कानपुर! जी हाँ दोस्तों, कानपुर को इंडिया का ही नही “ईस्ट का मैनचेस्टर”भी कहा जाता है। पवित्र गंगा नदी के तट पर बसा कानपुर एक ऐसा भारतीय शहर है, जो अपनी बहुत सी विशेषताओं के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 80 किमी दूर कानपुर है। इस शहर की स्थापना सचेन्दी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने की थी। कानपुर का मूल नाम ‘कान्हपुर’ था। अवध के नवाबों के शासनकाल के अंतिम दिनों में यह नगर पुराना कानपुर, पटकापुर, कुरसवाँ, जुही तथा सीमामऊ गाँवों के मिलने से बना था। यहाँ बहुत बड़ी बड़ी कंपनी और कल कारख़ाने है। 24 मार्च 1803 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने ऐतिहासिक शहर कानपुर को जिला घोषित किया था।
साल 1857 के गदर में कानपुर की धरती खून से लाल हुई थी। समय बीता और कानपुर एक औद्योगिक नगरी के तौर पर विकसित होने लगा। कई मिलें खुलीं इनमें लाल इमली, म्योर मिल, एल्गिन मिल, कानपुर कॉटन मिल और अथर्टन मिल काफ़ी प्रसिद्ध हुई। यही असर था कि कानपुर को मिलों की नगरी के नाम से जाने जाना लगा। इतिहास की किताबों में ये कानपुर ‘मैनचेस्टर ऑफ़ द ईस्ट’ कहलाया जाने लगा। आज़ादी के बाद भी कानपुर ने तरक़्क़ी की. यहां आईआईटी खुला, ग्रीन पार्क इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बना, ऑर्डनेंस फैक्ट्रियाँ स्थापित हुईं. इस सबके बाद कानपुर का परचम दुनिया में फहराने लगा।
कैसा है कानपुर शहर :
इस शहर में एक ही जगह आपको जीवन के दो अलग-अलग रंग दिखते हैं। शहर का एक हिस्सा जहां तेज रफ्तार जिंदगी, लोगों की गहमागहमी और चमड़े के छोटे-बड़े कारखानों से घिरा नजर आता है, वहीं इसी शहर में एक हिस्सा ऐसा भी है, जहां आपको दाढ़ में पान का बीड़ा दबाए, गपशप करते हुए लोग बेफिक्र अंदाज में दिखाई देते हैं। मानो दुनिया की भागमभाग से उन्होंने अभी तक खुद को बचाकर सामान्य बनाया हुआ है। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े शहरों में से एक कानपुर, खरीददारी के शौकीनों के लिए तो स्वर्ग है। क्योंकि चमड़े से बने सामान और सूती कपड़े की जो वैरायटी यहां मिलेगी, वह आपको कहीं और मुश्किल से ही मिलेगी। धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए यहां अनेकों मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि यह शहर आध्यात्म और आस्था से कितनी मजबूती से जुड़ा हुआ है।
कानपुर मे दर्शनीय स्थल :
दोस्तों! कानपुर एक एतिहासिक शहर रहा है और यहाँ बहुत सी जगह है जो घूमने लायक है। कानपुर एक पर्यटन का एक बेहतर विकल्प हो सकता है। तो आइए जानते है कानपुर मे क्या क्या है घूमने के लिए :—-
नानाराव पार्क, चिड़ियाघर, बिठूर का किला, राधा-कृष्ण मन्दिर, सनातन धर्म मन्दिर, कांच का मन्दिर, श्री हनुमान मन्दिर पनकी, सिद्धनाथ मन्दिर, जाजमऊ आनन्देश्वर मन्दिर परमट, जागेश्वर मन्दिर चिड़ियाघर के पास, सिद्धेश्वर मन्दिर चौबेपुर के पास, बिठूर साईं मन्दिर, मोतीझील, जापानी गार्डन, गंगा बैराज, छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय (पूर्व में कानपुर विश्वविद्यालय), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी संस्थान (एच.बी.टी.आई.), चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, ब्रह्मदेव मंदिर, जेके मंदिर, भीतरगांव का गुप्त मंदिर इत्यादि।
इन फिल्मों में कानपुर का टशन :
जॉली एलएलबी-2, टशन, तनु वेड्स मनु-1, तनु वेड्स मनु-2, बंटी और बबली, दबंग-2, साईं वर्सेज आई, कटियाबाज, देसी कट्टे, बाबर, हंसी तो फंसी, होटल मिलन, मरुधर एक्सप्रेस, भैया जी सुपरहिट।
इन धारावाहिकों में कानपुर की झलक:
कृष्णा चली लंदन, ‘शास्त्री सिस्टर्स, भाबी जी घर पर हैं, लापतागंज, जीजा जी छत पर हैं, हर शाख पर उल्लू बैठा है, नीली छतरी वाले, ऑफिस-ऑफिस।
मायानगरी में छा गए कॉमेडियन :
कानपुर के कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव, राजीव निगम, राजन श्रीवास्तव, , जीतू गुप्ता, अनिरुद्ध मद्धेशिया और अन्नू अवस्थी अब किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वह सिर्फ इसीलिए कॉमेडियन बन सके क्योंकि विशुद्ध कनपुरिया भाषा पर उनकी मजबूत पकड़ और अंदाज मजाकिया है।
क्या है कानपुर का जायका :
कानपुर के ज़ायकेदार चटपटे टेस्ट की बात करें तो स्वाद की मार्केटिंग तो यहाँ सालों पहले ही शुरू हो गई थी जब किसी शख्स ने यहाँ के लड्डुओं को उसके स्वाद से ठगने वाला और कुल्फी को बदनाम करार कर दिया था। शायद इसलिए ही यहाँ के लड्डू ठगने वाले और कुल्फी ‘बदनाम कर देने वाले रहस्य नामों से लोकप्रिय है और इनका स्वाद भी पूरे देश में मशहूर है। आपको बता दें कि फिल्म बंटी और बबली “ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं” का थीम गाने यहाँ के लड्डू की दुकान की टैग लाइन से ही लिया गया था।
ठग्गू के लड्डू :
ये लड्डू शुद्ध खोया, रवा और काजू से बनाए जाते हैं। 50 साल पुरानी कानपुर की सबसे प्रसिद्ध लड्डुओं की दुकानों में से एक ठग्गू के लड्डू की दुकान के बोर्ड पर साफ़ लिखा है कि “ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं”। और यक़ीनन इस दुकान के लड्डुओं का स्वाद आपको ठग लेगा।
बदनाम कुल्फी :
कानपुर में ‘ठग्गू का लड्डू’ तो मशहूर है ही, अब बात करते हैं कानपुर के मशहूर बदनाम कुल्फी की। “ठग्गू के लड्डू” दूकान की ‘बदनाम कुल्फी’ भी काफी लोकप्रिय है। बदनाम कुल्फी के स्वाद के दीवाने बच्चे, बूढ़े और नौजवान सभी हैं। बदनाम कुल्फी का स्वाद लेने यहाँ दूर-दराज से लोग आते हैं। इसके अलावा कानपुर घुमने आये लोग भी यहाँ आना नहीं भूलते। इस वजह से इस दुकान में हमेशा काफी भीड़ रहती है। बहुत भीड़ होने की वजह से यहाँ कुल्फ़ी का आर्डर के लिए आपको वेट करना पड़ सकता है क्योंकि यहाँ बहुत भीड़ होती है।
आदर्श नमकीन के स्पेशल ढोकले :
कानपुर आए और आदर्श नमकीन का स्वाद न लें तो आपकी यात्रा अधूरी रह जाएगी। शहर के बिरहाना रोड पर आदर्श नमकीन की दुकान है। यहाँ की नमकीन पूरे प्रदेश में अपने अनमोल स्वाद के लिए मशहूर है। वहीं यहाँ के स्पेशल ढोकले का स्वाद सबसे उम्दा माना जाता है। कानपुर के लोग अक्सर नाश्ते में ढोकला खाते हैं। स्पंज की तरह मुलायम मुंह में जाते ही घुल जाने वाला ये ढोकला, राई और नमक के घोल एवं छुकी हुई मोटी हरी मिर्च की सजावट से बेहद खुबसूरत लगता है। अगर आप कानपुर में है तो, आपको सुबह के नाश्ते में ढोकला जरुर मिलेगा। यहाँ के स्पेशल पंचम दालमोठ भी बेहद जायकेदार है। जो इसी दुकान पर मिल जाएगा। लेकिन कानपुर की पहचान से जुड़ चुका ढोकला सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।
गोपाल के खस्ते :
यूँ तो हर शहर में आपको खस्ते मिल जायेंगे। लेकिन कानपुर के प्रसिद्ध “गोपाल का खस्ता” का स्वाद अपने आप में अनूठा है। नरौना चौराहे के ये खस्ते अन्य शहरों के खस्तों के मुकाबले काफी अलग हैं। यहाँ स्पेशल भरवां खस्ते मिलते हैं जिनका स्वाद बेहद लज़ीज है। यहाँ के लोग अन्य ख्स्तों से इसकी तुलना जायज नहीं समझते। मैदे के बने छोटे-छोटे खस्तों में चटपटे आलू एवं छोटे-छोटे दही बड़े भरे जाते हैं। उसके बाद पुदीना, हरी मिर्च और खटाई की ज़ायकेदार चटनी और भीगी हरी मिर्च के साथ इसे परोसा जाता हैं, मुंह में जाते ही इसका पहला निवाला मन लूट लेता है।
बनारसी चाय :
साल 1952 मे शहर के मोतीझील के किनारे स्थित “बनारसी चाय की दुकान” है। अगर आपने यहाँ की चाय की चुस्कियां नहीं लीं, तो फिर समझो उसने कानपुर में कुछ नहीं खाया। इस दुकान से दिनभर में 5000 से ज्यादा कप स्पेशल चाय की बिक्री होती है। इस चाय को बनाने की विधि भी वाकई दिलचस्प है। चाय में पके हुए लाल दूध, स्पेशल चाय मसाला और दानेदार चाय की पत्ती का यूज होता है। इस दुकान को एक भी दिन बंद नहीं किया जा सकता। क्योंकि यहाँ की चाय से लोगों का दिन शुरू होता है।