वीरो को जन्म देने वाली राजस्थान की धरती यूं तो अपने आंचल में अनेक गौरव गाथाओं को समेटे हुए है, लेकिन आस्था के प्रमुख केन्द्र खाटू की बात अपने आप में निराली है। शेखावाटी के सीकर जिले में स्थित है परमधाम खाटू। यहां विराजित हैं भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार खाटू श्यामजी। श्याम बाबा की महिमा का बखान करने वाले भक्त राजस्थान या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने में मौजूद हैं।
कितना पुराना है मंदिर : खाटू का श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, लेकिन वर्तमान मंदिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।
श्याम बाग़ और श्याम कुण्ड है देखने वाली जगहें : श्याम भक्तों के लिए खाटू धाम में श्याम बाग और श्याम कुंड प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। श्याम बाग में प्राकृतिक वातावरण की अनुभूति होती है। यहां परम भक्त आलूसिंह की समाधि भी बनाई गई है। श्याम कुंड के बारे में मान्यता है कि यहां स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप धुल जाते हैं। पुरुषों और महिलाओं के स्नान के लिए यहां पृथक-पृथक कुंड बनाए गए हैं।
खाटूश्यामजी की कथा : कौरव वंश के राजा दुर्योधन ने निर्दोष पाण्डवों को सताने और उन्हें मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया था, पर सौभाग्यवश वे उसमें से बच निकले और वनवास में रहने लगे। एक समय जब वे वन में सो रहे थे उस स्थान के पास ही एक हिडम्ब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिम्बी सहित रहता था। तब उनको मनुष्य (पाण्डवों) की गंध आई तो उन्हें देखकर यह राक्षस अपनी बहन से बोला इन मनुष्यों को मारकर मेरे पास ले आओ। अपने भाई के आदेश से वह वहां आई जहां पास ही सभी भाई द्रोपदी सहित सो रहे थे। और भीम उनकी रक्षा में जग रहा था। भीम के स्वरूप को देखकर हिडिम्बी उस पर मोहित हो और मन में यह सोचने लगी मेरे लिए उपयुक्त पति यही हो सकता है। उसने भाई की परवाह किए बिना भीम को पति मान लिया। कुछ देर बाद हिडिम्बी के वापस न लौटने पर हिडिम्बासुर वहां आया और स्त्री के सुन्दर भेष में अपनी बहन को भीम से बात करता देख क्रोधित हुआ।
तत्पश्चात हिडिम्बी के अनुनय विनय से माता कुन्ती व युधिष्ठिïर के निर्णय से दोनों का गन्धर्व विवाह हुआ। उपरोक्त अवधि के अन्तर्गत हिडिम्बी गर्भवती हुई और एक महाबलवान पुत्र को जन्म दिया। बाल रहित होने से बालक का नाम घटोत्कच रखा गया। हिडिम्बा ने कहा कि मेरा भीम के साथ रहने का समय समाप्त हो गया है और आवश्यकता होने पर पुन: मिलने के लिए कह वह अपने स्थान पर चली गई। साथ ही घटोत्कच भी सभी को प्रणाम कर आज्ञा लेकर उतर दिशा की और चला गया।
जल्द ही कृष्ण के कहने पर घटोत्कच का मणिपुर में मुरदेत्य की लडक़ी कामकंटका से गन्धर्व विवाह हुआ व कुछ समय व्यतीत होने के पश्चात उन्हें महान पराक्रमी पुत्र को जन्म दिया जिसके शेर की भांति सुन्दर केशों को देखकर उसका नाम बर्बरीक रखा।
कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किए। इसी कारण उन्हें तीन बाणधारी के नाम से भी जाना जाता है। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया। बर्बरीक तीनों लोकों को जीतने की सामर्थ्य रखते थे। बल की प्राप्ति के लिए उसने देवियों की निरन्तर आराधना कर तीनों लोको में किसी में ऐसा दुर्लभ अतुलनीय बल का वरदान पाया। देवियों ने बर्बरीक को कुछ समय वहीं निवास करने के लिए कहा और कहा कि एक विजय नामक ब्राह्मïण आएंगे। उनके संग में तुम्हारा और अधिक कल्याण होगा। आज्ञानुसार बर्बरीक वहां रहने लगा। तब मगध देश के विजयी नामक ब्राह्मïण वहां आये और सात शिव्लिंगों की पूजा की साथ ही विद्या की सफलता के लिए देवियों की पूजा की। ब्राह्मïण को स्वप्न में आकर कहा कि सिद्घ माता के सामने आंगन में साधना करो बर्बरीक तुम्हारी सहायता करेगा।
ब्राह्मïण के आदेश से बर्बरीक ने साधना में विघ्न डालने वाले सभी राक्षसों को यमलोक भेज दिया। उन असुरों को मारने पर नागों के राजा वांसुकि वहां आए और बर्बरीक को दान मांगने के लिये कहा।
तब बर्बरीक ने विजय की निर्विघ्न तपस्या सफल हो यही वर मांगा। ब्राह्मïण की तपस्या सफल होने पर उसने बर्बरीक को युद्घ में विजयी होने का वरदान दिया। तत्पश्चात विजय को देवताओं ने सिद्घश्चर्य प्रदान किया तब से उनका नाम सिद्घसेन हो गया।
कुछ काल बीत जाने के बाद कुरूक्षेत्र मैदान में कौरवों और पाण्डवों के बीच में युद्घ की तैयारियां होने लगी। इस अवसर पर बर्बरीक भी अपने तेज नीले घोड़े पर सवार होकर आ रहे थे।
तब रास्ते में ही भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मïण के भेष में उसके पास पहुंचे। भगवान ने बर्बरीक की मन की बात जानने के लिए उससे पूछा कि तुम किसकी और से युद्घ लडऩे आए हो तब बर्बरीक ने कहा कि जो कमजोर पक्ष होगा उसकी ओर से युद्ध में लडूंगा। भगवान ने बर्बरीक से कहा कि तुम तीन बाणों से सारी सेना को कैसे नष्टï कर सकते हो? तब बर्बरीक ने कहा कि सामने वाले पीपल वृक्ष के सभी पत्ते एक बाण से ही निशान हो जाए और दूसरा उसे बेध देगा। कृष्ण ने मुट्ठी व पैर के नीचे दो पत्ते छिपा लिए पर देखते ही एक बाण से क्षण भर में सब पत्ते बिंध गए तब श्री कृष्ण ने देखा वास्तव में यह एक ही बार में सबको यमलोक भेज सकता है। तब ब्राह्मïण बने श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से याचना की तब बर्बरीक ने कहा हे! ब्राह्मïण क्या चाहते हो तब श्रीकृष्ण ने कहा कि क्या सबूत है जो मैं मांगूगा वह मुझे मिल जायेगा। तब बर्बरीक ने कहा जब वचन की बात की है तो तुम प्राण भी मांगोगे तो मिल जायेंगे। तो ब्राह्मïण के भेष में नटवर बोले मुझे तुम्हारा शीश का दान चाहिए।
यह सुनकर बर्बरीक स्तब्ध रह गए और बोले मैं अपना वचन सहर्ष पूरा करूंगा पर सत्य कहो आप कौन हो तब कृष्ण ने अपना विराट स्वरूप बताते हुए कहा कि मैंने यह सोचा कि यदि तुम युद्घ में भाग लोगे तो दोनों कुल पूर्णतया नष्टï हो जाएंगे। तब बर्बरीक ने कहा कि आप मेरा शीश का दान तो ले लीजिए पर मेरी एक इच्छा है कि मैं युद्घ को आखिर तक देख सकूं। तब भगवान ने कहा कि तुम्हारी यह इच्छा पूरी होगी तब बर्बरीक ने अपना शीश धड़ से काटकर दे दिया। शीश को अमृत जडिय़ों के सहारे पहाड़ के ऊंचे शिखर पीपल वृक्ष पर स्थापित कर दिया। 18 दिन तक चले युद्घ में पाण्डवों को विजय प्राप्त हुई साथ ही उन्हें अपनी जीत पर घमण्ड हो गया, तब कृष्ण उन सबको लेकर वहां पहुंचे जहां बर्बरीक का सिर स्थापित था।
बर्बरीक के सामने पाण्डव अपनी-अपनी वीरता का बखान करने लग गए। तब बर्बरीक के सिर ने कहा कि आप सबका घमण्ड करना व्यर्थ है। जीत श्री कृष्ण की नितिज्ञ से ही मिली है। मुझे तो इस युद्घ में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही चलता नजर आया था इसके बाद बर्बरीक चुप हो गए और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। तब भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे और तुम्हारे सुमरण से सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।
श्याम बाबा की आरती की समय-सारणी
पट खुलने का समय : प्रात: 5:00 बजे
मंगल आरती : प्रात: 5:30 बजे
शृंगार आरती : प्रात: 7:45 बजे
भोग आरती : दोपहर 12:30
पट बंद होने का समय : दोपहर 1 बजे
पट खुलने का समय : सायं 4:00 बजे
ग्वाला आरती : सायं 7:00 बजे
शयन आरती : रात्रि 9:15 बजे
मंदिर बंद होने का समय रात्रि 9:30 बजे
विशेष अवसर पर समय परिवर्तन भी हो सकता है।
आरती श्री खाटूश्यामजी की
ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥ ॐ जय॥
रतन जडि़त सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥ ॐ जय॥
गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे।
खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले॥ ॐ जय॥
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे॥ ॐ जय॥
झांझ कटोरा और घडिय़ावल, शंख मृदंग धुरे।
भक्त आरती गावे, जय-जयकार करे॥ ॐ जय॥
जो ध्यावे फल पावे, सब दुख से उबरे।
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे॥ ॐ जय॥
श्री श्याम बिहारी जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत आलूसिंह स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय॥
तन मन धन सब कुछ है तेरा, हो बाबा सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥ ॐ जय॥
जय श्री श्याम हरे, बाबाजी श्री श्याम हरे।
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे॥ ॐजय॥
कैसे पहुँचें : सड़क मार्ग : खाटू धाम से जयपुर, सीकर आदि प्रमुख स्थानों के लिए राजस्थान राज्य परिवहन निगम की बसों के साथ ही टैक्सी और जीपें भी यहां आसानी से उपलब्ध हैं।
रेलमार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन (15 किलोमीटर) है।
वायुमार्ग : यहां से निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है, जो कि यहाँ से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है