनेंसी का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप बीमारों की तरह परहेज़ करें। थोड़ा बहुत अपनी पसंद का खाना चाहिए। हर पसंदीदा चीज़ से दूरी बनाने से स्ट्रेस हो सकता है जो आपके शिशु के लिए अच्छा नहीं है। पसंदीदा चीज़ें चाहे वो मीठा हो या चटपटा, उसे जरूर खाएं, लेकिन मात्रा का ध्यान रखकर।
ओव्यूलेशन की सही जानकारी:
यह पीरियड्स से जुड़ा होता है. इस दौरान संबंध बनाने से गर्भधारण करने की संभावना सबसे अधिक होती है. पीरियड्स के सात दिन बाद ओव्यूलेशन साइकिल शुरू होती है और पीरियड्स के सात दिन पहले तक रहती है. इस समय को फर्टाइल स्टेज भी कहा जाता है.
नॉर्मल डिलीवरी से बहुत अधिक डरना:
बहुत सी महिलाएं नार्मल डिलेवरी में होने वाली दर्द से बचने के लिए ऑपरेशन कराना उचित समझती हैं. कई बार हॉस्पिटल्स भी अपने फायदे के लिए यही सजेस्ट करते हैं. लेकिन एक बार लेबर पेन सहना ऑपरेशन कराने से कहीं अच्छा रहता है. ऑपरेशन कराने पर लोवर बैक में एक इंजेक्शन दिया जाता है जिसका दर्द सालों-साल बना रहता है. सी-सेक्शन कराने के बाद रिकवरी में बहुत टाइम लगता है और बेबी को फीड करने में भी दिक्कत हो सकती है.
इन्टरनेट पर कुछ पढ़कर घबड़ा जाना:
इन्टरनेट इनफार्मेशन का सबसे बड़ा सोर्स है पर वो सबसे प्रमाणिक सोर्स नहीं है. ज्यादातर चीजें सामान्य करके लिखी होती हैं और सही में हर एक महिला का केस अपने आप में अलग होता है. लेकिन कई बार महिलाएं health sites में कुछ उल्टा-सीधा पढ़कर तनाव मे हो जाती हैं, जोकि गलत है.
ज़रुरत से ज्यादा आराम:
कई महिलाएं प्रेगनेंसी में आरामतलबी हो जाती हैं और ज़रुरत से अधिक आराम करने लगती हैं. ऐसा करना फ़ीटस की ग्रोथ पर असर डाल सकता है और वजन सम्बन्धी समस्याएं का कारण हो सकता है.