फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था और उनका जन्म 28 अगस्त 1896 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। एक प्रसिद्ध उर्दू कवि और आलोचक थे । उनके पिता प्रशंसित कवि और गोरखपुर के अग्रणी अधिवक्ता थे। उन्होंने अपने पिता से ही उर्दू, फ़ारसी और संस्कृत में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की ।
★ फ़िराक़ का व्यक्तिगत जीवन ★
बहुत ही कम उम्र में उनकी शादी हो गई थी। वह केवल 18 साल के थे जब उनका किशोरी देवी के साथ विवाह हुआ था । अपने व्यक्तिगत जीवन में, वह एक दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्ति थे क्योंकि वह अपनी शादी के कुछ वर्षों के भीतर ही अपनी पत्नी से अलग हो गए थे। उनके इकलौते बेटे ने बहुत कम उम्र में आत्महत्या कर ली थी। वह विश्वविद्यालय परिसर में 40 से अधिक वर्षों तक अकेले रहते थे।
◆ फ़िराक़ की शिक्षा दीक्षा ◆
उन्होंने अपनी बुनियादी शिक्षा पूरी की । उन्होंने 1917 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उन्होंने उर्दू, फारसी और अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री पूरी की। 1919 में सिविल सेवा के लिए नामांकित हुए। अन्य क्रांतिकारियों की तरह उन्हें भी ब्रिटिश राज मे नौकरी करना गवारा नही था फिर उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आंदोलन में पूरी तरह से शामिल होने का फैसला किया। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन के लिए उन्हें 1920 में जेल भी हुई थी। 1922 में अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने सचिव के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में काम किया। उन्हने 40 साल तक बाद में, उन्होंने अपने पेशे के रूप में अध्यापन को चुना और 1959 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए।
★ सम्मान और पुरस्कार ★
भारत सरकार ने उन्हें उनके साहित्यिक कार्यों की मान्यता में पद्म भूषण से सम्मानित किया। उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और उर्दू में 1960 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया। अपने जीवन के दौरान, उन्हें ऑल इंडिया रेडियो द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और निर्माता एमेरिटस में अनुसंधान प्रोफेसर के पद दिए गए।
★ फिराक़ का साहित्यिक सफ़र ★
उनका लंबा और समृद्ध काव्य कैरियर 60 वर्षों में फैला, जिसमें उन्होंने 40,000 से अधिक दोहे लिखे और उन्हें आधुनिक उर्दू दुनिया में सबसे प्रमुख व्यक्ति के रूप में स्थान दिया गया। फिराक ने उर्दू शायरी में उत्कृष्टता के शुरुआती संकेत दिखाए थे और हमेशा साहित्य के प्रति आकर्षण दिखाया था। उनके समकालीनों में अल्लामा इकबाल, फैज अहमद फैज, कैफी आजमी और साहिर लुधियानवी जैसे प्रसिद्ध उर्दू कवि शामिल थे। फिर भी वे कम उम्र में ही उर्दू शायरी में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। उन्होंने अपनी अधिकांश उर्दू कविताएँ लिखीं, जिसमें उनका मैगनस ओप्सन गुल-ए-नगमा भी शामिल है । गोरखपुरी ग़ज़ल, नज़्म, रूबाइयाद क़ता’आ जैसे सभी पारंपरिक मीट्रिक रूपों में पारंगत थे। उन्होंने उर्दू कविता के एक दर्जन से अधिक संस्करणों, उर्दू गद्य के आधा दर्जन से अधिक, हिंदी में साहित्यिक विषयों पर कई संस्करणों के साथ-साथ साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों पर अंग्रेजी गद्य के चार खंड लिखे।
लंबी बीमारी के बाद, 3 मार्च 1982 को नई दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई।