बेगम ज़ीनत महल (जन्म: 1823 – मृत्यु: 1886) मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र की पत्नी (बेगम) थी। बेगम ज़ीनत महल ने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में स्वातंत्र्य योद्धाओं को संगठित किया और देश प्रेम का परिचय दिया। अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की बेगम जीनत महल की देशभक्ति के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जीनत महल अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए लगातार बादशाह को उत्साहित करती रहीं। चारों ओर से घिर जाने पर बेगम ने बहादुर शाह को सलाह दी थी अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण न करें, लड़ाई लड़ें। मगर संसाधन उपलब्ध नहीं होने पर बहादुर शाह ऐसा नहीं कर सके। बादशाह को डर था कि लड़ाई होगी तो और अधिक खून-खराबा होगा। जिस पर बहादुर शाह और जीनत महल ने अलग-अलग रास्ते लालकिला छोड़ने का फैसला कर लिया था। जीनत महल को नजर आने लगा था कि देश पर अंग्रेजों का कब्जा हो रहा है। जिस पर एक नाव के माध्यम से यमुना से होते हुए निजामुद्दीन औलिया की दरगाह और फिर हुमायूं के मकबरे में पहुंचे। गिऱफ्तारी के बाद चले मुकदमे में जब बहादुर शाह को सजा के तौर पर रंगून जेल के लिए ले जाया जाने लगा तो जीनत महल को देश में ही रहने की छूट अंग्रेज हुकूमत ने दे दी थी, मगर उन्होंने बादशाह के साथ जेल जाने का फैसला लिया।। हम आपको बता दें कि 1857 में प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखवाने वालों में जीनत महल भी शामिल थीं। जब देश में अंग्रेज हुकूमत हासिल करने के लिए उग्र थे, तो बेगम जीनत महल ने अपने पति बहादुर शाह जफर को ललकारा था। उन्होंने कहा था कि यह समय गजलें कह कर दिल बहलाने का नहीं है। बिठूर से नाना साहेब का पैगाम लेकर देशभक्त सैनिक आए हैं। आज सारे हिंदुस्तान की आंखें दिल्ली की ओर हैं और आप पर लगी हैं। खानदान-ए-मुगलिया का खून हिंद को गुलाम होने देगा तो इतिहास उसे कभी क्षमा नहीं करेगा। उनके ललकारने के बाद बहादुर शाह जफर अंग्रेजों से लड़े और गिरफ्तार हुए।
बहादुर शाह ज़फ़र की प्रेरणास्रोत
सन् 1857 की क्रांति में बहादुर शाह ज़फ़र को प्रोत्साहित करने वाली बेगम ज़ीनत महल ने ललकारते हुए कहा था कि- ‘यह समय ग़ज़लें कह कर दिल बहलाने का नहीं है, बिठूर से नाना साहब का पैग़ाम लेकर देशभक्त सैनिक आए हैं, आज सारे हिन्दुस्तान की आँखें दिल्ली की ओर व आप पर लगी हैं, ख़ानदान-ए-मुग़लिया का ख़ून हिन्द को ग़ुलाम होने देगा तो इतिहास उसे कभी क्षमा नहीं करेगा।’ बाद में बेगम ज़ीनत महल भी बहादुर शाह ज़फ़र के साथ ही बर्मा (वर्तमानम्यांमार) चली गयीं।
इसी प्रकार दिल्ली के शहज़ादे फ़िरोज़शाह की बेगम तुकलाई सुल्तान ज़मानी बेगम को जब दिल्ली में क्रांति की सूचना मिली तो उन्होंने ऐशोआराम का जीवन जीने की बजाय युद्ध शिविरों में रहना पसंद किया और वहीं से सैनिकों को रसद पहुँचाने और घायल सैनिकों की सेवा का प्रबन्ध अपने हाथो में ले लिया।
अंग्रेज़ी हुकूमत इनसे इतनी भयभीत हो गयी थी कि कालान्तर में उन्हें घर में नज़रबन्द कर उन पर बम्बई न छोड़ने और दिल्ली प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
“मौत”
गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजों ने कहा था कि जीनत महल यदि भारत में रहना चाहती हैं तो हम उन्हें छोड़ने को तैयार हैं, मगर उन्होंने पति बहादुर शाह जफर से साथ जेल में रहना पसंद किया और उनके साथ रंगून चली गई। वहीं पर जेल में ही रहते हुए अंतिम सांस ली। आज भी उनकी कब्र रंगून में बहादुर शाह जफर की कब्र के साथ बनी है। मगर ऐसी बहादुर महिला की दिल्ली स्थित हवेली की कोई सुध लेने वाला नहीं है। हुमायूं के मकबरे से लाने के बाद बहादुर शाह जफर को इसी महल में रखा गया था।