जल प्रकृति की अनमोल धरोहर है। बिना पानी के जीवन संभव नहीं है। पीने के लिये शुद्ध जल हमारे लिये जरूरी है। क्योंकि स्वच्छ एवं सुरक्षित जल अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है। धरती के दो तिहाई हिस्से पर पानी भरा हुआ है। फिर भी पीने योग्य शुद्ध जल पृथ्वी पर उपलब्ध जल का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा ही है।
तेजी से बढ़ती आबादी, शहरीकरण का तेजी से होता विकास, औद्योगिकरण का विस्तार, वन क्षेत्रों मे लगातार होती कमी और नदियों , तालाबो और कुओं का तेजी से विलुप्त होना, भूमिगत जल का तेजी से होता दोहन आदि कारणों से आज देश के कई हिस्सों मे पानी की किल्लत और आये दिन समस्याओं से लोगों को दो चार होना पड़ता है। आलम ये है कि गाँव तो गाँव शहरों मे भी पानी की कमी हो रही है। शहरों मे जबकि पानी के लिए समुचित प्रबंध और उपाय किये जाते है।
गर्मियों मे ये समस्या और बड़ी हो जाती है।
तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के कारण उत्पन्न दबाव से गाँव बाज़ार मे , बाज़ार कस्बों मे , क़स्बे शहरों मे, शहर नगरों मे और नगर महानगरों मे बदल गए है। इस तरह जैसे जैसे शहरी विस्तार के कारण वर्षा का पानी नालियों नालों से बहकर व्यर्थ ही चला जाता है। आज समय है कि हम पानी की कीमत समझें। यदि जल व्यर्थ बहेगा तो आगे वाले समय में पानी की कमी एक महा संकट बन जाएगा।
ऐसा इसलिए कि शहरों मे रहने वालों के पक्के मकान, पक्की सड़कें आदि के निर्माण के बाद बहुत ही कम खुली जगह बच पाती है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2000 मे केवल दिल्ली मे सिर्फ़ मकानों कि छतों का क्षेत्रफल 138 वर्ग किलोमीटर था जो वर्षा का 6 से 8 करोड़ घन मीटर पानी प्राप्त करता था और सारा का सारा पानी नालियों नाली से होकर यमुना मे बह जाता था।
★ ज़मीनी स्तर से शुरू करना होगा जल संरक्षण :
गाँवों में पंचायतें, शहरों में नगरपालिका एवं नगरों में नगर एवं महानगर निगम बने हुए हैं। उनको स्थानीय सरकार का अपना दायित्व समझना चाहिए। सभी लोगों को जल शुद्ध एवं पर्याप्त मात्रा में मिले इसका प्रबन्ध उन्हें करना है। इस मद में सभी सरकारी विभाग एवं स्थानीय स्वशासन की इकाइयाँ करोड़ों रुपयों का खर्चा प्रतिवर्ष दिखाती हैं तो जनता को उसका परिणाम देखने परखने का हक है। ये संस्थाएँ लोगों की भागीदारी से जल भण्डारण के लिये उपयुक्त व्यवस्था जैसे- कुएँ, तालाब, एनीकट, बाँध का निर्माण कराएँ एवं उनके रख-रखाव का ध्यान रखे। नदियों में गंदे नालों का पानी न जाने दें उन्हें शुद्ध रखने के सभी उपचार करें। उन्हें गंदा होने से बचाएँ, व्यर्थ में पानी खराब होने एवं अपव्यय करने के कारकों को दूर करें। पेड़ लगाने और उनकी सुरक्षा करने से हरियाली बढ़ेगी जिससे भूमि में पानी को रोकने में मदद मिलेगी। जल प्रकृति की देन है हमें इसका संग्रहण भी करना है, संयोजन भी करना है। इस पर हर व्यक्ति का बराबर का अधिकार है। चाहे वह किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र या पार्टी का हो।
★ कृषि में पानी की बचत आज की जरुरत :
हम कहते हैं कि कृषि नहीं होगी तो हम खाएंगे क्या ? परंतु इसमें भी पानी का थोड़ा ध्यान रखेंगे तो पानी की बचत कर सकते हैं।
- प्रत्येक फसल के हिसाब से पानी निर्धारित करना चाहिए तदनुसार सिंचाई की योजना बनाई जानी चाहिए सिंचाई कार्यों के लिए।
- संप्रिकलर और ड्रिप सिंचाई जैसे पानी की कम खपत वाले प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना चाहिए
- विभिन्न फसलों के लिए पानी की कम खपत वाले तथा अधिक पैदावार वाली बीजों के लिए अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- जहां तक संभव हो ऐसे खाद्य उत्पादों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें कम पानी लगता है। खाद्य पर्दार्थो की अनावश्यक बर्वादी में कमी लाना भी आवश्यक है, इसलिए इसके उत्पादन मेंबढ़ा हुआ पानी का प्रयोग व्यर्थ ही चला जाता है इसलिए इन खाद पदार्थों में हुए पानी की बर्बादी को रोककर आज इसकी जरूरत को पूरा किया जा सकता है।
पानी की बचत आज की जरूरत :
- सबसे पहले तो हमें कसम खानी होगी कि पानी की बचत करेंगे और इसकी बर्बादी को रोकेंगे
- अगर पूरी पृथ्वी में सभी लोग थोड़ा थोड़ा पानी बचाएंगे तो काफी पानी बच सकता है।
- बारिश के पानी का संरक्षण करकेे उसका प्रयोग दूसरे दैनिक कार्य में कर सकते हैं जैसे कपड़े धोन, बगीचे में पानी देना, नहाने का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
- अगर हमें नहाते समय शावर की जगह नहाने के लिए बाल्टी का उपयोग करें तो हम 100 से 200 लीटर पानी प्रतिदिन बचा सकते हैं।
- नल का इस्तेमाल करके उसे टाइट से बंद करें पानी गिरते रहने से काफी पानी बर्बाद हो जाता है।
- ज्यादातर पेड़-पौधे बारिश के महीने में लगाएं ताकि पौधों को प्राकृतिक रूप से पानी मिल सके और पेड़ पौधे को काटने से रोके।
- सामाजिक कर्तव्य भी हमें समझना चाहिए ताकि पानी की बर्बादी को रोक सके जहां भी हमें नल चालू दिखे चाहे वो रेलवे स्टेशन,बस स्टॉप या कोई भी सार्वजनिक स्थल हो चलते हुए नल और व्यर्थ में हो रहे पानी के नुकसान को बचाएं क्योंकि अगर हमने इस समस्या का समाधान करना आज की जरूरत नहीं समझी तो कल हमें इसका भारी नुकसान भुगतना पड़ेगा।
वनों का हो रहा है भारी अभाव :
वन क्षेत्र मे हुई भारी कमी के कारण आज हमारे देश के केवल 21.8 % भूमि पर ही वन रह गए है। जबकि उपग्रह से लिये गए चित्रों से पता चलता है कि भारत मे 11% भूमि पे ही जंगल है। जब देश मे जनसंख्या कम थी तो पानी के बारे मे ज्यादा चिंता करने की कोई विशेष बात नही थी। लगभग देश की 50 % भूमि पे पानी की उपलब्धता थी। ऐसा इसलिए था कि वर्षा के पानी का अधिकांश अंश रिस कर अपने आप भूमि के भीतर चला जाता था। जहाँ पर वन अधिक होते है, वहाँ पर वृक्षों से गिरी पत्तियों , छाल , छोटी- छोटी टहनियां आदि सड़ कर मिट्टी की पैदावार को बढ़ाती थी।
लेकिन जैसे जैसे समय बदला और जनसंख्या बढ़ी लोगों को रहने के लिए भूमि की जरूरत हुई , मकान बनते गए और जल का संरक्षण कम होता चला गया।
अगर हम निम्न उपायों को अपनाए तो जल संरक्षण को और बेहतर तरीके से कर पाएंगे :—
समझदार बनें, जिम्मेदारी निबाहें
अगर हम समझदारी से काम ले तो पानी को यूज़ करने वाला हर व्यक्ति को पानी की शुद्धता और बचत पे काम करना चाहिए। पुराने टाइम मे पानी के बचत पे बहुत ध्यान दिया जाता था। जब देश मे गाँव प्रचलन मे थे तो पोखरा बनवाया जाता था। जो लोग ज्यादा अमीर होते थे वो अपने धन का उपयोग बड़े और पक्के जलाशय बनवाने मे करते थे जिससे बारिश मे बहने वाला बेकार का पानी उसमें जाके इकट्ठा होता था और गाँव मे पानी की कोई कमी नही होती थी। इस कारण कुओं, बावड़ियों आदि में हर मौसम में पर्याप्त जल मिलता रहता था।
जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण तथा औधोगिकीकरण के कारण प्रति व्यक्ति के लिये उपलब्ध पेयजल की मात्रा लगातार कम हो रही है जिससे उपलब्ध जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जहाँ एक ओर पानी की मांग लगातार बढ़ रही है वहीँ दूसरी ओर प्रदूषण और मिलावट के कारण उपयोग किये जाने वाले जल संसाधनों की गुणवत्ता तेजी से घट रही है। साथ ही भूमिगत जल का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है ऐसी स्तिथि में पानी की कमी की पूर्ति करने के लिये आज जल संरक्षण की नितान्त आवश्यकता है।
उपचार कठिन नहीं : यदि हम खुद से ही अपनी जिम्मेदारी तय करें कि हमको पानी बचाना है तो हमको इसके उपाय भी दिख जाएंगे। हम थोड़ी सी मेहनत करके ज़्यादा लाभ पा सकते है।
- पुराने तालाबों पोखरों का दुबारा निर्माण किया जाए। गाँव से लेकर शहर तक ये काम प्रशासन की मदद से होना चाहिए। ये हमेशा ध्यान रहे है कि हम किसी तालाब को पाट कर तो मकान नही बना रहे, हर साल गर्मियों मे तालाबों कि मिट्टी को ख़ुदाई कराकर खेतों मे डलवाने से खेत की उत्पादन शक्ति भी बढ़ेगी और बरसात मे पानी भी ज़्यादा रुकेगा।
- ढलान वाली जगहों पे जहाँ पानी रुकता हो वहाँ छोटे छोटे पोखरी बनवाना चाहिए। अगर हमारे घरों की नालियों कच्ची है तो उनमें छोटे छोटे पत्थरों को रखिये और उनमें छोटे छोटे पौधें लगवा के रखे जिससे भूजल स्तर बना रहेगा क्योंकि नाली पे जमा पानी धरती के अंदर जाता है और भूजल बना रहता है।
- गाँवो मे ऐसे किसान जिनके पास ज़्यादा ज़मीन है व्व अपने खेतों के कुछ हिस्से मे तालाब बनवाये जिससे उनको सिंचाई की भी समस्या खत्म होगी और भूजल स्तर बना रहेगा।
- जहाँ तालाब नही है उन सरकारी ज़मीन पे नए तालाब सरकारी मनरेगा के योजना के अंतर्गत बनवाना चाहिए, जिससे तालाब भी बन जायेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा। विधायक और सांसद निधि को भी इस उद्देश्य में खर्च किया जा सकता है। बड़े औद्योगिक संस्थानों के पास जनहित (वैलफेअर) कार्यों के लिए काफी बजट होता है।
- नल को खुला ना छोड़े – आप जब भी ब्रश करें, दाढ़ी बनायें, सिंक में बर्तन धोएं, तो जरूरत ना होने पर नल बंद रखे, बेकार का पानी ना बहायें. ऐसा करने से हम 6 लीटर हर एक min में पानी बचा सकते है. नहाते समय भी बाल्टी से पानी को व्यर्थ ना बहायें.
- नहाने के लिए शावर की जगह बाल्टी का उपयोग करें. अगर शावर उपयोग भी करें तो छोटे वाले लगायें, जिससे पानी की कम खपत हो. शावर का उपयोग ना करके हम 40-45 लीटर पानी हर 1 min में बचा सकते है.
- जहाँ कहीं भी नल लीक करे, उसे तुरंत ठीक करवाएं. नहीं तो उसके नीचे बाल्टी या कटोरा रखें और फिर उस पानी का प्रयोग करें.
- लो पॉवर वाली वाशिंग मशीन उपयोग करें, इससे पानी की बचत होती है एवं बिजली भी कम लगती है. वाशिंग मशीन में रोज थोड़े थोड़े कपड़े धोने की जगह इक्कठे करके धोएं.
- पोधों में पानी पाइप की जगह वाटर कैन से डालें, इससे बहुत कम पानी उपयोग होता है. पाइप से 1 घंटे में 1000 लीटर पानी तक पानी उपयोग हो जाता है, जो पूरी तरह से पानी का नुकसान है. हो सके तो कपड़े धोने वाले पानी को पोधों पर डालें.
- घर में पानी का मीटर लगवाएं. आप जितना पानी उपयोग करेंगे, उसके हिसाब से उसका बिल आएगा. बिल देते समय आपको समझ आएगा कि आपने कितना बर्बाद किया है और फिर आगे से ध्यान रखेंगे.
- गीजर से गर्म पानी निकालते समय उसमें पहले ठंडा पानी आता है जिसे हम फेंक देते है. ऐसा नहीं करें, ठन्डे पानी को अलग बाल्टी में भरें, फिर गर्म पानी को दूसरी में. इस पानी को आप दूसरी जगह उपयोग कर सकते है.
- फ्लश में भी बहुत अधिक पानी उपयोग होता है, इसलिए ऐसा फ्लश लगवाएं जिसमें पानी का फ़ोर्स कम हो.
- नालियां हमेशा साफ रखें, क्यूंकि जब ये चोक हो जाती है तो साफ करने के लिए बहुत पानी को बहाया जाता है. इसलिए पहले से ही साफ सफाई रखें.
- पेड़ पोधे लगायें जिससे अच्छी बारिश हो और नदी नाले भर जाएँ.
- दाढ़ी बनाते समय, ब्रश करते समय, सिंक में बर्तन धोते समय, नल तभी खोलें जब सचमुच पानी की ज़रूरत हो
- गाड़ी धोते समय पाइप की बजाय बाल्टी व मग का प्रयोग करें, इससे काफी पानी बचता है।
- वाशिंग मशीन में रोज-रोज थोड़े-थोड़े कपड़े धोने की बजाय कपडे इकट्ठे होने पर ही धोएं
- बर्तन धोते समय भी नल को लगातार खोले रहने की बजाये अगर बाल्टी में पानी भर कर काम किया जाए तो काफी पानी बच सकता है।
घर के बाहर जल संरक्षण :
सार्वजनिक पार्क, गली, मौहल्ले, अस्पताल, स्कूलों आदि में जहाँ कहीं भी नल की टोंटियाँ खराब हों या पाइप से पानी लीक हो रहा हो तो तुरन्त जलदाय ऑफिस में या सम्बन्धित व्यक्ति को सूचना दें, इसमें हजारों लीटर पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है।
- बाग़ बगीचों एवं घर के आस पास पौधों में पाइप से पानी देने के बजाय वाटर कैन द्वारा पानी देने से काफी पानी की बचत हो सकती है
- बाग़ बगीचों में दिन की बजाय रात में पानी देना चाहिये। इससे पानी का वाष्पीकरण नहीं हो पाता। कम पानी से ही सिंचाई हो जाती है
- सिंचाई क्षेत्र हेतु कृषि के लिये कम लागत की आधुनिक तकनीकों को अपनाना जल सरंक्षण हतु उपयोगी है