कपिलवस्तु प्राचीन समय में शाक्य वंश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। इस शहर की दूरी सिद्धार्थ नगर से 20 किलोमीटर और गोरखपुर से 97 किलोमीटर दूर स्थित है। कपिलवस्तु महात्मा बुद्ध के पिता शुद्धोधन के राज्य की राजधानी थी। यहाँ भगवान बुद्ध ने अपना बचपन व्यतीत किया था। यह श्रावस्ती का समकालीन नगर था।
इसी कपिलवस्तु में राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ और देवदत्त के बीच घायल हंस को लेकर उठे विवाद का निर्णय सुनाया था – “मारने वाले से, बचाने वाला बड़ा होता है।” राजकुमार सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु में रहते हुए इस संसार की नश्वरता और दुःखों को देखकर संन्यास ले लिया था। उन्होंने अपनी तप-साधना पूर्ण होने पर बोध ज्ञान प्राप्त किया और भगवान बुद्ध कहलाए। बुद्ध बनने के बाद वे एक बार वापस कपिलवस्तु लौटे। महाराज शुद्धोधन बीमार थे। बुद्ध ने उन्हें धर्म का उपदेश दिया। फिर अपने पुत्र राहुल को सबसे पहले दीक्षा दी।
क्यों नाम पडा कपिलवस्तु : परंपरा के अनुसार वहाँ कपिल मुनि ने तपस्या की, इसीलिये यह कपिलवस्तु (अर्थात् महर्षि कपिल का स्थान) नाम से प्रसिद्ध हो गया। नगर के चारों ओर एक परकोटा था, जिसकी ऊँचाई अठारह हाथ थी। गौतम बुद्ध के काल में भारतवर्ष के समृद्धिशाली नगरों में इसकी गणना होती थी। यह उस समय तिजारती रास्तों पर पड़ता था। वहाँ से एक सीधा रास्ता वैशाली, पटना और राजगृह होते हुये पूरब की ओर निकल जाता था, दूसरा रास्ता वहाँ से पश्चिम में श्रावस्ती की ओर जाता था।
गौतम बुद्ध ने यहाँ बचपन बिताया : सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु में ही अपना बचपन बिताया था और सच्चे ज्ञान और सुख की प्राप्ति की लालसा से अपने परिवारऔर राजधानी को छोड़कर चले गये थे। बुद्धत्व को प्राप्त करने पर वे अंतिम बार कपिलवस्तु आए थे और तब उन्होंने अपने पिता शुद्धोधन और पत्नी यशोधरा को अपने धर्म में दीक्षित किया था।
अस्थि दर्शन को आते है लोग : वर्तमान कपिलवस्तु उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले में, नेपाल की तराई क्षेत्र में स्थित है। यह उत्तर पूर्व रेलवे के गोरखपुर-गोंडा लूप लाइन पर स्थित नौगढ़ नामक तहसील मुख्यालय और रेलवे स्टेशन से 22 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में है। यहां प्राप्त अस्थि अवशेषों को नेशनल म्यूजियम और इंडियन म्यूजियम में देखा जा सकता है। बुद्ध पूर्णिमा पर महाबोधि सोसाइटी इन अस्थि अवशेषों की विशेष पूजा आयोजित करती है। विश्व के अन्य देशों के पर्यटक भी कपिलवस्तु और अस्थि अवशेषों के दर्शनों के लिए आते हैं।
जाना जाता था तीर्थ के रूप मे
कपिलवस्तु अशोक के समय में तीर्थ के समान समझा जाता था। अपने गुरु उपगुप्त के साथ सम्राट ने कपिलवस्तु की यात्रा की और यहां स्तूप आदि स्मारक बनवाए। किंतु शीघ्र ही इस नगर की अवनति का युग प्रारंभ हो गया और इसका प्राचीन गौरव घटता चला गया। इस अवनति का कारण अनिश्चित है। संभवतः कालप्रवाह में नेपाल की तराई क्षेत्र में होने के कारण कपिलवस्तु के स्थान को घने वनों ने आच्छादित कर लिया था और इस कारण यहां पहुंचना दुष्कर हो गया होगा। चीनी यात्री फ़ाह्यान (405-411 ई.) के समय तक कपिलवस्तु नगरी उजाड़ हो चुकी थी। केवल थोड़े-से बौद्ध भिक्षु यहां निवास करते थे, जो अपनी जीविका कभी-कभी आ जाने वाले यात्रियों के दान में दिए गए धन से चलाते थे। यह भी उल्लेखनीय है कि फ़ाह्यान के समय तक बौद्ध धर्म से घनिष्ठ रूप से संबंधित अन्य प्रमुख स्थान
जैसे बोधगया और कुशीनगरभी उजाड़ हो चले थे। वास्तव में बौद्ध धर्म का अवनति काल इस समय प्रारंभ हो गया था