मुहम्मद शब्द का अर्थ “सराहनीय” है और यह शब्द कुरान में कुल चार बार आया है। कुरान में मुहम्मद को बहुत सी पदवियो से नवाजा गया है, जिनमे मुख्य रूप से नबी, अल्लाह का गुलाम, दूत, बशीर, मुबश्शिर, शहीद, नाथिर, नूर, मुधाक्किर, और सिरजमुनिर शामिल है। कई बार मुहम्मद को अलग-अलग जगहों पर उनकी पदवियो से भी नवाजा गया है, जैसे की कुरान के 73:1 में उन्हें अल-मुज्ज़म्मिल और कुरान 74:1 में उन्हें अल-मुद्दथ्थिर से नाम से संबोधित किया गया है।
सूरा अल-अहज़ाब 33:40 में मुहम्मद को “नबी की मुहर” कहा गया था क्योकि मुस्लिम धारणाओ के अनुसार मुहम्मद इस्लाम धर्म के अंतिम नबी थे। कुरान में भी मुहम्मद को अहमद की तरह ही नवाजा गया है और उन्हें “सराहनीय” कहा गया है।
इस्लाम के संस्थापक पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्मदिन हिजरी रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख को मनाया जाता है। 571 ईस्वीं को शहर मक्का में पैगंबर साहब हज़रत मुहम्मद सल्ल. का जन्म हुआ था। मक्का सऊदी अरब में स्थित है।। अल्पायु में ही मुहम्मद अनाथ हो चुके थे। अनाथ होने के बाद उनकी देखभाल उनके चाचा अबू तालिब ने की थी। इसके बाद समय के साथ-साथ उन्होंने समाज को भी छोड़ दिया और हिरा नाम की पर्वत गुफा में जाकर कई रातो तक दुआ करते रहे। 40 साल की उम्र में कहा जाता है की गुफा में उनसे मिलने गब्रिअल आए थे, जहाँ उन्होंने बताया था की उन्हें तभी अल्लाह् का पहला रहस्य ज्ञात हुआ था। तीन साल बाद, 610 CE में, मुहम्मद ने इस रहस्य को समाज में पहुचाने का काम किया और “अल्लाह् एक ही है” इसका प्रचार करने लगे और तभी से लोग उन्हें अल्लाह द्वारा भेजा गया दूत कहने लगे थे, इस्लाम धर्म में उन्हें भगवान का ही दर्जा दिया जाता है।बाद में 40 साल की उम्र में कहा जाता है की गुफा में उनसे मिलने गब्रिअल आए थे, जहाँ उन्होंने बताया था की उन्हें तभी अल्लाह् का पहला रहस्य ज्ञात हुआ था। तीन साल बाद, 610 CE में, मुहम्मद ने इस रहस्य को समाज में पहुचाने का काम किया और “अल्लाह् एक ही है” इसका प्रचार करने लगे और तभी से लोग उन्हें अल्लाह द्वारा भेजा गया दूत कहने लगे थे, इस्लाम धर्म में उन्हें भगवान का ही दर्जा दिय
रहस्योद्घाटन (प्रत्येक को आयह के नाम से जाना जाता है, (अल्लाह के इशारे), जो मुहम्मद ने अपनी मृत्यु तक प्राप्त करने की सूचना दी, कुरान के छंदों का निर्माण किया, मुसलमानों द्वारा शब्द” अल्लाह का वचन “के रूप में माना जाता है और जिसके आस-पास धर्म आधारित है। कुरान के अलावा, हदीस और सीरा (जीवनी) साहित्य में पाए गए मुहम्मद की शिक्षाओं और प्रथाओं (सुन्नत) को भी इस्लामी कानून के स्रोतों के रूप में उपयोग किया जाता है
हजरत मुहम्मद की शादी 25 साल की उम्र में खदीजा नाम की विधवा से हुई. हजरत मुहम्मद की बेटी का नाम फतिमा और दामाद का नाम अली हुसैन है.पैगंबर मुहम्मद ने कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया.हजरत मुहम्मद की मृत्यु 8 जून 632 ई. को हुई. इन्हें मदीना में दफनाया गया.हजरत मुहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम शिया और सुन्नी दो पंथों में बंट गया. सुन्नी उन्हें कहते हैं जो सुन्ना में विश्वास रखते हैं. सुन्ना हजरत मुहम्मद के कथनों और कार्यों का विवरण है.शिया अली की शिक्षाओं में विश्वास रखते हैं और उन्हें हजरत मुहम्मद का उत्तराधिकारी मानते हैं. अली, हजरत मुहम्मद के दामाद थे। अली की सन 661 में हत्या कर दी गई थी. अली के बेटे हुसैन की हत्या 680 में कर्बला में की गई थी. इन हत्याओं ने शिया को निश्चित मत का रूप दे दिया.हजरत मुहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफा कहलाए. इस्लाम जगत में खलीफा पद 1924 ई. तक रहा. 1924 में इसे तुर्की के शासक मुस्तफा कमालपाशा ने खत्म कर दिया.इब्न ईशाक ने सबसे पहले हजरत मुहम्मद का जीवन चरित्र लिखा था. हजरत मुहम्मद के जन्मदिन को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के नाम से मनाया जाता है.
अल्लाह (ईश्वर) की एकता के प्रमाणन के बाद, मुहम्मद की भविष्यवाणी में विश्वास इस्लामी विश्वास का मुख्य पहलू है। हर मुस्लिम शहादा में घोषित करता है: “मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, और मैं प्रमाणित करता हूं कि मुहम्मद ईश्वर का संदेशवाहक हैं।” शहादा इस्लाम का मूल धर्म या सिद्धांत है। इस्लामी विश्वास यह है कि आदर्श रूप से शहादा पहला शब्द है जो नवजात शिशु सुनेंगे; बच्चों को तुरंत इसे पढ़ाया जाता है और इसे मृत्यु पर सुनाया जाएगा। मुसलमान प्रार्थना (सलात) और प्रार्थना के लिए कॉल (अज़ान में शाहदाह दोहराते हैं। इस्लाम में परिवर्तित करने की इच्छा रखने वाले गैर-मुसलमानों को इन पंक्तियों को पढ़ना आवश्यक है। इस्लामी विश्वास में, मुहम्मद को अल्लाह द्वारा भेजे गए अंतिम भविष्यवक्ता के रूप में जाना जाता है।
विदाई तीर्थयात्रा के कुछ महीनो बाद ही मुहम्मद बीमार पड़ गये और बहुत दिनों तक बीमारी से पीड़ित रहे। 8 जून 632 को 62 या 63 साल की उम्र में मदीना में उनकी मृत्यु हुई थी। मरने से पहले उन्होंने अपने अंतिम शब्द कहे, उनके अंतिम शब्द थे :
“ओह अल्लाह, अर-रफ़ीक अल-अल्लाह”
अर-रफ़ीक अल-अल्ला शायद अल्लाह को दर्शाता है। उन्हें उनके मृत्यु वाली जगह पर ही दफनाया गया था। उमय्यद कालिफ अल वालिद, अल-मस्जिद अन-नबावी (नबियो की मस्जिद) के शासनकाल के समय मुहम्मद के मकबरे का विस्तार किया गया। मकबरे के उपर के हरे गुंबद का निर्माण 13 वी शताब्दी में मामलुक सुल्तान अल मंसूर कालवून ने करवाया था, हालाँकि उसपर हरा रंग 16 वी शताब्दी में ओटोमन सुल्तान सुलेमान के शासनकाल में चढ़ाया गया था।
मकबरे से सटी हुई दो मीनारे भी है जो उनके दो साथी और पहले दो खलीफा अबू बकर और उमर को दर्शाती है। जब बिन सूद ने 1805 में मदीना को अपने कब्जे में कर लिया था तब मुहम्मद के मकबरे से सारा सोना और आभूषण चुरा लिये गये थे। अनुयायियों से वहाबी तक सूद के अनुयायियों ने मदीना में बने लगभग सभी मकबरों को ख़त्म कर दिया था। लेकिन कहा जाता है की सूद ने मुहम्मद के मकबरे को ऐसे ही छोड़ दिया था।