गुजरात के पंचमहाल जिले में स्थित है पावागढ़ पर्वत। इस पर्वत की तलहटी पर है महाकाली माता का मंदिर, इसी कारण इसीलिए पूरे गुजरात में यह स्थान महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां हमेशा पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। एक मान्यता के अनुसार पावागढ़ पर्वत स्थल माताजी की शक्तिपीठों में शुमार होता है। पर यहां महाकाली मंदिर के अलावा यहां ऐसा बहुत कुछ है, जिसे देखकर स्वयं को धन्य समझते हैं। एक दो दिन का वेकेशन हो, तो यह स्थान बहुत ही उपयुक्त है। यहां की तस्वीरों से ही पता चलता है कि यहां प्रकृति ने किस तरह से अपनी छटा बिखेरी है। जिंदगी जीने का संदेश देता है यहां का प्राकृतिक सौंदर्य।
क्या क्या है पावागढ़ पर्वत पे : पावागढ़ का ढलान स्टेशन ज्वालामुखी शंकु पर आधारित था। लगभग 500 मिलियन वर्ष पहले यहां एक ज्वालामुखी उत्सर्जन हुआ था।
कहाँ है पावागढ़ पर्वत : पावागढ़ का ढलान चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क है, जो 1,329 हेक्टेयर 3,280 से अधिक भूमि के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह स्थल वडोदरा से 50 किलोमीटर 31 मील पूर्व और गोधरा से 42 मील 68 किमी दक्षिण में है। ढलान एक दक्षिणी अरावली श्रेणी का अपवाद है, जिसमें घेरने वाले खेतों पर 800 मीटर 2,600 फीट की ऊंचाई है।
इस जगह का नाम इसलिए पड़ा पावागढ़: –
प्राचीन काल में इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव थी। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ बहुत ज्यादा रहता है, इसलिए इसे पावागढ़ कहते हैं यानी ऐसी जगह जहां पवन (हवा) का वास हमेशा एक जैसा हो उसे कहा जाता है।
पावागढ़ की पहाड़ियों के नीचे चंपानेर नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। 1471 फीट की ऊंचाई पर माची हवेली है। मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा उपलब्ध है। फिर वहां से पैदल मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी पढ़ती हैं।
मंदिर का महत्व, क्यों बना शक्तिपीठ:
देवी पुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ में शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण माता सती ने योग बल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड में भटकते रहे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े कर दिये। उस समय माता सती के अंग, वस्त्र तथा आभूषण जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए। पावागढ़ पर सती का वक्षस्थल गिरा था। जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहां दक्षिण मुखी काली देवी की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति यानि तांत्रिक पूजा की जाती है।
पावागढ़ का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व भी है। यह मंदिर श्रीराम के समय का है। इसको शत्रुंजय मंदिर’ कहा जाता था। यह भी माना जाता हैं कि मां काली की मूर्ति विश्वामित्र ने ही स्थापित की थी। यहां बहने वाली उन्हीं के नाम पर है विश्वामित्री पड़ा। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम, उनके बेटे लव और कुश के अलावा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था