आज से कुछ साल पहले जब हम चुनाव मे वोट डालने जाते थे तो यदि हमको कोई उम्मीदवार पसंद नही आता था तो हम या तो वोट ही नही देते थे या मज़बूरी मे नापसन्द उम्मीदवार को वोट दे देते थे। पर अब ऐसा नही है अगर हमको कोई उम्मीदवार या कोई दल पसंद नही है तो हम ” NOTA ” का प्रयोग कर सकते है। नोटा उम्मीदवारों को खारिज करने का एक विकल्प देता है.
★ कहाँ कहाँ NOTA लागू है ★
भारत, ग्रीस, युक्रेन, स्पेन, कोलंबिया और रूस समेत कई देशों में नोटा का विकल्प लागू है.
★ ” नोटा ” क्या होता है ★
निर्वाचन आयोग ने वोटिंग प्रणाली मे ऐसी व्यवस्था बनाई है जिससे यह दर्ज हो सके कि कितने फीसदी लोगों ने किसी को भी वोट देना उचित नहीं समझा है. यानी अब चुनावों में आपके पास एक और विकल्प होता है कि आप इनमें से कोई नहीं का भी बटन दबा सकते हैं. यानी आपको इनमें से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है. ईवीम मशीन में ” NONE OF THE ABOVE ” यानी NOTA का गुलाबी बटन होता है.
★ नोटा अब उम्मीदवार माना जायेगा ★
2018 से पहले नोटा को अवैध मत माना जाता था और हर जीत में कोई योगदान नहीं दे पाता था; लेकिन 2018 में नोटा को भारत में पहली बार उम्मीदवारों के समकक्ष दर्जा मिला.
हरियाणा में दिसंबर 2018 में पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए हरियाणा चुनाव आयोग ने निर्णय लिया था कि नोटा के विजयी रहने की स्थिति में सभी प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो जाएंगे तथा चुनाव पुनः कराया जाएगा और जो प्रत्याशी नोटा से कम से कम वोट पायेगा वह दुबारा इस चुनाव में खड़ा नहीं होगा.
यदि दुबारा चुनाव होने पर भी नोटा को सबसे अधिक मत मिलते हैं तो फिर द्वितीय स्थान पर रहे प्रत्याशी को विजयी माना जायेगा। लेकिन यदि नोटा और उम्मीदवार को बराबर मत मिलते हैं तो ऐसी स्थिति में उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जायेगा.
★ कब हुआ NOTA लागू ★
NOTA का उपयोग पहली बार भारत में 2009 में किया गया था। स्थानीय चुनावों में मतदाताओं को NOTA का विकल्प देने वाला छत्तीसगढ़ भारत का पहला राज्य था। NOTA बटन ने 2013 के विधानसभा चुनावों में चार राज्यों – छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में अपनी शुरुआत की। 2014 से नोटा पूरे देश मे लागू हुआ। 2018 में नोटा को भारत में पहली बार उम्मीदवारों के समकक्ष दर्जा मिला।
बीते चुनावों मे जब चुनाव में EVM मशीनों का उपयोग नही होता था बैलेट पेपर का उपयोग होता था. तब भी मतदाताओं के पास बैलेट पेपर को खाली छोड़कर अपना विरोध दर्ज कराने का अधिकार होता था. इसका मतलब यह था कि मतदाताओं को चुनाव लड़ने वाला कोई भी कैंडिडेट पसंद नहीं है।
★ नोटा कितना असरदार होता है ★
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई.कुरैशी ने कहा था,’अगर 100 में से 99 वोट भी नोटा को पड़े हैं और किसी कैंडिडेट को एक वोट मिला तो उस कैंडिडेट को विजयी माना जाएगा. बाकी वोटों को अवैध करार दे दिया जाएगा’.
एक और उदाहरण जानते हैं; यदि किसी विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाती है तो ऐसे में भी जिस कैंडिडेट को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं उसे विजयी घोषित किया जाता है.
अतः चुनाव आयोग के द्वारा शुरू किया गया नोटा का अधिकार और उसे एक उम्मीदवार के समान महत्व देना सच्चे लोकतंत्र की दिशा में एक बहुत ही सराहनीय कदम है. इस कदम से राजनीतिक दलों को सीख मिलेगी कि लोगों के हितों की अनदेखी करना उन्हें कितना भारी पड़ सकता है.