एडवर्ड जेनर एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे। विश्व में उनका नाम इसलिए भी प्रसिद्ध है कि इन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार किया था। एडवर्ड जेनर के इस आविष्कार से आज करोड़ों लोग चेचक जैसी घातक बीमारी से ठीक हो रहे हैं और अपने जीवन का आनन्द ले रहे हैं।
एडवर्ड जेनर का जन्म 17 मई सन् 1749 को बर्कले में हुआ । वे अंग्रेजी डॉक्टर तथा चेचक के टीके के खोजकर्ता थे।उनके पिता, रेवरेंड स्टीफन जेनर, बर्कले के पादरी थे, इनके पिता पादरी थे जिस कारण इनका शिक्षा बहुत अच्छे से हुई और वो पढ़ाई मे काफ़ी मजबूत थे।
◆ एडवर्ड का शुरुआती पढ़ाई लिखाई ◆
जेनर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 13 वर्ष की उम्र में ब्रिस्टल के पास सडबरी नामक एक छोटे से गांव में की और इसके बाद उन्होंने लंदन के सर्जन जॉन हंटर की देखरेख में 21 वर्ष की आयु तक अध्ययन किया। सन् 1792 में ऐंड्रय्ज कालेज से एम डी की उपाधि प्राप्त की।
◆ चेचक के टीके की खोज ◆
यदि एडवर्ड जेनर नहीं होते तो आज सम्पूर्ण दुनिया के 1.5 करोड़ लोग प्रतिवर्ष सिर्फ़ चेचक की वजह से मर जाते | अठारहवीं सदी में चेचक के महामारी दुनिया भर में, विशेष रूप से यूरोप में फैली हुई थी| इस समय एक ब्रिटिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर, ने इन रोगियों के इलाज के बारे में सोचा| उन्होंने ध्यान दिया की वे दूधवाले जिन्हें कभी गायों में पाया जाने वाला चेचक (cowpox) हुआ था, वे चेचक से बहुत कम प्रभावित होते थे| उन्होंने गायों में पाए जाने वाले चेचक का अध्ययन किया|
उन्होंने चेचक से पीड़ित गाय के थन के छालों में से एक तरल निकला, और उसे एक लड़के के शरीर में इंजेक्ट कर दिया| लड़का कुछ समय तक बुखार से पीड़ित रहा, परन्तु वह जल्दी ही ठीक हो गया| जेनर ने तब एक और साहसिक प्रयोग करने का निश्चय किया, और उन्होंने चेचक से पीड़ित व्यक्ति के शरीर के छालों में से थोडा तरल लेकर उस लड़के के शरीर में इंजेक्ट कर दिया, अब यह लड़का चेचक से पीड़ित नहीं हुआ|
तब जेनर ने इस प्रयोग को अपने रोगियों को चेचक से बचाने के लिए किया| इसके बाद उनके इन तरीकों से ही टीकों को बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ, और मानव जाति को कई जानलेवा महामारियों से मुक्ति मिली| चेचक (smallpox) दुनिया भर में अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका है| इसका श्रेय एडवर्ड जेनर को ही जाता है|
इन्होंने चेचक के टिके का अविष्कार इंग्लैंड में प्रचलित एक मान्यता के अनुसार की थी – मान्यता थी की जिसे (cowpox) हो चुकी है उसे चेचक नहीं हो सकती हैं’ इसी को आधार मानकर जेनर ने चेचक के टिके का अविष्कार किया। शीतला-काउ की बीमारी गायो के थनों पर पड़ता है और जो भी इस रोग से पीड़ित गाय का दूध दुहता है उसे यह बीमारी हो जाती है इस रोग से छोटे छोटे घाव-फुंसियां हाथों में हो जाती है लेकिन रोगी को कोई विशेष कष्ट नहीं होता।सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल, लंदन में अपना परिक्षण पूरा करने के बाद जेनर अपने गांव आ गए और अपनी प्रेक्टिस शुरु कर दी। कई वर्षों बाद जब उन्होंने चेचक की भयानकता का अनुभव किया। तभी उन्होंने शीतला-काउ बीमारी का कथन सुना। इसके बाद जेनर ने इस कथन का परीक्षण करने का निश्चय किया। उन्होंने एक गौ-शीतला से पीड़ित व्यक्ति के घाव से कुछ द्रव लिया और उसे एक पांच साल के जेंमस फिप्स नामक बच्चे को इंजेक्शन लगा दिया। बच्चे को गौ-शीतला का हल्का-सा प्रकोप हो गया। उसे 7 सप्ताह बाद जेनर ने एक व्यक्ति के घाव से जिसे चेचक निकली हुई थी, कुछ पस लेकर उस लड़के को इंजेक्शन लगा दिया। इस लड़के को चेचक निकलने की कोई शिकायत न हुई। सन् 1803 में चेचक के टीके के प्रसार के लिये रॉयल जेनेरियन संस्था स्थापित हुई। इनके कार्यों के उलक्ष्य में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने इन्हें एमo डीo की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। सन् 1822 में ‘कुछ रोगों में कृत्रिम विस्फोटन का प्रभाव’ पर निबंध प्रकाशित किया और दूसरे वर्ष रॉयल सोसाइटी में ‘पक्षी प्रव्राजन’ पर निबंध लिखा। 26 जनवरी 1823 को बर्कले में इनका देहावसान हो गया एडवर्ड जेनर ने जन समुदाय के आरोपों की ओर ध्यान देना छोड़ दिया | उन्होंने चेचक के रोग की चिकित्सा ढूंढने का यत्न किया और इस कार्य के लिए वे गौ-शीतला से ग्रस्त रोगियों से उसका द्रव एकत्रित करने में अपना समय बिताने लगे | इस प्रकार उस द्रव से जेनर ने चेचक रोधी इंजेक्शन का आविष्कार किया जो सफल सिद्ध हुआ और धीरे धीरे जेनर की यशोगाथा सर्वत्र विस्तार प्राप्त करने लगी | लोग चेचक के प्रकोप से बचने के लिए उनके द्वारा आविष्कारित टीके लगाने लगे | टीके का अविष्कार हो जाने पर विश्वभर में उसके टीके लगाये जाने लगे और जेनर के अविष्कार की ख्याति होने लगी | उसके बाद अनेक देशो ने उन्हें सम्मानित किया | सन 1802 और सन 1806 में ब्रिटिश संसद ने जेनर को बहुत सारा धन देकर सम्मानित किया था | एडवर्ड जेनर द्वारा आविष्कारित चेचक के टीके का यह परिणाम है कि आज विश्व के लगभग सभी देशो ने चेचक जैसी भयंकर घातक रोग से मुक्ति पा ली है |
◆ सम्मान और पुरस्कार ◆
इनके खोजो को देखते हुए आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने इन्हें एमo डीo की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया।
◆ इनके द्वारा लिखे गए निबंध ◆
सन् 1822 में ‘कुछ रोगों में कृत्रिम विस्फोटन का प्रभाव’ पर निबंध प्रकाशित किया और दूसरे वर्ष रॉयल सोसाइटी में ‘पक्षी प्रव्राजन’ पर निबंध लिखा।
◆ निधन ◆
साल 1823 के प्रथम मास में जनवरी 26 को बर्कले में इस महान अविष्कारक की जीवन लीला समाप्त हो गयी अब जबकि एडवर्ड जेनर विश्व में जीवित नही है। वे अपने अविष्कार के कारण वे सदा सदा के लिए इस संसार में जीवित रहेंगे . उनकी यशोगाथा जीवित रहेगी