आपने मुंबई की मशहूर हाजी अली की दरगाह के बारे में तो सुना ही होगा और ये भी सुना होगा की समुन्दर चाहे कितने ही उफान पर हो पर ये दरगाह कभी नहीं डूबती। आखिर क्या रहस्य है इस दरगाह के साथ की बीच समुंद्र होते हुए भी ये पिछले करीब 600 सालों से अडिग है। इसे सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में सन 1431 में बनाया गया था. यह दरगाह मुस्लिम और हिन्दू समुदायों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है. यह मुंबई का महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल भी है । बाहरी दृश्य बहुत ही मनोहर है। समुद्र की नाचती लहरें आती हैं और मिट जाती हैं। स्टीमर लहरों पर सांप की तरह दौड़ते हैं। यहां हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सभी धर्मों के लोग घूमने व मुरादें लेकर आते हैं। हाजी अली एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और मुसलमानों का तीर्थ स्थल है। यह बम्बई के (हाजी अली) ग्रांट रोड उपनगर के समुद्र की गोद में स्थित है। इस दरगाह की बिल्डिंग संगमरमर के पत्थर से निर्मित है। यहां लोग देश विदेश से घूमने के लिए आते हैं। इस दरगाह में फिल्मों की शूटिंग भी होती है।
इस दरगाह में भारतीय इस्लामिक सभ्यता का अद्भुत समन्वय दिखाई पड़ता है। 4500 मीटर में फैली इस सफेद मस्जिद में 85 फीट उंचा टॉवर मुख्य वास्तुशिल्पीय आकर्षण है। मस्जिद के अंदर स्थित दरगाह जरीदार लाल और हरी चद्दर से ढकी रहती है। इसे चांदी के सूक्ष्म फ्रेम द्वारा मदद दिया गया है।दरगाह के अन्दर मजार के अलावा जगहों पर किस्म-किस्म के पुष्पों के हार और चादर की, साथ में नाना प्रकार की मिठाइयों की भी दुकानें लगी रहती हैं। जहां से फूल-मिठाई खरीद कर मजार पर रखे जाते हैं जिसकी फातिहा होती है। श्रद्धालु बाबा की उम्मती मजार पर बिछाई चादर को अदब से चूम कर दुआ मांगता है। पुन: रखे गए फूल-मिठाइयों के आधे अंश को वापस उठाकर उल्टे कदम मजार से बाहर निकल आता है। वापस लाई गई मिठाई को सिन्न कहते हैं।। मुख्य हाल में संगमरमर के स्तंभ बने हुए हैं जिसे रंगीन सीसे द्वारा सजाया गया है। इन स्तंभों पर 99 जगहों पर अल्लाह नाम लिखा गया है। हाजी अली बाबा से लोग अपनी मुरादें मांगने जाते हैं। जो सच्चे और नेक दिल से मांगता है, वह अवश्य पाता है। यह दरगाह समुद्र के बीच में स्थित है। आने-जाने के लिए मात्र एक पतला रास्ता है जिस पर हमेशा लोगों के आने-जाने की भीड़ लगी रहती है। दुकानदार भी इस रास्ते पर लगे रहते हैं। लाचार, मजबूर, अपंग, अपाहिजों की रास्ते के दोनों किनारों पर कतार लगी रहती है जो सिर्फ बुलंद आवाज में हाजी अली बाबा और अगाह को याद करते हैं।
मस्जिद की ज्यादातर संरचना खारे समुद्रीय हवाओं की वजह से क्षीण हो गयी है। जिस कारण समय -समय पर इसका पुर्ननिर्माण किया जाता है। आगे चलकर इस मस्जिद को मकराना संगमरमर पत्थरों से बनाया जायेगा जिससे कि ताजमहल का निर्माण किया गया है।
हाजी अली ट्रस्ट के अनुसार हाजी अली उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया का भ्रमण करते हुए भारत पहुंचे थे. ऐसा कहा जाता है कि हाजी अली बहुत समृद्ध परिवार से थे लेकिन उन्होंने मक्का की यात्रा के दौरान अपनी पूरी दौलत नेक कामों के लिए दान कर दी थी. उसी यात्रा के दौरान उनका देहांत हो गया था. ऐसी मान्यता है कि कि उनका शरीर एक ताबूत में था और वह समुद्र में बहते हुए वापस मुंबई आ गया. यहीं उनकी दरगाह बनवाई गई
स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित एक मस्जिद और दरगाह है.हाजी अली की दरगाह पर जाने के लिए मुख्य सड़क से एक पुल बना हुआ है. इस पुल की ऊंचाई काफी कम है और इसके दोनों ओर समुद्र है. दरगाह तक सिर्फ लो टाइड के समय ही जाया जा सकता है. बाकी समय में यह पुल पानी के नीचे डूबा रहता है.
Interesting Fact about Hazi ali in Hindi
हाजी अली बाबा की दरगाह को यदि देखना हो तो पर्यटकों को यहां गर्मी के मौसम में आना अति उत्तम साबित होगा, क्योंकि गर्मी में समुद्र का जल थोड़ा दरगाह से नीचे सरक जाता है और काले-काले समुद्री पत्थरों की चट्टानें दिखने लगती हैं जो अति सुन्दर लगती हैं। दूसरी बात, गर्मी में समुद्र की ठंडी-ठंडी पवन के हरहराते झंकोरे (वैसे झंकोरे सभी मौसम में रहते हैं।) से लिपट कर समुद्र की उठती गिरती लहरों का आनंद लेते हुए समुद्र में स्नान करना चित्त विभोर कर देगा।
दरगाह की विशेष बातें:-
- दरगाह में सजावट के वृक्ष भी लगाए गए हैं जो सुन्दरता बढ़ाने के साथ-साथ लोगों के मन्नतों के धागे बांधने का भी कार्य करते हैं अर्थात् लोग उन वृक्षों के तने में अपनी मन्नत के धागे बांध कर चले जाते हैं।
- मन्नत पूर्ण होने पर दोबारा आकर धागा खोलते हैं। वृक्ष के तने में इतना धागा बांधा गया है कि कच्चा धागा कैसे पहचान में आएगा, इसलिए उन बंधे धागों में से कोई भी एक धागा खोल दिया जाता है।
- जहां एक तरफ बाबा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ जमी रहती है वहीं दूसरी ओर मौलवी-मौलानों के कुरान-तेलावत की महफिल लगी रहती है।।
- यहां खैरात किए गए पैसों की गिनती नहीं की जाती बल्कि उन्हें झन्ने से चाला जाता है जो क्रमानुसार एक रुपया, दो रुपया, पचास पैसा के सिक्के अलग किए जाते हैं।
- इस धन राशि को अलग करके, बोरे में भर कर, सिलाई मार कर छगा दिया जाता है, बनिए के गल्ले के समान।
- यदि आप पर्यटन के शौकीन हैं तो एक बार अवश्य हाजी अली बाबा की दरगाह का दीदार करें।