केरल की संस्कृति हज़ारों साल पुरानी है। प्रारंभ में लोग पहाडी इलाकों में रहते थे। केरल के कुछ भागों से प्राचीन प्रस्तर युग के कतिपय खण्डहर प्राप्त हुए हैं। प्राचीन खण्डहरों के अतिरिक्त महाप्रस्तर स्मारिकाएँ (megalithic monuments) भी केरल में मानव जीवन की प्रामाणिक जानकारियाँ देती हैं। ये अधिकतर श्मशान रूप में प्राप्त होती हैं। यहाँ पर प्राचीन महाप्रस्तर काल के अनेक श्मशान-स्थल खोजे गये हैं जिन्हें कुडक्कल्लु (छत्राकार शिलाएँ), तोप्पिक्कल्लु (टोपी नुमा शिलाएँ), कल्मेशा (पत्थर से बनी मेज़), मुनियरा (मुनियों की कोठरी), नन्नङाडि (भस्मकुंभ) आदि नामों से जाना जाता है। इनका काल 500 ईं. पूर्व से 300 तक माना जाता है। अधिकतर महाप्रस्तर युगीन स्मारिकाएँ पहाडी क्षेत्रों से प्राप्त हुई। अतः यह सिद्ध होता है कि केरल में अतिप्राचीन काल से मानव का वास था।पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपना परशु पानी में फेंका जिसकी वजह से उस आकार की भूमि समुद्र से बाहर निकली और केरल अस्तित्व में आया। यहां 10वीं सदी ईसा पूर्व से मानव बसाव के प्रमाण मिले हैं।
Best Tourist Place in Kerala in Hindi (केरल में पर्यटन)
केरल में पर्यटन एक प्रसिद्ध उद्योग है। नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी प्रकाशन ने केरल को दुनिया की 50 श्रेष्ठतम जगहों में सूचीबद्ध किया है। केरल में देखने लायक पर्यटन स्थलों में से कुछ इस प्रकार हैं:
राजधानी तिरुवनंतपुरम शहर मंदिर, मस्जिद और चर्चों का केन्द्र है। यहां कोवलम बीच रिसोर्ट, वेली, नेयर बांध और पोमुडी देखने लायक जगह है।
- इडुक्की जिले के थेक्कडी में पेरियार वन्यजीव अभयारण्य एक आकर्षक स्थान है।
- भगवान अयप्पन का निवास स्थान सबरीमला पथनमथिट्टा जिले का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है।
- केरल का प्रमुख बंदरगाह कोच्चि अरब सागर की रानी के रुप में जाना जाता है।
- खूबसूरत विलिंगडन द्वीप और आस पास के बंदरगाह एक यहां एक बड़ा आकर्षण है।
- कलादी श्री शंकराचार्य का जन्मस्थान है।
- गुरुवयूर में प्रसिद्ध भगवान कृष्ण मंदिर है।
- कलामंडलम त्रिसूर जिले का प्रसिद्ध कथकली नृत्य केंद्र है।
Food of Kerala in Hindi (केरल का खान पान)
केरल के इतिहास में मसाले हमेशा से बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। हमारा भोजन इसका उदाहरण है और हमारे पास दुनिया भर के लोगों के लिए परोसने के लिए कुछ न कुछ ज़रूर होता है। चाहे वह प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय रेस्टोरेंट की श्रृंखला हो या स्थानीय खानपान की दुकान, हमारे पास वह सब कुछ है जो खाने के शौकीन केरल के स्वाद के साथ पकाने को कहे। यहाँ का खानपान शाकाहारी और मांसाहारी दोनों के लिए समान रूप से उपलब्ध है। हमारे बीते ज़माने और भविष्य के स्वादों का आनंद लें।केरलीयों का प्रमुख भोजन चावल है। मलयाली साग-सब्जियाँ, मछली, मांस, अंडा इत्यादि से बनी सब्जियों से मिलाकर चावल खाना पसन्द करते हैं। गेहूँ, मैदा आदि भी केरलीयों को प्रिय है। यहाँ ऐसे पकवान प्रिय हैं जो भाप में पकाये जाते हैं या फिर तेल में तले जाते हैं। मीठी खीर भी यहाँ पसन्द की जाती है। कंदमूलों को पकाकर बनाये जाने वाले खाद्य भी यहाँ खाये जाते हैं। आजकल केरलीयों के खाद्य पदार्थों, खाद्य संस्कारों तथा पाक कला में ऐसा परिवर्तन आया है जो भारत के अन्य क्षेत्रों के प्रभाव का परिणाम है, ओपनिवेशिकता के परिणाम स्वरूप विदेशी प्रभाव भी इसका कारण है।केरलीयों का प्रमुख भोजन चावल है। मलयाली साग-सब्जियाँ, मछली, मांस, अंडा इत्यादि से बनी सब्जियों से मिलाकर चावल खाना पसन्द करते हैं। गेहूँ, मैदा आदि भी केरलीयों को प्रिय है। यहाँ ऐसे पकवान प्रिय हैं जो भाप में पकाये जाते हैं या फिर तेल में तले जाते हैं। मीठी खीर भी यहाँ पसन्द की जाती है। कंदमूलों को पकाकर बनाये जाने वाले खाद्य भी यहाँ खाये जाते हैं। आजकल केरलीयों के खाद्य पदार्थों, खाद्य संस्कारों तथा पाक कला में ऐसा परिवर्तन आया है जो भारत के अन्य क्षेत्रों के प्रभाव का परिणाम है, ओपनिवेशिकता के परिणाम स्वरूप विदेशी प्रभाव भी इसका कारण है।
केरल की भाषा क्या है
केरल की भाषा मलयालम है जो द्रविड़ परिवार की भाषाओं में एक है। मलयालम भाषा के उद्गम के बारे में अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं। एक मत यह है कि भौगोलिक कारणों से किसी आदि द्रविड़ भाषा से मलयालम एक स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हुई। इसके विपरीत दूसरा मत यह है कि मलयालम तमिल से व्युत्पन्न भाषा है। ये दोनों प्रबल मत हैं। सभी विद्वान यह मानते हैं कि भाषाई परिवर्तन की वजह से मलयालम उद्भूत हुई। तमिल, संस्कृत दोनों भाषाओं के साथ मलयालम का गहरा सम्बन्ध है। मलयालम का साहित्य मौखिक रूप में शताब्दियाँ पुराना है। परंतु साहित्यिक भाषा के रूप में उसका विकास 13 वीं शताब्दी से ही हुआ था। इस काल में लिखित ‘रामचरितम्’ को मलयालम का आदि काव्य माना जाता है।