त्याग मानव देह से निकलने वाला एक ऐसा भाव जिसकी कीमत आज तक तय नही हो पाई है। ये वो भाव है जो इंसान को कैसी भी विकट परिस्थिति मे भी उसको जीत दिला देता है। वैसे तो इतिहास त्याग की कहानियों से भरा हुआ है , लेकिन जिस वीरांगना की बात हम यहां कर रहे हैं इससे बड़ा त्याग ना कभी किसी ने दिया, ना कोई दे सकता है।
यह वीरगाथा राजस्थान की एक ऐसी रानी की है जिसने अपने पति को विजय की ओर प्रेरित करने के लिए एक ऐसा बलिदान दिया जिसे करना तो दूर सोचना भी शायद मुमकिन नहीं। सच्ची देशभक्ति और राष्ट्र प्रेम, बलिदान की आपने कई कहानियां सुनी होंगी, लेकिन कोई अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए अपना मस्तक ही काटकर पेश कर दे…. ताकि वह अपनी नई-नवेली दुल्हन के मोह माया को भूलकर अपने राष्ट्र धर्म को पूरी तन मन से निभाये।
★ कौन है हांडा की रानी :—–
हाड़ा नाम के राज्य के राजा की बेटी जो विवाह के बाद उदयपुर (मेवाड़) के सलुम्बर के सरदार राव हाड़ी सरदार चूड़ावत की रानी बनी। बाद में इन्हें इतिहास में हाड़ी रानी के नाम से जाना गया।
★ क्या है कहानी :—-
कहानी कुछ इस तरह है कि हाड़ी रानी के विवाह को अभी केवल 7 ही दिन हुए थे, हाथों की मेंहदी भी नहीं छूटी थी कि दुश्मनों ने उनके राज्य पे हमला कर दिया , इससे राजा को युद्ध के लिए युद्धभूमि मे जाना पड़ा। राणा राजसिंह ने हाड़ी सरदार के मित्र शार्दूल के हाथों पत्र भिजवाया था जिसमें औरंगजेब की सेना को रोकने का आदेश था। पत्र पढ़कर हाड़ी सरदार का मन व्यथित हो गया। अभी उनके विवाह को सात दिन ही हुए थे और पत्नी से बिछड़ने की घड़ी आ गई थी। कौन जानता था कि युद्ध में क्या होगा। एक राजपूत रणभूमि में अपने शीश का मोह त्याकर उतरता है और जरूरत पड़ने पर सिर कटाने से भी पीछे नहीं हटता। औरंगजेब की सेना तेजी से आगे बढ़ रही थी, इसलिए पत्र मिलते ही हाड़ी सरदार भारी मन से रानी से विदा लेने पहुंचे। रानी को भी यह खबर सुनकर सदमा लगा पर उसने खुद को संभाल लिया।
★ राजा को रानी ने युद्ध के लिए विदा किया :–
वीर की पत्नी होने का अपना फर्ज निभाते हुए उसने रणभूमि के लिए कूच करने को तैयार अपने पति की विजय कामना के साथ आरती उतारी। ऐसा करते हुए उसका अंतर्मन भी कहीं व्याकुल हो उठा, लेकिन पति की आंखों के कोरो पर छुपी अश्रु की बूंदें भी उससे छिपी नहीं रह सकी।
एक राजपूतानी स्त्री के लिए युद्ध के लिए निकलते अपने पति को ऐसे देखना चिंता का विषय था। हाड़ी सरदार को अपने ओर से दुविधा और चिंता-मुक्त करने के लिए उसने कहा कि वे निश्चिंत होकर युद्ध पर जायें और उसके बारे में ना सोचें। पर हाड़ी सरदार का मन आशंकित था कि अगर उसे कुछ हो गया तो रानी का क्या होगा।
★ राजा को हुई रानी की चिंता :——-
उसने आशंकित होकर अपनी पत्नी से पूछा कि अगर मैं जीवित नहीं लौटा तो कहीं तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगी? रानी ने कहा, “ मैं एक वीरपूतानी हूं । अपना धर्म अच्छी तरह जानती हूं। मैं यहीं आपका इंतजार करुंगी। आप बेफिक्र होकर जायें।”
पर राजा हाड़ी सरदार को यह निश्चिंत ना कर सका। मन में पत्नी का मोह लिए वह अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए विदा हुए। उनके मन में यही खेद था कि पत्नी को कोई सुख नहीं दे पाए, इसलिए कहीं पत्नी उन्हें भुला न दे।
★ राजा ने रानी को पत्र लिखा और वापस आने का भरोसा दिया :——-
आखिर हाड़ी सरदार से रहा न गया। आधे मार्ग से उन्होंने पत्नी के पास एक संदेश वाहक भेज दिया। पत्र में लिखा था कि प्रिय, मुझे मत भूलना। मैं जरूर लौटकर आउंगा। मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है। अगर संभव हो तो अपनी कोई प्रिय निशानी भेज देना। उसे ही देखकर मैं अपना मन हल्का कर लिया करुंगा।
★ पत्नी को चिंता हो गयी पति के मोह की:——
पत्र पढ़कर हाड़ी रानी सोच में पड़ गयी। अगर उनका पति इसी तरह मोह से घिरा रहा तो शत्रुओं से कैसे लड़ेंगे। अचानक उनके मन में एक विचार आया। उन्होंने संदेशवाहक को अपना एक पत्र देते हुए कहा, “मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी दे रही हूं। इसे थाल में सजाकर सुंदर वस्त्र से ढककर मेरे वीर पति के पास पहुंचा देना, किन्तु याद रखना कि उनके सिवा इसे कोई और न देखे।”
हाड़ी रानी के पत्र में लिखा था, “प्रिय, मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं। तुम्हें मेरे मोह के बंधनों से आजाद कर रही हूं। अब बेफ्रिक होकर अपने कर्तव्य का पालन करना। मैं स्वर्ग में तुम्हारी बाट जोहूंगी।”
★ रानी ने वो किया जो किसी ने नही किया :—-
पत्र संदेशवाहक को देकर हाड़ी रानी ने अपनी कमर से तलवार निकाली और एक ही झटके में अपना सिर धड़ से अलग कर दिया।
संदेश वाहक की आंखों से आंसू निकल पड़े। स्वर्ण थाल में हाड़ी रानी के कटे सिर को सुहाग के चूनर से ढककर संदेशवाहक भारी मन से युद्ध भूमि की ओर दौड़ पड़ा। उसको देखकर हाड़ा सरदार ने पूछा, “क्या तुम रानी की निशानी ले आए?” संदेशवाहक ने कांपते हाथों से थाल उसकी ओर बढ़ा दिया।
★ राजा ने किया अपने मोह का त्याग:——
हाड़ी सरदार फटी आंखों से पत्नी का सिर देखता रह गया। उसके मोह ने उससे उसकी सबसे प्यारी चीज छीन ली थी। अब उसके पास जीने को कोई औचित्य नहीं बचा था। उसने मन ही मन कहा , “प्रिये, मैं भी तुमसे मिलने आ रहा हूं।”
हाड़ा सरदार शत्रुओं पर टूट पड़ा। उसने अपनी अंतिम सांस तक औरंगजेब के सैनिकों को आगे नहीं बढ़ने दिया लेकिन इस जीत का श्रेय केवल उसके शौर्य को नहीं, बल्कि रानी के उस बलिदान को भी जाता है जो अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा बलिदान और अविस्मरणीय है।