जयपुर में स्थित जंतर मंतर भारत के सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है, जिसका निर्माण 18वीं सदी में महाराजा सवाई जय सिंह ने करवाया है । जयपुर का जंतर मंतर देश के पांच खगोलीय वेधशालाओं में सबसे विशाल है। यह भारत के मुख्य पर्यटकों एवं आर्कषण स्थलों में से भी एक हैं, जिसे अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व की वजह से यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया है। जयपुर के जंतर मंतर में विश्व की सबसे बड़ी पत्थर से बनी सूर्यघड़ी भी रखी गई है। यह ऐतिहासिक स्मारक भारत के खगोलीय एवं गणितीय कौशल का प्रतीक माना जाता है।
जयपुर का जंतर मंतर कब और किसने बनवाया था :
जयपुर के सिटी पैलेस के पास स्थित जंतर-मंतर का निर्माण जयपुर के संस्थापक एवं जानेमाने खगोलशास्त्री महाराजा सवाई जय सिंह ने 1724 से 1734 ईसवी के बीच में करवाया गया था।
अंतरिक्ष और समय की सही जानकारी प्राप्त करने के लिए राजा सवाई जय सिंह ने देश सबसे विशाल एवं अप्रितम वेधशाला का निर्माण करवाया था
उन्होंने इस विशाल वेधशाला के निर्माण से पहले विश्व के अलग-अलग देशों में अपने खगोलशास्त्र की जानकारी रखने वाले दूतों को भेजकर वहां से खगोल विज्ञान के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियां एकत्र की थी और अध्ययन के लिए सभी को अपने संग्रहालय में संरक्षित किया गया था।
जंतर मंतर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य :
मध्यकाल में बनी इस आश्चर्यजनक खगोलीय वेधशाला का निर्माण मुख्य रुप से समय मापने, एवं ग्रहों, तारों आदि की स्थिति जानने और अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए किया गया था
देश की पांच सबसे बड़ी वेधशालाओं में से एक जयपुर की यह उत्कृष्ट वेधशाला वास्तु खगोलीय उपकरणों का अद्भुत संग्रह है जिसका इस्तेमाल वर्तमान में भी गणना और शिक्षण के लिए किया जाता है
इसके अलावा इस खगोलीय वेधशाला का इस्तेमाल निरीक्षण करने समेत सूर्य के चारों ओर कक्षाओं का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है। आपको बता दें कि इस खगोलीय वेधशाला की कुछ रचनाएं पत्थर, संगमरमर और तांबे से भी बनाई गई हैं।
कितने क्षेत्र मे फैला है जंतर मंतर :
जयपुर में स्थित देश की विशाल वेधशाला करीब 18 हजार, 700 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। यहां पर रखे कई खगोलीय उपकरण भारत के खगोलीय ज्ञान और समृद्धता को दर्शाते हैं
इस भव्य खगोलीय वैधशाला का निर्माण में बेहद अच्छी गुणवत्ता वाले संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था, क्योंकि यह पत्थर धातु की तुलना में बेहतर तरीके से मौसम की स्थिति का पता लगाने में सक्षम होते हैं। देश के पांच प्रमुख वेधशालाओं में से एक जयपुर की जंतर – मंतर वैधशाला अपनी अद्भुत संरचना और ऐतिहासिक खगोलीय महत्व की वजह से वैश्विक धरोहरों की सूची में शामिल की गई हैं। जो कि अपने आप में अद्धितीय है
जंतर मंतर में खगोलीय उपकरण :
समय, मौसम एवं अंतरिक्ष संबंधी सही भविष्यवाणी करने के लिए दुनिया भर में मशहूर जयपुर की यह विशाल वेधशाला जंतर मंतर कई अलग-अलग खगोलीय उपकरणों का एक उत्तम संग्रह है। यहां 14 विशेष खगोलीय यंत्र रखे गए हैं, जो कि तारे एवं गति की स्थिति जानने, समय मापने, मौसम की स्थिति जानने, आकाशीय ऊंचाई का पता लगाने एवं ग्रहण की भविष्यवाणी करने समेत सौरमंडल की तमाम गतिविधियों की जानकारी हासिल करने में मद्द करते हैं।
यहां पर रखा राम यंत्र उस समय आकाशीय ऊंचाई मापने का प्रमुख यंत्र हुआ करता था। इसके अलावा इस वेधशाला में रखे स्थानीय पत्थर और संगमरमर से निर्मित सम्राट यंत्र स्थानीय समय को 2 सेकेंड की सटीकता तक माप सकता है।
यहां रखे गए खगोलीय उपकरणों में जय प्रकाश यंत्र भी शामिल हैं, जिसका इस्तेमाल स्वर्गीय स्मारकों की स्थिति को खोजने के लिए भी किया जाता है।
जंतर मंतर में कुल 14 यन्त्रों के नाम इस प्रकार है :–
- राम यन्त्र
- उन्नातांश यंत्र
- दिशा यन्त्र
- नाड़ीविलय यंत्र
- सम्राट यन्त्र
- जय प्रकाश यन्त्र (क)
- लघुसम्राट यंत्र
- पाषांश यंत्र
- शशि वलय यंत्र
- चक्र यंत्र
- दिगंश यंत्र
- ध्रुवदर्शक पट्टिका
- दळिणोदक यंत्र
- जयप्रकाश यंत्र
जंतर मंतर में विश्व की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी :
महाराजा सवाई जयसिंह ने निर्मित भारत की पांच सबसे विशाल वेधशालाओं में से एक जयपुर की जंतर-मंतर वेधशाला में विश्व में सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी रखी गई है, जो कि बृहत सम्राट यंत्र के नाम से भी जानी जाती है।
इस उपकरण की सबसे खास बात यह है कि यह ऐतिहासिक खगोलीय उपकरण समय की सटीकता को दर्शाता है, यह उपकरण 2 सेकेंड की सटीकता पर स्थानीय समय को प्रदर्शित करता है। इस खगोलीय उपकरण को इस तरह बनाया गया है कि इसकी रचना करीब 27 मीटर ऊंची है