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कामाख्या मंदिर का इतिहास : जाने रोचक तथ्ये

कामाख्या मंदिर का इतिहास : जाने रोचक तथ्ये

Posted on March 25, 2019April 8, 2024 By admin

51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। वल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहतै है

History of Kamakhya Mandir in hindi

विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्व भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस स्थान पर 17वीं सदी में बिहार के राजा नारा नारायणा ने मंदिर बनाया.

कामाख्या मंदिर के पीछे कहानी – देवी सती राजा दक्ष की बेटी थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने पिता की अनुमति के बिना ही भगवान शिव से शादी कर ली थी। एक बार राजा ने एक विशाल यज्ञ किया, जिसमें उन्होंने सती और भगवान शिव के अलावा सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था। सती अपने पिता के महल में गई, जहां राजा दक्ष ने भगवान शिव को सबके सामने अपमान किया। सती से पति का यह अपमान सहन ना हुआ और उन्होंने आयोजित यज्ञ में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी।सति देवी के स्वःत्याग से क्रोधित होकर भगवान शिव ने विनाश का नृत्य अर्थात तांडव किया था। साथ ही उन्होंने पूरी धरा को नष्ट करने की चेतावनी भी दी थी।

इसे देखते हुए भगवान महा विष्णु ने सति देवी के शरीर को अपने चक्र से 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। शरीर का हर हिस्सा पृथ्वि के अलग-अलग हिस्से में जाकर गिरा। कामागिरि वह जगह है जहां देवी का योनि भाग गिरा था। यह भी कहा जाता है कि यहां सति देवी भगवान शिव के साथ आया करती थी।

क्यों कामाख्या देवी को “ब्लीडिंग देवी” के नाम से जाना जाता है

देवी कामाख्या को ब्लीडिंग देवी के नाम से भी जाना जाता है। भक्तों का मानना है कि आषाढ़ के महीने में तीन दिनों के लिए मंदिर को बंद कर दिया जाता है, क्योंकि इन दिनों देवी माहवारी से ग्रस्त होती हैं। इसके बाद चौथे दिन मंदिर खुलता है और मंदिर के बाहर अंबुबच्ची मेला लगाया जाता है।.इस मंदिर में हर साल अंबुवाची मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले में देशभर के तांत्रिक हिस्सा लेने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि इन तीन दिनों में माता सति रजस्वला होती हैं और जल कुंड में पानी की जगह रक्त बहता है. इन तीन दिनों के लिए मंदिर के दरवाजे बंद रहते हैं. तीन दिनों के बाद बड़ी धूमधाम से इन्हें खोला जाता है. हर साल मेले के दौरान मौजूद ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये पानी माता के रजस्वला होने का कारण होता है. इतना ही नहीं यहां दिया जाने वाले वाला प्रसाद भी रक्त में डूबा कपड़ा होता है. ऐसा कहा जाता है कि तीन दिन जब मंदिर के दरवाजे बंद किए जाते हैं तब मंदिर में एक सफेद रंग का कपड़ा बिछाया जाता है जो मंदिर के पट खोलने तक लाल हो जाता है. इसी लाल कपड़े को इस मेले में आए भक्तों को दिया जाता है. इस प्रसाद को अंबुवाची प्रसाद भी कहा जाता है. इस मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है. यहां सिर्फ योनि रूप में बनी एक समतल चट्टान को पूजा जाता हैं. मूर्तियां साथ में बने एक मंदिर में स्थापित की गई हैं. इस मंदिर में पशुओं की बली भी दी जाती है. लेकिन यहां किसी भी मादा जानवर की बलि नहीं दी जाती है. इन पौराणिक कथाओं में विश्वास ना रखने वाले लोगों का मानना है कि इस मंदिर के पास मौजूद नदी का पानी मंदिर में मेले में चढ़ाए गए सिंदूर के कारण होता है. या फिर यह रक्त पशुओं का रक्त होता है, जिनकी यहां बलि दी जाती है.

लाखों श्रद्धालु और तीर्थयात्री दूर-दूर से इस विशाल महोत्सव में हिस्सा लेने के लिए आते हैं। इन दिनों मंदिर के पास बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल रंग में बदल जाती है। इस बात के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है कि इस नदी के पानी का रंग लाल क्यों होता है।

Kamakhya Temple Interesting Facts in Hindi

  • मनोकामना पूरी करने के लिए यहां कन्या पूजन व भंडारा कराया जाता है। इसके साथ ही यहां पर पशुओं की बलि दी जाती ही हैं। लेकिन यहां मादा जानवरों की बलि नहीं दी जाती है।
  • काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है।
  • मंदिर परिसर में जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है।
  • माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं। कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं।
  • कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।
  • इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता ह। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रसित है तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात पा सकता है।

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