मेंडल ने आनुवंशिकता के नियम प्रतिपादित किये थे। इस नियम के अनुसार बच्चों में उनके मां बाप या किसी रिश्तेदार के गुण पाये जाते है। मेंडल का प्रयोग इस बात पर आधारित था कि जीव जंतुओं में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक गुण कैसे जाते है और सन्तान में इन गुणों के लक्षण कैसे दिखाई देते है।
मेंडल का जन्म ऑस्ट्रिया में 20 जुलाई, 1822 को हुआ था। उनका परिवार जर्मन भाषी था। जॉन मेंडल कृषि भी किया करते थे जो उनका पुश्तेनी कार्य था। परिवार की आर्थिक हालात बहुत खराब थी लेकिन उन्होंने फिर भी पढ़ाई नही छोड़ी। मेंडल पेशे से एक पादरी भी थे जो बच्चों को प्रकति विज्ञान पढ़ाते थे। ग्रेगर जॉन मेंडल बच्चों को पढ़ाने के साथ ही रिसर्च भी किया करते थे।
उन्हें खगोल-विज्ञान में रुचि थी परंतु घर की हालत सही न होने के कारण उन्हें अपने पिता के काम मे हाथ बटाना पड़ा। मेंडल का घरेलू काम मे मन नही लगता था उसके बाद उन्होंने 1841 में दो साल के एक कोर्स में दाख़िला ले लिया। यहां, मेंडल को भौतिक विज्ञान और गणित के महत्व का एहसास हुआ; साथ-साथ उनमें पौधों के बारे में पढ़ने का शौक भी पैदा हुआ. उनके जीवन के सर्वश्रेष्ठ काम में उन्होंने गणित और पौधों का एक ऐसा मिलान किया जिससे उनका नाम हमेशा अमर रहेगा.
मेंडल के दिमाग में एक विचार आया की ” एक पीढ़ी के लक्षण दूसरी पीढ़ी में कैसे जाते है”। उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए चूहों पर पर अपना अनुसन्धान शुरू किया था लेकिन चर्च में इस तरह के प्रयोग करने की मनाही थी। इसलिए मेंडल ने मटर के पौधे को अपने प्रयोग के लिए चुना था। इस रिसर्च में उन्होंने मटर के पौधों के बीच में संकरण करवाया था। इसमें वो अलग अलग गुणों वाले पौधे लेते थे और उनमें प्रजनन करवाते थे।
मेंडल ने प्रयोग के दौरान देखा कि कुछ पौधे के
फूल सफेद और कुछ के फूल जामुनी होते है। आखिर इनमें ऐसा क्या है कि फुलो के रंग निर्धारित होते है। मेंडल को अपनी इस महान खोज के लिए कई वर्षों तक मान्यता नही मिली थी। बाद में इनके नियमों को स्वीकार किया गया था। मेंडल ने अपनी रिसर्च में यह पाया कि दो गुणों में से एक गुण ज्यादा प्रभावी होता है। यह प्रभावी गुण पौधे की अगली नस्लों में जाता है। दूसरा गुण कम प्रभावी होता है जो अगली नस्ल में दिखाई नही पड़ता है।
आनुवंशिकता के जन्मदाता मेंडल का निधन 6 जनवरी 1884 को हुआ था । मौत के बाद चर्चित हुए मेंडल
मेंडल को प्रसिद्धि मौत के 18 साल के बाद मिली। 1902 में एक ही शोध पत्रिका में तीन विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों के शोध निबंध प्रकाशित हुए। ये वैज्ञानिक थे हॉलैंड के प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री ह्यूगो डी व्रिज, जर्मनी के कार्ल कॉरेंस और आस्ट्रिया के एरिक वॉन। आश्चर्यजनक रूप से तीनों निबंध आनुवांशिकता के उन्हीं बुनियादी और मात्रात्मक नियमों के बारे में थे जिसके बारे में ग्रिगोर मेंडल 37 वर्ष पहले ही लिख चुके थे। इन तीनों वैज्ञानिकों ने मेंडल के आनुवंशिकता के नियमों को स्वतंत्र रूप से दोबारा खोज निकाला था। जिसके बाद मेंडल पुनर्जीवित हो उठे थे।