ताजमहल दुनिया के सात अजूबों में गिना जाता है। आगरे के ताज महल को प्रेम का प्रतीक माना जाता है । शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में ताज महल बनबाया था । जिस समय इस शहर का निर्माण हो रहा था तब किसी ने सोचा तक नहीं था के यह शहर भविष्य में इतना लोकप्रिय होगा और इसका नाम दुनिया के सात अजूबों गिना जायेगा।
1- रंग बदलना – ताजमहल दिन में तीन बार रंग बदलता है सुबह के समय यह थोड़ा गुलाबी नजर आता है, दोपहर के समय सफेद और शाम के समय सुनहरा नजर आता है।
2- बेशकीमती पत्थर – ताजमहल की सुंदरता में चार चाँद लगाने के लिए उसको 28 प्रकार के बेशकीमती पथ्तरों से सजाया गया था यह पत्थर चीन, तिब्बत और श्रीलंका से लाए गए थे परन्तु उन पत्थरो को अंग्रजो द्वारा चुरा लिया गया
3- मुमताज के साथ दफन है पांच और बेगम – ताजमहल जो की संगमरमर का हुआ है इसमें मुमताज और शाहजहाँ की कब्र है पर ताजमहल के पुरे परिसर में 6 कब्र है इन कब्रों को सहेली बुर्ज के नाम से जाना जाता है ।
4- ऊचाई – ताजमहल की ऊंचाई कुतुबमीनार से भी 4.5 फ़ीट ऊँची है।
5- काला ताजमहल – शाहजहाँ खुद को मुमताज की परछाई मानते थे इसीलिए वह ताजमहल के ठीक पीछे काला ताजमहल बनवाना चाहते थे पर इससे पहले उसे उसके बेटे औरंगजेब में कैद कर लिए और यह एक सपना रह गया
6- यमुना पर ताजमहल – क्या आप जानते है अगर यमुना नदी न होती तो ताजमहल भी न होता कयोंकि इसमें इस प्रकार की लकड़ी का प्रयोग किया गया है जो पानी मिलने पर ही मजबूत होती है।
7- बहुमूल्य भी है ताजमहल :अपने शानदार आर्किटेक्ट के चलते ही नहीं बल्कि अपनी लागत के चलते भी ताजमहल बेशकीमती है। इसे लगभग 22 बाद 1653 में इसका निर्माण पूरा हुआ था। इस बीच इसको बनवाने में उस समय 32 लाख रुपये का खर्च आया था जो आज के पैसों की कीमत में 1 करोड़ डॉलर के लगभग होता है।
8-हजारों लोगों को मिला काम :इस विश्व प्रसिद्ध इमारत का डिजाइन अहमद लाहौरी ने तैयार किया था और बनाने में हजारों मजदूरों को योगदान था। मजदूर, पत्थरतराश, चित्रकार और कैलीग्राफर सहित 20,000 लोगों ने इसके निर्माण के लिए दिनरात काम किया था। इसके अलावा विश्व भर से निर्माण सामग्री मंगवाने और ढुलाई के लिए करीब 1000 हाथियों को भी काम पर लगाया गया था।
9 – ताजमहल के निर्माण में तीन ओर लाल बलुआ पत्थर से बनीं उसकी रक्षा दीवारें को छोड़ कर बाकी सारी जगह सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया था। इसके लिए राजस्थान, अफगानिस्तान, तिब्बत और चीन से संगमरमर मंगाया गया। इतना ही नहीं इमारत को सजाने के लिए लाजावर्त जैसे बेशकीमती जवाहरातों और कीमती रत्नों का इस्तेमाल किया गया था।
10- पत्थरों पर उकेरे गए वाक्य और खुदा के नाम :ताजमहल के अंदर बाहर कई पवित्र वाक्यों और कविताओं को दीवारों और खंभों पर उकेरा गया है। इसके मुख्य गुंबद पर अल्लाह के 99 वें नामों की कैलीग्राफी की गई है, क्योंकि शाहजहां चाहता था कि उसकी चहीती बेगम मौत के बाद खुदा की पाक पनाह में रहे।
11 -ताज पर भी हुआ था हमला1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ताजमहल को आक्रमण भी सहना पडा़ था। आक्रमणकारियों ने इसके बहुमूल्य पत्थर और रत्न, जैसे लाजावर्त को खोद कर निकाल लिया था। जिसके बाद 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश वाइसरॉय जॉर्ज नैथैनियल कर्ज़न ने इसके पुननिर्माण की एक वृहत प्रत्यावर्तन परियोजना आरंभ की जो 1908 में पूरी हुई। उसने ताज के आंतरिक कक्ष में एक सा चिराग भी रखवाया, जो काहिरा में स्थित एक मस्जिद से मिलता जुलता है। इसी समय यहाँ के बागों को ब्रिटिश शैली में बदला गया था। वही आज तक बना हुआ है।
12 -ताजमहल क्या तेजो महालय है :ताजमहल एक शिव मंदिर तेजो महालय और एक रातपूत महल था जिसे राजा परमार देव ने बनवाया था, ऐसा दावा लेखक पीएन ओक ने अपनी किताब में किया था। तभी से इस बारे में काफी विवाद शुरू हो गया। हालांकि ओक की इस आधार पर 2000 में की गई याचिका को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
13- ‘महल’ शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। :अरब, ईरान, अफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो। यह भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा, क्योंकि उनकी बेगम का नाम था मुमता-उल-जमानी। यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।
14- मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वार आदि को तोड़कर उसको लूटा। यह महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था और इसके तीन गुम्बद हुआ करते थे। हिन्दुओं ने उसे फिर से मरम्मत करके बनवाया, लेकिन वे ज्यादा समय तक इस महल की रक्षा नहीं कर सके।
15 -वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है। ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम ‘तेजोमहालय’ पड़ा था।
16- ताजमहल के उद्यान में काले पत्थरों का एक मंडप था, यह एक ऐतिहासिक उल्लेख है। उसी में वह संस्कृत शिलालेख लगा था। उस शिलालेख को कनिंगहम ने जान-बूझकर वटेश्वर शिलालेख कहा है ताकि इतिहासकारों को भ्रम में डाला जा सके और ताजमहल के हिन्दू निर्माण का रहस्य गुप्त रहे। आगरे से 70 मिल दूर बटेश्वर में वह शिलालेख नहीं पाया गया अत: उसे बटेश्वर शिलालेख कहना अंग्रेजी षड्यंत्र है।
17- जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊंची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाए गए हैं। ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है। वहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है।
18- ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दीये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। ताजमहल की चारों मीनारें बाद में बनाई गईं।
19- नदी तट के भाग में संगमरमर की नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहजहां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को, जिन्हें कि शाहजहां ने अतिगोपनीय बना दिया है, भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिन्दू चित्रकारी अंकित हैं।
20 -इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजे बने हुए हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है कि वे दीवार जैसे प्रतीत हों।