महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर जिले में ‘खिदरपुर’ एक जगह का नाम है । खिद्रपुर महाराष्ट्र-कर्नाटक क्षेत्र की सीमा है। कृष्णा और पंचगंगा नदियों का संगम यहाँ होता है। यहाँ पर विराजमान है ऐतिहासिक गुफाएं और महादेव का मंदिर। जो ‘श्री कोपेश्वर’ महादेव के नाम से जाना जाता है। ‘कोपेश्वर’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। ‘कोप’ + ‘ईश्वर’ कोप का मतलब होता है क्रोध और ‘ईश्वर’ का मतलब होता है भगवान। अर्थात जो क्रोध के भगवान है यानी कि महादेव
कब और किसने बनवाया मंदिर : यह मंदिर शिखर राजाओं विक्रमादित्य और भोज -1 के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। इस स्थान पे शिव और विष्णु दोनों देवताओं को पूजने वाले रहते है
किस शैली मे बना है मंदिर : खिद्रपुर का कोपेश्वर मंदिर एक अद्वितीय हेमाडपंथी शैली की मूर्ति है। श्रेणी हेमाडपंथ यादव के शासनकाल के 7 से 8 के बीच यादव के गौरवशाली समय का मुख्य आधार है। वह एक विद्वान वास्तुकार थे। हेमेडिस्ट शैली के मंदिर जंगल में या पठार पर कहीं भी पाए जा सकते हैं। वास्तु विद्याधर ने नदी के किनारे दो पत्थरों के बीच एक आधार के रूप में एक कृत्रिम पत्थर और लंगर का उपयोग करके मंदिर के निर्माण की कला का अभ्यास किया। खिद्रपुर का कोपेश्वर मंदिर हेमाडपंथी शैली की एक अनूठी शैली है
मंदिर स्थापत्य डिजाइन का बेहतरीन नमूना है। इसे केंद्रीय स्वर्ग के situs judi online24jam terpercaya लिए यज्ञम मंडप के रूप में भी जाना जाता है। एक बड़ी, अखंड चट्टान पर, एक गोल चंदवा अड़तालीस स्तंभों के आधार पर खड़ा है। यज्ञ की गोलाकार छत के नीचे नौ ग्रहों की नौ कलाकृतियाँ लुभावनी हैं। यह प्रत्येक स्तंभ में नक्काशी को देखने के लिए लगता है। इस नक्काशीदार कार्य में एक ही सांचे से खींची गई एकरूपता, लालित्य है। स्तंभों पर प्रतिबिंब की पारदर्शिता से पत्थर की चमक और कोमलता चकित होती है। इस स्वर्ग की खुली छत को जलाए गए प्रसाद के धुएं के लिए रखा गया है। और छिद्रों के कारण, शहर का नाम छिद्रपुर था … यह खिद्रपुर बन गया
क्यों पड़ा नाम ‘कोपेश्वर’: इस मंदिर का नाम ‘कोपेश्वर’ क्यों पड़ा ,इसके पीछे बहुत ही रोचक कहानी है। राजा दक्ष जो कि माता सती के पिता थे,और उनकी बेटी सती ने भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और उनसे विवाह करने की इच्छुक थी। सती के मन की बात जानकर राजा दक्ष राजी नही हुए। उन्हें अपनी बेटी का विवाह किसी राज्य के राजा से करना था जिससे उनकी बेटी महलो की रानी बनें, न कि किसी ऐसे व्यक्ति से जो ख़ुद जंगलों और पहाड़ों पे रहता हो। लेकिन अपनी बेटी के जिद के आगे राजा को हारना पड़ा और भगवान शिव से उनका विवाह कर दिया। विवाह होने के बावजूद भी राजा अपनी हार को अपना slot gacor अपमान समझ रहा था। राजा ने ये तय किया कि वो एक बहुत बडा यज्ञ का आयोजन करेगा, जिसमें वो भगवान शिव को नही बुलाएगा
इसीलिए राजा दक्ष ने भगवान शिव को एक यज्ञ आयोजन मे न बुला कर उनका अपमान किया , चूंकि सती शिवलोक से अपने पिता के घर यज्ञ देखने बिना बुलाये ही चली आयी थी। राजा दक्ष ने सती के पति भगवान शिव को अपमानित किया, शिव का ये अपमान माता सती को बर्दाश्त नही हुआ और सती क्रोध मे आकर यज्ञ कुण्ड मे कूद कर अपनी जान दे दी। जिससे महादेव को भयंकर क्रोध आया और उन्होंने तांडव करना शुरू किया। तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए महादेव को इस स्थान पर लाया गया था
इस मंदिर मे नही है शिव का वाहन नंदी :
शिव का मंदिर हो और भगवान नंदी वहाँ न हो ऐसा कैसे हो सकता है ,लेकिन ऐसा इस मंदिर मे है । इस मंदिर मे नंदी नही है ऐसा इसलिए नही है कि इनको बनाने मे कोई भूल हुई हो। इनके यहाँ न होने का एक कारण भी है। जिस समय की यह घटना है, नंदी सती के साथ उनके पिता दक्ष के निवास स्थान गए थे। इसीलिए वे यहाँ उपस्थित नहीं थे। ऐसी मान्यता है कि दक्ष का निवास स्थान हरिद्वार के कनखल में था, किन्तु महाराष्ट्र के निवासियों slot terbaru का मानना है कि वह कृष्णा नदी से कुछ की.मी. दूर यदुर गाँव में था। इस गाँव के वीरभद्र मंदिर के भीतर स्थित नंदी इस कोपेश्वर मंदिर की ओर देखते हुए प्रतीत होते हैं
मंदिर मे है दो शिवलिंग : मंदिर में दो लिंग हैं। एक लिंग भगवान् शिव का तथा दूसरा लिंग उनका क्रोध शांत करते विष्णु का रूप है
कैसा है मंदिर : हालांकि ये मंदिर खंडहर हो गया है लेकिन मंदिर मे आज भी हाथी, खंभे और रामायण, महाभारत की घटनाएँ, बारह राशियाँ और प्रकृति की कला, यहाँ अभी भी बनी हुई है। प्रवेश द्वार पर एक गोलाकार खुली छत है और इसके नीचे जो खंभे है उनपे देवताओं की मूर्तियाँ हैं। जिस हॉल मे शिवलिंग है वहाँ कॉफी अंधेरा है, और शिवलिंग उतना ही चमकीला है