त्र्यम्बकेश्वर मंदिर तीन पहाड़ियों के बीच स्थित है, जिसमें ब्रह्मगिरी, निलागिरि और कालगिरी शामिल हैं। मंदिर की एक विशेषता यह है कि इस मंदिर शिव, विष्णु और ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन लिंगगम (शिव के एक प्रतिष्ठित रूप) हैं। अन्य ज्योतिलिंगों में सिर्फ भगवान शिव का शिव लिंग है। मंदिर में स्थित कुण्ड को अमृतवष्र्णी कहा जाता है। इस मंदिर में तीन अन्य जल स्त्रोत हैं, जिनका नाम है, बिल्थीथीर्थ, विश्वनाथर्थ और मुकुंदथीर्थ। त्र्यम्बकेश्वर मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं, गंगादेवी, जलेस्वरवा, रामेश्वर, गौतमेश्वरा, केदारनाथ, राम, कृष्ण, परशुराम और लक्ष्मी नारायण। मंदिर में संतों के कई मठ और समाधि भी हैं। शिवपुराण के ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चैड़ी-चैड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद ‘रामकुण्ड’ और ‘लक्ष्मणकुण्ड’ मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।
Tryambkeshwar Mandir ka itihas in hindi
शिव जी के बारह ज्योतिर्लिगों में श्री त्र्यंबकेश्वर को दसवां स्थान दिया गया है. यह महाराष्ट्र में नासिक शहर से 35 किलोमीटर दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित है. मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव देवों का प्रतीक माना जाता हैं. त्र्यंबकेश्वर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इस ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं. काले पत्थरों से बना ये मंदिर देखने में बेहद सुंदर नज़र आता है.कहते हैं यहां गाय को हरा चारा खिलाने का बेहद चलन है. नासिक से त्र्यंबकेश्वर मंदिर तक का सफर 35 किलोमीटर का है. इस मंदिर में प्रवेश से पहले यात्री कुशावर्त कुंड में नहाते हैं. यहां हर सोमवार के दिन भगवान त्र्यंबकेश्वर की पालकी निकाली जाती है. मंदिर की नक्काशी बेहद सुंदर है. ये पालकी की कुशावर्त ले जाई जाती है और फिर वहां से वापस लाई जाती है. यहाँ पाए जाने वाले लिंग को आभूषित मुकुट (मुग्ध मुकुट) से सजाया गया है, जो पहले त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के सिर पर चढ़ाया जाता था। कहा जाता है की यह मुकुट पांडवो के ज़माने से चढ़ाया हुआ है और इस मुकुट में हीरे, जवाहरात और बहुत से कीमती पत्थर भी जड़े हुए है।भगवान शिव के इस मुकुट को हर सोमवार 4-5 PM के बीच लोगो को दिखाने के लिए रखा जाता है। भगवान शिव के दुसरे सभी ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव की ही मुख्य देवता के रूप में पूजा की जाती है। केदारनाथ का मंदिर पूरी तरह से काले पत्थरो से बना हुआ है। कहा जाता है की ब्रह्मगिरी के आकर्षक काले पत्थरो से इसका निर्माण किया गया है। गोदावरी नदी के उगम के तीनो स्त्रोतों की शुरुवात ब्रह्मगिरी पहाडियों से ही होती है।