भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे। राम मनोहर लोहिया को भारत एक अजेय योद्धा और महान् विचारक के रूप में देखता है। देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख़ बदल दिया जिनमें एक थे राममनोहर लोहिया।
★ लोहिया का बचपन और प्रारंभिक जीवन : राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था. उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उनकी मां चन्दा देवी एक शिक्षिका थीं. जब वे बहुत छोटे थे तभी उनकी मां का निधन हो गया था. अपने पिता से जो एक राष्ट्रभक्त थे, उन्हें युवा अवस्था में ही विभिन्न रैलियों और विरोध सभाओं के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने की प्रेरणा मिली. उनके जीवन में नया मोड़ तब आया, जब एक बार उनके पिता, जो महात्मा गांधी के घनिष्ठ अनुयायी थे, गांधी से मिलाने के लिए राम मनोहर को अपने साथ लेकर गए. राम मनोहर गांधी के व्यक्तित्व और सोच से बहुत प्रेरित हुए तथा जीवनपर्यन्त गाँधी जी के आदर्शों का समर्थन किया.
● लोहिया की पढ़ाई लिखाई : उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद इंटरमीडिएट में दाखिला बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कराया. उसके बाद उन्होंने वर्ष 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और पीएच.डी. करने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी, चले गए, जहाँ से उन्होंने वर्ष 1932 में इसे पूरा किया. वहां उन्होंने शीघ्र ही जर्मन भाषा सीख लिया और उनको उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए वित्तीय सहायता भी मिली.
★ पिता की मृत्यु पर भी पेरोल पर छूटने से इंकार कर दिया : 1945 में लोहिया को लाहौर से आगरा जेल भेज दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने पर गांधी जी और कांग्रेस के नेताओं को छोड़ दिया गया लेकिन केवल लोहिया और जयप्रकाश नारायण ही जेल में थे। इसी बीच अंग्रेजों की सरकार और कांग्रेस की बीच समझौते की बातचीत शुरू हो गई। इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार बन गई सरकार का प्रतिनिधि मंडल डॉ लोहिया से आगरा जेल में मिलने आया। इस बीच लोहिया के पिता हीरालाल जी की मृत्यु हो गईकिन्तु लोहिया जी ने सरकार की कृपा पर पेरोल पर छूटने से इंकार कर दिया।
★ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान: स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की उनकी बचपन से ही प्रबल इच्छा थी जो बड़े होने पर भी खत्म नहीं हुई। जब वे यूरोप में थे तो उन्होंने वहां एक क्लब बनाया जिसका नाम ‘असोसिएशन ऑफ़ यूरोपियन इंडियंस’ रखा. जिसका उद्देश्य यूरोपीय भारतीयों के अंदर भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति जागरूकता पैदा करना था. उन्होंने जिनेवा में ‘लीग ऑफ नेशन्स’ की सभा में भी भाग लिया, यद्यपि भारत का प्रतिनिधित्व ब्रिटिश राज्य के एक सहयोगी के रूप में बीकानेर के महाराजा द्वारा किया गया था, परन्तु लोहिया इसके अपवाद थे. उन्होंने दर्शक गैलरी से विरोध प्रदर्शन शुरू किया और बाद में अपने विरोध के कारणों को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने समाचार-पत्र और पत्रिकाओं के संपादकों को कई पत्र लिखे. इस पूरी घटना ने रातों-रात राम मनोहर लोहिया को भारत में एक सुपर स्टार बना दिया। भारत वापस आने पर वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और वर्ष 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की आधारशिला रखी. वर्ष 1936 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का पहला सचिव नियुक्त किया.
24 मई, 1939 को लोहिया को उत्तेजक बयान देने और देशवासियों से सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार करने के लिए लिए पहली बार गिरफ्तार किया गया, पर युवाओं के विद्रोह के डर से उन्हें अगले ही दिन रिहा कर दिया गया. हालांकि जून 1940 में उन्हें “सत्याग्रह नाउ” नामक लेख लिखने के आरोप में पुनः गिरफ्तार किया गया और दो वर्षों के लिए कारावास भेज दिया गया. बाद में उन्हें दिसम्बर 1941 में आज़ाद कर दिया गया. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वर्ष 1942 में महात्मा गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद और वल्लभभाई पटेल जैसे कई शीर्ष नेताओं के साथ उन्हें भी कैद कर लिया गया था.
इसके बाद भी वे दो बार जेल गए, एक बार उन्हें मुंबई में गिरफ्तार कर लाहौर जेल भेजा गया था और दूसरी बार पुर्तगाली सरकार के खिलाफ भाषण और सभा करने के आरोप में गोवा. जब भारत स्वतंत्र होने के करीब था तो उन्होंने दृढ़ता से अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से देश के विभाजन का विरोध किया था. वे देश का विभाजन हिंसा से करने के खिलाफ थे. आजादी के दिन जब सभी नेता 15 अगस्त, 1947 को दिल्ली में इकट्ठे हुए थे, उस समय वे भारत के अवांछित विभाजन के प्रभाव के शोक की वजह से अपने गुरु (महात्मा गाँधी) के साथ दिल्ली से बाहर थे.
★ भारत के विभाजन से दुखी : जब भारत स्वतंत्र होने के करीब था तो उन्होंने दृढ़ता से अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से देश के विभाजन का विरोध किया था, वे देश का विभाजन हिंसा से करने के खिलाफ थे, आजादी के दिन जब सभी नेता 15 अगस्त, 1947 को दिल्ली में इकट्ठे हुए थे, उस समय वे भारत के अवांछित विभाजन के प्रभाव के शोक की वजह से अपने गुरु के साथ दिल्ली से बाहर थे। आजादी के बाद भी वे राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ही अपना योगदान देते रहे. उन्होंने आम जनता और निजी भागीदारों से अपील की कि वे कुओं, नहरों और सड़कों का निर्माण कर राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए योगदान में भाग लें। ‘तीन आना, पन्द्रह आना’ के माध्यम से राम मनोहर लोहिया ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर होने वाले खर्च की राशि ‘एक दिन में 25000 रुपए’ के खिलाफ आवाज उठाई, उस समय भारत की अधिकांश जनता की एक दिन की आमदनी मात्र 3 आना थी जबकि भारत के योजना आयोग के आंकड़े के अनुसार प्रति व्यक्ति औसत आय 15 पन्द्रह आना था। मार्च 1948 में नासिक सम्मेलन में सोशलिस्ट दल ने कांग्रेस से अलग होने का निश्चय किया। उन्होंने कृषि से सम्बंधित समस्याओं के आपसी निपटारे के लिए ‘हिन्द किसान पंचायत’ का गठन किया। लोहिया भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी थे और उनके अथक प्रयासों का फल था कि 1967 में कई राज्यों में कांग्रेस की पराजय हुई थी।
★ पुरस्कार और सम्मान : लखनऊ, उत्तर प्रदेश में डॉ राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, उनके सम्मान में स्थापित की गई है। इसके अलावा नई दिल्ली के वेलिंगडन अस्पताल का नाम बदलकर डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल रखा गया। लखनऊ में पीजी अध्ययन के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज का निर्माण किया जा रहा है।
★ निधन : राम मनोहर लोहिया का निधन 57 साल की उम्र में 12 अक्टूबर, 1967 को नई दिल्ली में हो गया.