अलग अलग धर्मों का देश है भारत और इन सभी धर्मों मे सबसे पुराना धर्म है हिन्दू धर्म । वैसे तो यहाँ हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्म भी है लेकिन हिन्दू धर्म का विशेष महत्व है।
कुछ इतिहासकारों के मुताबिक हिन्दू धर्म ना केवल भारत में, वरन् दुनिया का सबसे पुराना धर्म है, तो ज़ाहिर है कि इस धर्म की छाप दुनिया के कोने-कोने में होगी। अगर हम ज्यादा दूर न जाके एशिया के ही देशों की बात करें तो सबसे पहले जापान देश का नाम आता है कि यहाँ हिन्दू धर्म और उससे जुड़ी मान्यताओं को काफ़ी विशेष महत्व दिया गया है। कुछ प्राचीन हैं तो कुछ को प्राचीन मंदिरों से भी अधिक मान्यता प्राप्त है। इसी तरह से जापान में भी ऐसे कई मंदिर हैं, जिनके बारे में जानकर आपको बेहद अचंभा होगा। जापान में कई हिंदू देवी-देवताओं को जैसे ब्रह्मा, गणेश, गरुड़, वायु, वरुण आदि की पूजा आज भी की जाती है।
जापान में संस्कृत : जी हां…. काफी हैरान करती है यह बात, इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत में भी बड़ी जनसंख्या में विद्यार्थी संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन हिन्दू संस्कृति के मूल निवासी ना होकर भी जापानी इस भाषा का ज्ञान प्राप्त करके गर्व महसूस करते हैं।
जापान की राजधानी टोक्यो में पांचवी शताब्दी की सिद्धम स्क्रिप्ट को आज भी देखा जा सकता है। इसे गोकोकुजी कहते हैं। बेनॉय का कहना है कि ये लिपि पांचवी शताब्दी से जापान में चल रही है और इसका नाम सिद्धम है। भारत में ऐसी कोई जगह नहीं, जहां ये पाई जाती हो । आज भी जापान की भाषा ‘काना’ में कई संस्कृत के शब्द सुनाई देते हैं । इतना ही नहीं काना का आधार ही संस्कृत है। बहल के अनुसार जापान की मुख्य दूध कंपनी का नाम सुजाता है। उस कंपनी के अधिकारी ने बताया कि ये उसी युवती का नाम है जिसने बुद्ध को निर्वाण से पहले खीर खिलाई थी।
फोटोग्राफ़र बेनॉय के बहल के फोटोग्राफ़्स की एक प्रदर्शनी
कुछ समय पहले नई देहली में फोटोग्राफ़र बेनॉय के बहल के फोटोग्राफ़्स की एक प्रदर्शनी हुई, जिससे जापानी देवी-देवताओं की झलक मिली।
बेनॉय के अनुसार हिंदी के कई शब्द जापानी भाषा में सुनाई देते हैं। ऐसा ही एक शब्द है ‘सेवा’ जिसका मतलब जापानी में भी वही है जो हिंदी में होता है। बेनॉय कहते हैं कि जापानी किसी भी प्रार्थना का अनुवाद नहीं करते। उनको लगता है कि ऐसा करने से इसकी शक्ति और प्रभाव कम हो जाएगा ।
दर्ज है लिम्का वर्ल्ड रिकॉर्ड मे बेनाय :
भारतीय सभ्यता के रंग जापान में देखने को मिलते हैं। सरस्वती के कई मंदिर भी जापान में देखने को मिलते हैं। संस्कृत में लिखी पांडुलिपियां कई जापानी घरों में मिल जाती है। बेनॉय का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में ‘मोस्ट ट्रेवल्ड फोटोग्राफ़र’ के रूप में दर्ज है।
बुद्ध को भी पूजने वालों की कमी नही :
जापान में सबसे ज्यादा लोग बुद्ध के उपासक है पर बुद्ध भी तो वैदिक सभ्यता का उपासक रहे है. बुद्ध ने तृष्णा को सभी दुखों का मूल माना है. चार आर्य सत्य माने गए हैं. कि संसार में दुख है, दूसरा- दुख का कारण है, तीसरा- कारण है तृष्णा और चौथा- तृष्णा से मुक्ति का उपाय है आर्य अष्टांगिक मार्ग. अर्थात वह मार्ग जो अनार्य को आर्य बना दे. इससे शायद वेद मार्गी के भी कोई वैचारिक मतभेद नहीं होंगे. दोनों में ही मोक्ष ( निर्वाण) को अंतिम लक्ष्य माना गया है एवं मोक्ष प्राप्त करने के लिए पुरूषार्थ करने को श्रेष्ठ माना गया है।
जापान मे भी मथुरा वृंदावन की धूम :
जापान की नगरी नारी में मथुरा-वृन्दावन जैसी राग- रंग की धूम- धाम रहती है. वहाँ के मन्दिरों में आकर्षक नृत्य के साथ अनेकों धर्मोत्सव होते रहते हैं. जापानी स्वभावतः प्रकृति- सौंदर्य के पूजक हैं. उनके निजी घरों में भी छोटे- बड़े उद्यान बने होते हैं. तिक्को का तोशूगू मन्दिर पहाड़ काटकर इस प्रकार बनाया है, जिससे न केवल धर्म- भावना की वरन् प्रकृति पूजा की आकांक्षा भी पूरी हो सके.
एक रोचक तथ्य : जापान की मुख्य दूध कंपनी का नाम सुजाता है. उस कंपनी के अधिकारी ने बताया कि ये उसी युवती का नाम है जिसने बुद्ध को निर्वाण से पहले खीर खिलाई थी.
हिंदू देवी के नाम पर रखा गया है जापान के शहर का नाम :
जापान में टोक्यो के नज़दीक किचीजोजी टाउन का नाम हिंदू देवी लक्ष्मी के नाम पर रखा गया है.किचीजोजी शहर की उत्पत्ति लक्ष्मी मंदिर के नाम से ही हुई है. जापानी भाषा में किचीजोजी का अर्थ लक्ष्मी मंदिर होता है. जापान पर भारत की संस्कृति के प्रभाव का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को लगता है कि भारत और जापान अलग-अलग हैं लेकिन ऐसा नहीं है, जापान में हिंदू देवी-देवाताओं के तमाम मंदिर हैं. जापान में सदियों से हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की जाती रही है.
कई चीजों में एक जैसे हैं भारत और जापान :
जापानी व्यंजन पर भारतीय खाने के प्रभाव को बताते हुए उन्होंने कहा कि जापानी व्यंजन ‘सुशी’ को चावल और सिरके से बनाया जाता है.’ उन्होंने कहा कि करीब 500 जापानी शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत और तमिल से हुई है. सिर्फ भारतीय संस्कृति ही नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं का भी जापानी भाषा और पूजा पद्धति पर खासा प्रभाव है