” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता. ” अर्थात जहाँ पे नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते है। भारतीय समाज में यह कहावत सदियों से चल रही है लेकिन फिर भी महिलाओं के अधिकार और उनके साथ समय समय पर भेदभाव की समस्या देखने को मिल जाती है। उन्हें घर-परिवार, समाज की बंदिशों से लेकर कामकाज की जगह पर लैंगिक भेदभाव सहित कई समस्याओं से गुजरना होता है ।
वैसे तो महिलाओं के अधिकार उनके साथ हो रहे भेदभाव को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए नही गए। लेकिन खुशी की बात ये है कि पहले के मुकाबले आज स्थिति कुछ सुधरी है. जागरूकता बढ़ने, वैश्विक मंचों की सक्रियता और सोशल मीडिया के जरिए उठाई जा रही आवाजों, कानून में सकारात्मक बदलावों और महिला-पुरुष में फर्क न करने वाले कानूनों को लागू किए जाने से स्थिति सुधरी है.
ऐसा ही एक अहम और लंबे समय से मुद्दा है जो महिलाओं के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। एक लंबे समय से ये बहस जारी है कि क्या महिलाओं को उनके पैतृक संपत्ति पर अधिकार होना चाहिए ?
भारत में विभिन्न कारणों से लंबे समय से महिलाओं को पैतृक संपत्ति पर अधिकार से वंचित रखा गया है.
★ पैतृक संपत्ति का मतलब :—–
सामान्यत: किसी भी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति, पैतृक संपत्ति कहलाती है. बच्चा जन्म के साथ ही पिता की पैतृक संपत्ति का अधिकारी हो जाता है. संपत्ति दो तरह की होती है. एक वो जो ख़ुद से अर्जित की गई हो और दूसरी जो विरासत में मिली हो. अपनी कमाई से खड़ी गई संपत्ति स्वर्जित कही जाती है, जबकि विरासत में मिली प्रॉपर्टी पैतृक संपत्ति कहलाती है.
★ पैतृक संपत्ति में किसका-किसका हिस्सा होता है :——
किसी व्यक्ति की पैतृक संपत्ति में उनके सभी बच्चों और पत्नी का बराबर का अधिकार होता है.
मसलन, अगर किसी परिवार में एक शख़्स के तीन बच्चे हैं, तो पैतृक संपत्ति का बंटवारा पहले तीनों बच्चों में होगा. फिर तीसरी पीढ़ी के बच्चे अपने पिता के हिस्से में अपना हक़ ले सकेंगे। तीनों बच्चों को पैतृक संपत्ति का एक-एक तिहाई मिलेगा और उनके बच्चों और पत्नी को बराबर-बराबर हिस्सा मिलेगा.
हालांकि मुस्लिम समुदाय में ऐसा नहीं है. इस समुदाय में पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार तब तक दूसरे को नहीं मिलता जब तक अंतिम पीढ़ी का शख़्स जीवित हो.
★ पैतृक संपत्ति को बेचने के क्या नियम हैं :—
पैतृक संपत्ति को बेचने को लेकर नियम काफ़ी कठोर हैं. क्योंकि पैतृक संपत्ति में बहुत से लोगों की हिस्सेदारी होती है इसलिए अगर बंटवारा न हुआ हो तो कोई भी शख़्स इसे अपनी मर्ज़ी से नहीं बेच सकता. पैतृक संपत्ति बेचने के लिए सभी हिस्सेदारों की सहमति लेना ज़रूरी हो जाता है. किसी एक की भी सहमति के बिना पैतृक संपत्ति को बेचा नहीं जा सकता है. लेकिन अगर सभी हिस्सेदार संपत्ति बेचने के लिए राज़ी हैं तो पैतृक संपत्ति बेची जा सकती है.
★ किन कारण से अधिकार से वंचित होती है महिलाएं :——–
● असमान कानून :–
उत्तराधिकार कानून में एकरूपता नहीं है. कई धार्मिक समुदायों पर उनके अलग कानून लागू होते हैं और कई आदिवासी समुदाय अपने परंपरागत नियमों के हिसाब से चल रहे हैं. भारत में उत्तराधिकार का बुनियादी ढांचा धर्म के आधार पर अलग-अलग दिखता है, न कि संपत्ति के आधार पर. हिंदू परिवार और दूसरे धर्म के लोगों के अपने उत्तराधिकार कानून हैं, वहीं बाकी समूहों में उत्तराधिकार के अधिकार इंडियन सक्सेशन एक्ट 1925 से तय होते हैं.
● साक्षरता की कमी :—-
महिलाओं में जागरूकता और साक्षरता की कमी है. उन्हें अपने अधिकारों की पूरी जानकारी नहीं है और वे अदालतों में जाने से भी हिचकती हैं.
● पितृ सत्तात्मक परम्परा :—-
एक बड़ा कारण यह है कि पितृ सत्तात्मक परंपराओं के कारण महिलाओं में भय का माहौल बनाया हुआ है. इसके कारण वे अपने उत्तराधिकार के अधिकारों के लिए लड़ना नहीं चाहती.
● वसीयत के मालिक करते है भेदभाव :-
सेल्फ एक्वायर्ड प्रॉपर्टी के मामले में हिंदू पिता के पास यह अधिकार होता है कि वह अपनी मर्जी से इसे किसी को भी देने की वसीयत कर सकता है. इसमें वह महिला से भेदभाव कर सकता है और इसके लिए कोई दंड नहीं दिया जा सकता है. अगर किसी पुरुष ने वसीयत न बनाई हो और उसका निधन हो जाए तो उसकी प्रॉपर्टी उसके वारिसों में चार श्रेणियों के हिसाब से बांटी जाती है.
● महिलाएं छोड़ देती हैं दावा :-
देश के कई उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में अधिकारों को स्वेच्छा से छोड़ने के रिवाज के कारण महिलाएं पैतृक संपत्ति पर अपना दावा छोड़ देती हैं. इसे इस आधार पर उचित ठहराया जाता है कि उनके पिता विवाह में दहेज देते हैं, लिहाजा बेटों को संपत्ति मिलनी चाहिए. हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 बनने तक कानून साफ तौर पर महिलाओं को उनका हक़ देने के खिलाफ था.
● लड़की होती है पराया धन :—-
साल 1970-1990 के बीच महिलाओं को उत्तराधिकार से जुड़े अधिकार दिए जाने से बच्चियों की भ्रूण हत्या बढ़ी और बच्चियों की मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई. इकनॉमिक सर्वे 2017-18 में भी यह बात कही गई. कुछ लोग इसे इस तरह देखते हैं कि लड़कियों को मिलने वाली पैतृक संपत्ति उनकी ससुराल के लोगों के हाथ में चली जाएगी. बेटों को पैतृक संपत्ति देने में यह सोच भी काम करती है कि वे उस जमीन के जरिए संपत्ति बढ़ाएंगे और वृद्धावस्था में माता-पिता की देखभाल करेंगे.
★ अब होने लगा है बदलाव :—-
● साल 2005 से आया है बदलाव :—
ऑनलाइन वसीयत बनाने वाली दिल से विल. कॉम के संस्थापक राज लखोटिया ने कहा, “साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में बदलाव होने के बाद मामला संतुलित हुआ. इस बदलाव से पिता की पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का अधिकार सुनिश्चित किया गया.”
★ क्या है क़ानूनी अधिकार :—-
साल 2005 में संशोधन होने के पहले हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत प्रॉपर्टी में बेटे और बेटियों के अधिकार अलग-अलग हुआ करते थे। इसमें बेटों को पिता की संपत्ति पर पूरा हक दिया जाता था, जबकि बेटियों का सिर्फ शादी होने तक ही इस पर अधिकार रहता था। विवाह के बाद बेटी को पति के परिवार का हिस्सा माना जाता था। हिंदू कानून के मुताबिक हिंदू गैर विभाजित परिवार (एचयूएफ), जिसे जॉइंट फैमिली भी कहा जाता है, सभी लोग एक ही पूर्वज के वंशज होते हैं। एचयूएफ हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध को मानने वाले लोग बना सकते हैं।
★ हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में बेटियों के ये हैं अधिकार :—–
पहले बेटियों की शादी होने के बाद उनका पिता की संपत्ति में कोई हक नहीं रहता था। कई लोगों को यह महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को कुचलने वाला लगा। लेकिन 9 सितंबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005, जो हिंदुओं के बीच संपत्ति का बंटवारा करता है, में संशोधन कर दिया गया। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुताबिक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वह पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी। इतना ही नहीं उसे पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है। इस संशोधन के तहत बेटियों को वही अधिकार दिए गए, जो पहले बेटों तक सीमित थे। हालांकि बेटियों को इस संशोधन का लाभ तभी मिलेगा, जब उनके पिता का निधन 9 सितंबर 2005 के बाद हुआ हो। इसके अलावा बेटी सहभागीदार तभी बन सकती है, जब पिता और बेटी दोनों 9 सितंबर 2005 को जीवित हों।
सहदायिक को भी समान अधिकार: सहदायिक में सबसे बुजुर्ग सदस्य और परिवार की तीन पीढ़ियां आती हैं। पहले इसमें उदाहरण के तौर पर बेटा, पिता, दादा और परदादा आते थे। लेकिन अब परिवार की महिला भी सहदायिक हो सकती है।
-सहदायिकी के तहत, सहदायिक का जन्म से सामंती संपत्ति पर अधिकार होता है। सहदायिक का परिवार के सदस्यों के जन्म और मृत्यु के आधार पर सहदायिकी में दिलचस्पी और हिस्सा ऊपर-नीचे होता रहता है।
-पैतृक और खुद से कमाई हुई प्रॉपर्टी सहदायिक संपत्ति हो सकती है। पैतृक संपत्ति पर सभी लोगों का हिस्सा होता है। जबकि खुद से कमाई हुई संपत्ति में शख्स को यह अधिकार होता है कि वह वसीयत के जरिए प्रॉपर्टी को मैनेज कर सकता है।
-सहदायिकी का सदस्य किसी थर्ड पार्टी को अपना हिस्सा बेच सकता है। हालांकि इस तरह की बिक्री सहदायिकी के अन्य सदस्यों के अग्रक अधिकारों का विषय है। अन्य सदस्यों को यह अधिकार है कि वे संपत्ति में किसी बाहरी शख्स के प्रवेश को मना कर सकते हैं।
-एक सहदायिक (कोई भी सदस्य नहीं) सामंती संपत्ति के बंटवारे के लिए केस फाइल कर सकता है। इसलिए बतौर सहदायिक एक बेटी अब पिता की संपत्ति में बंटवारे की मांग कर सकती है।